बच्चो का कोना
निहायत मतलबी और दूसरों की भलमनसाता का फायदा उठाकर उड़न छू हो जाने वाले
गिलहरी और दुष्ट मंेढक

- बहुत समय की बात है। किसी जंगल में एक गिलहरी रहती थी, सीधी-सादी और सबकी मदद करने वाली है। इत्तिफाक की बात थी कि उसी जंगल में एक मेंढक भी रहता था। वह निहायत मतलबी और दूसरों की भलमनसाहत का फायदा उठाकर उड़न छू हो जाने वाला। गिलहरी जिस पेड़ पर रहती, वह एक बड़े से ताल के किनारे था। उसी ताल में मेंढक का भी घर था।
एक दिन गिलहरी को कहीं से कुछ अखरोट पड़े मिले। बड़ी मेहनत और मशक्कत के बाद वह उन्हें खींचतान कर पेड़ की जड़ तक ले आई। अब हुई परेशानी, ताल के आसपास की मिट्टी थी मुलायम, गिलहरी पेड़ पर अखरोट को ऊपर ढकेलती तो वह नीचे सरक जाता है मिट्टी में गिर जाता, और देखते ही देखते दलदल में गुम हो जाता। परेशान होकर उसने इधर-उधर देखा, करूं तो क्या करू?
वहीं पास बैठा मंेढक यह देख रहा था। अपनी ओर देखते पाकर वह गिलहरी से बोला-मेरी मदद चाहिए तो बोलो। तुम अखरोट ऊपर ढकेलती तो वह नीचे सरक जाता तो मिट्टी मंे गिर जाता और देखते ही देखते दलदल मंे गुम हो जाता। परेशान होकर उसने इधर-उधर देखा, करूं तो क्या करूं?
वहीं पास बैठा मंेढक यह देख रहा था। अपनी ओर देखते पाकर वह गिलहरी से बोला-मेरी मदद चाहिए तो बोलो। तुम अखरोट ऊपर बढ़ाओ, मैं नीचे गिरते ही अखरोट से पकड़ कर फिर ऊपर उछाल दूंगा। तुम उसे लपक लेना।
नेकी और पूछ पूछ, गिलरही जान गई। देखते ही देखते उसने मेंढक की मदद से सारे अखरोट अपने कोटर में पहुंचा दिए। काम समाप्त करके बोली-धन्यवाद मंेढक भाई। कभी जरूरत पड़े तो याद करना।
बार्त आ गई हो गइ।। जाड़े खत्म होकर गर्मी आई और इतनी गर्मी पड़ी कि हाहाकार मच गया। तालाब का पानी कम होने लगा। और मेंढक को परेशानी होने लगी। उसने झटपट गिलहरी को याद किया और उसके पास आने पर बोला-अरे बहन जी, तुम तो हमंे भूल ही गई। कभी कभी अपने इस मित्र को भी याद कर लिया करो।
हां हां क्यों नहीं, गिलहरी ने कहा, कहो मैं तुम्हारी क्या मदद करूं? क्या बताऊं, मेंढक रोनी सूरत बना कर बोला-तालाब सूखने से मुझे बड़ी परेशानी हो रही है। कभी कभी तो पूरा-पूरा दिन भूखे ही रहना पड़ता है। अगर कुछ बचा खुचा खाना दे दिया करो तो मेरा काम चल जाएगा। देखों मैंने भी तो तुम्हारी आड़े समय में मदद की थी न।
गिलहरी क्या कह सकती थी, थोड़ा सा सोच विचार करके मान गई। अब वह अपने कोटर में जमा किये बीजों बगैरह में से कुछेक को मेंढक के लिए पेड़ से नीचे गिरा देती। दोचार दिन ऐसे ही चला फिर मंेढक ने उससे कहा-बहन यह जो सामान तुम नीचे गिरा देती हो वह मैला हो जाता है। अब उसे धोने के लिए पनी तो बड़ी मुश्किल से मिलता है। तुम ऐसा करो कि मुझे भी अपने कोटर में लिए चलो मैं एक कोने में पड़ा रहूंगा।
गिलहरी सोच में पड़ गई। यह तो गले ही पड़ गया है अपने मतलब के अलावा किसी की बात सुनता नहीं। कोई चारा न देखकर उसने मेंढक को एक दो दिनों तक घर में रखने को मान लिया। मेंढक को पीठ पर बैठाकर कोटर में ले आई। मेंढक के मजे हो गए। कोटर में पड़े पड़े मजे से खाना और मौन मनाना। गिलहरी ने जो सामान जमा किया था वह बड़ी तेजी से खर्च होने लगा। अब तो उसे भी चिन्ता होने लगी। अगर यही हाल रहा तो खुद को भी खाने के लाले पड़ने लगेंगे। इसने इशारों और इशारों में मेंढक से अपनी समस्या बताई और एक बार तो उससे चले जाने को भी कहा।
मैं कहीं नहीं जाऊंगा, मेंढक ठिठाई से बोला- तालाब में पानी नहीं है फिर मैं भी तो पेड़ से उतर नहीं सकता ना। अरे थोड़े दिन की जो बात है जहां बरसात हुई मुझे नीचे छोड़ देना बस।
अब तो गिलहरी सोच मेें पड़ गई। यह तो अच्छी मुसीबत हो गई वह कोटर से बाहर आकर मुंह लटका कर बैठ गई। थोड़ी देर बाद अन्दर से मंेढक की आवाज आई। वह खाने के लिए कुछ मांग रहा था।
गिलहरी को क्रोध आ गया। वह गुस्से से बोली-कहां से खाने का सामान लेकर आऊं। तुम तो बस पड़े-पड़े खाते रहते हो और गंदगी करते हो वह अलग। इससे तो अच्छा है कि मैं किसी और पेड़ पर जाकर बसोरा कर लूं। यह कहते कहते उसके मन में बिजली सी कौंध गई। उसे मेंढक से छुटकारा पाने का मार्ग जो मिल गया था।
बस यह झटपट अपने कोटर में गई। बचे खुचे अखरोट और बादाम समेटे और फुर्र से पेड़ पर उतर कर दूसरे पेड़ पर जाकर बसेरा बना लिया। मंेढक मुंह लटकाए देखता रह गया। उसे अपने किये की सजा मिल गई थी। (हिफी)