2024 में फिल्मों ने दी प्रेरणा, उठाये सामाजिक मुद्दे

(चक्षु-हिफी फीचर)
बीते वर्ष 2024 मंे बाक्स ऑफिस पर कमाई करने वाली फिल्में आयीं तो लापता लेडीज जैसी फिल्मों मंे ज्वलंत सामाजिक मुद्दे भी उठाये गये। चंदू चैम्पियन जैसी फिल्म ने दिव्यांग के जज्बे को दिखाया तो श्रीकांत जैसी फिल्म ने बताया कि आंखों से दुनिया न देखने वाले भी बड़े सपने देखते हैं और उनको पूरा भी करते हैं।
किरण राव द्वारा निर्देशित, आमिर खान प्रोडक्शन्स के बैनर तले बनी फिल्म ‘लापता लेडिज’ इस साल खासी सुर्खियों में रही।
धोबी घाट और पीपली लाइव सरीखी चर्चित और विषय आधारित फिल्में बना चुकीं, किरण राव की ये फिल्म भी एक साथ कई सामाजिक मुद्दों पर आधारित है, जो औरतों को लेकर पितृसत्तात्मक सोच, लैंगिक असमानता, शिक्षा, दहेज प्रथा, आत्मनिर्भरता, घरेलू हिंसा, हीनता जैसे तमाम मुद्दों पर सवाल खड़े करती है। ये फिल्म औरतों को अपने हिसाब से जीना सिखाती है। हर उस महिला में आत्मविश्वास जगाती है, जो अपने सपनों के लिए संघर्ष करती है। फिल्म में गंभीर विषय होने के बावजूद इसे काफी हल्का रखा गया है, जिससे कहानी सीधे दर्शकों के दिल तक पहुंचती है। ये फिल्म भले ही ग्रामीण पृष्ठभूमि पर बनी है, लेकिन इसकी कहानी शहरों की हकीकत से भी रूबरू करवाती है।
इसी प्रकार कबीर खान के निर्देशन में बनी बायोपिक फिल्म चंदू चैंपियन भले ही बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकी, लेकिन फिल्म में कार्तिक आर्यन की अदाकारी ने खूब तारीफें बटोरी। यह फिल्म भारत के पहले पैरालिंपिक स्वर्ण पदक विजेता मुरलीकांत पेटकर पर आधारित है। पैराओलंपियन मुरलीकांत पेटकर की कभी हार न मानने वाली इस कहानी ने दर्शकों का दिल जीत लिया। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए खेलों में अपनी पहचान बनाई थी। उनके जूनून का सफर सेना में भर्ती से शुरू हुआ, जो बॉक्सिंग के वंडर बॉय बनने और आखिर में 1965 की जंग में अपने शरीर पर 9 गोलियां खाने तक जारी रहा। जंग के बाद उनके शरीर का निचला हिस्सा लकवाग्रस्त होने के बावजूद उन्होंने अपने सपने को पीछे नहीं छोड़ा और विश्व स्तर पर रिकॉर्ड कायम करने के लिए तैराकी सीखी। इसी जूनून और लगन की बुनियाद पर वह देश का पहला पैरालंपिक गोल्ड मेडल जीतने वाले खिलाड़ी बने।
इम्तियाज अली के निर्देशन में बनी फिल्म चमकीला इस साल ओटीटी मंच नेटफ्लिक्स पर 12 अप्रैल को रिलीज हुई थी। फिल्म लुधियाना के छोटे से गांव धुबरी में जन्मे पंजाबी म्यूजिक इंडस्ट्री में साल 1979 से 1988 तक राज करने वाले गायक और ‘एल्विश ऑफ पंजाब’ कहे जाने वाले अमर सिंह चमकीला के प्रभावशाली संगीत और विवादास्पद जीवन पर आधारित है। अमर सिंह चमकीला एक समय पंजाब के बड़े गायकों में शुमार थे। उनकी गायिकी के लोग दीवाने थे। कहा जाता है कि उन्होंने बहुत कम समय में फर्श से अर्श तक का सफर तय कर लिया था। लेकिन महज 27 साल की उम्र में वो इस दुनिया को अलविदा भी कह गए। 8 मार्च, 1988 के दिन कुछ अज्ञात हमलावरों ने अमर सिंह चमकीला की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी थी। फिल्म में दिखाया गया है कि काफी कम उम्र में पारिवारिक बोझ की वजह से उन्हें कारखानों, गायिकी अखाड़ों में सहायक के तौर पर काम करना पड़ा था। चमकीला के गाने गांव के परिवेश, ड्रग्स, बंदूकें, एक्ट्रा मैरिटल अफेयर और दहेज जैसे मुद्दों पर तंज करते थे।
अभिनेता राजकुमार राव की फिल्म ‘श्रीकांत’ भी इस साल अपना कमाल छोड़ने में कामयाब रही। ये फिल्म असल में उद्योगपति श्रीकांत बोल्ला की कहानी है। जो अपनी आंखों से दुनिया तो नहीं देख सकते, लेकिन सपने, बड़े सपने जरूर देखते हैं और उन्हें पूरा भी करते हैं। एक सामाजिक मुद्दे पर बेहद गंभीरता और शालीनता से बनी यह फिल्म प्रेरणा देती है।
90 के दशक में आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के एक गरीब और अशिक्षित परिवार में जन्मे श्रीकांत बोल्ला ने नेत्रहीन होने की चुनौतियों का सामना करते हुए हुए करीब 500 करोड़ रुपये की कंपनी खड़ी की। इस कंपनी के जरिए श्रीकांत ने विकलांगों के लिए रोजगार के अवसर खोले, उन्हें नौकरी देने का फैसला किया। हालांकि श्रीकांत का ये सफर मुश्किल लेकिन प्रेरणादायी और गर्व करने वाला रहा है।
अजय देवगन की फिल्म ‘मैदान’ भारत में भुला दिए गए खेल फुटबॉल से जुड़ी सत्य घटना पर आधारित फिल्म है। इस स्पोर्ट्स बॉयोपिक के केंद्र में महान कोच सैयद अब्दुल रहीम हैं, जिनकी भूमिका पर्दे पर अजय देवगन ने निभाई है। दिवंगत अभिनेता सतीश कौशिक की फिल्म ‘कागज 2’ ने सिनेमाघरों में 1 मार्च को दस्तक दी थी। यह फिल्म उनके निधन के कुछ महीनों बाद ही सिनेमाघरों में आ गई थी। फिल्म में राजनेताओं की रैलियां, जो किसी के जीवन का अधिकार तक छीन सकती हैं, इसका दर्द दिखाया गया है। संविधान ने कागज पर तो सबके लिए बराबरी का अधिकार सुनिश्चित किया है, लेकिन क्या वाकई आम आदमी के लिए कानून भी समान है, ये फिल्म इस मुद्दे पर जरूरी सवाल उठाती है।
इसी तरह सारा अली खान की फिल्म ‘ऐ वतन मेरे वतन’ भी इस साल रिलीज हुई, जिसकी कहानी साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान की है। उस दौर में जब आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने गांधी और नेहरू समेत कांग्रेस के सारे बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया था। ऐसे मुश्किल समय में आजादी की आवाज देश की अवाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी कांग्रेस की एक नौजवान कार्यकर्ता उषा मेहता उठाती है, जिनके इर्द-गिर्द ये कहानी घूमती है। उषा मेहता आजादी की ऐसी सेनानी हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान छिपकर कांग्रेस रेडियो चलाया था, भारत छोड़ो आंदोलन में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही थी। उषा मेहता को 1998 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था।
ओटीटी मंच डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई रवीना टंडन की फिल्म पटना शुक्ला भी सामाजिक मुद्दे पर बनी एक फिल्म है। ये एक हाउसवाइफ की कहानी जो वकील है, लेकिन मानी नहीं जाती। हर दिन वे अपनी पहचान पाने के लिए संघर्ष करती है। एक समय ऐसा आता है, जब उनके हाथ एक ऐसा केस लगता है, जो पूरे शिक्षा जगत में हलचल पैदा कर देने वाला होता है, लेकिन इसमें बड़े लोगों का हाथ और खौफ दोनों शामिल होता है, तो वो पीछे नहीं हटतीं। वो इस शैक्षिक घोटाले को दुनिया के सामने लाती हैं और खुद अपने आप को भी इसी का शिकार पाती हैं। (हिफी)