क्या फूलों से इलाज संभव है

यह तो हम सभी जानते हैं कि पर्यावरण और स्वास्थ्य परस्पर गहरा सम्बन्ध है। यदि अपने आस-पास का वातावरण साफ-सुथरा होगा तो आप और हम खुद व खुद अपने भीतर एक आन्तरिक ऊर्जा का अनुभव करेंगे ऐसा प्रकृति का नियम है। भारतीय जीवन में तो चिरकाल ही परिस्थितियों तथा प्रकृति के साथ सामजस्य निभाने पर जोर दिया जाता है। हमारे ऋषि-मुनियों के आश्रम में गुरूकुल सुरम्य अरण्य के बीच में स्थित होते थे। यहां की प्राकृतिक और नैसर्गिक सौंदर्य के मध्य वे गूढ़ से गूढ विषयों पर सूक्ष्मता से चिन्तन मनन करते थे। परिणामस्वरूप इनके यहां शिक्षा पाने आये छात्रगण उच्च कोटि के विद्वान तथा गुणों से प्रसन्न होकर ही गुरूकुल से निकलते थे।
यही नहीं भारतीय संस्कृति में फूलों का एक विशिष्ट स्थान है और लगभग यह महत्वपूर्ण पहलुओं जैसे पूजा, अर्चना, शुभ विवाह और किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्यों में किस्म-किस्म के फूलों का प्रयोग किया जाता रहा है। सभी का स्वागत-सत्कार करना हो तो यहां पर फूलों की वर्षा की जाती है। सभी को भावपूर्ण विदाई देते हैं तो भी यहां पर फूलों की झड़ी लगा देते हैं तात्पर्य यही है कि फूलों की स्थिति किसी भी मौके को यादगार बना देती है।
यहां अक्सर ही फूलों को पानी में डालकर उनके भीतर से निकले रसों का संचयन करके उनसे रोगों का उपचार किया जाता था। कन्नौज के प्रसिद्ध इत्र व्यवसाय में तो आज भी फूलों को वाष्पित करके ही उनसे निकले द्रव्य का संचयन करके इत्र बनाते हैं। इतिहास में भी बादशाह जहांगीर की पत्नी नूरजहां द्वारा गुलाबों का इत्र बनाए जाने का जो जिक्र है उसमें स्पष्ट लिखा है कि उसने गुलाब के फूलों को पानी में डाले रखा था और जब उनसे निकलकर सुगंधित द्रव की बूंदें पानी पर उतर आईं तो उसने उनको सावधानी से एकत्रिक करके गुलाब के इत्र तथा गुलाब जल का निर्माण किया था। ऐसे खुशनुमा वातावरण में जाहिर है कि बादशाह और दरबारी अपना मनोरंजन भी करते थे और बड़े से बड़े मसलों पर भी आराम से बातचीत कर लेते थे।
सूरजमुखी के फूल के लिये यह कहा जाता है कि इसे देखने पर या कुछ समय तक इस फूल पर ध्यान केन्द्रित करने से मन का बड़े से बड़ा तनाव भी दूर हो जाता है। यही नहीं जिस प्रकार गुलाब के फूलों की पत्तियोें से गुलकंद बनाया जाता है वैसे ही सूरजमुखी के फूल की पत्तियों को भी कारगर तरीके से प्रयोग कर सकते हैं। जवा कुसुम के फूलों का अर्क बालों के लिये बेहतरीन टाॅनिक मानते हैं तो गेंदा का फूल मच्छर भगाने के काम आता है।
भारतीय आयुर्वेदिक पद्धति में तो फूलों के तेल बनाने तथा उनेसे किस्म-किस्म की औषधियां बनाने की परम्परा रही है और आज भी इनका उपयोग स्नायुविक तथा त्वचा संबंधी तकलीफों का इलाज करने में हो रहा है। विदेशों में भी फूलों द्वारा चिकित्सा की पद्धति को डाक्टर एडवर्ड वैच के द्वारा विकसित की गई तकनीकों के आधार पर वैच चिकित्सा पद्धति कहते हैं। इसमें भी फूलों के अर्क निकालते हैं लेकिन उनको रखने तथा दवाइयां बनाने के तरीके में कुछ फर्क है। जैसे होम्योपैथी पद्धति में मूल रूप से मदर टिंक्चर का प्रयोग होता है वैसे ही वैच द्वारा विभिन्न फूलों से कोई 38 तरह के अर्क या टिंक्चर बनाये गए थे। इन्हीं के विभिन्न शक्ति के मिश्रणों द्वारा बैच पद्धति में इलाज किया जाता है।
ऐलोपैथी के समर्थकों द्वारा इस प्रकार के अर्क तथा दवाइयों को गैरजरी तथा वैज्ञानिक सिद्धांतों के विरुद्ध बताया जाता रहा है लेकिन इसके बावजूद अब इस प्रकार की आल्टरनेट चिकित्सा पद्धति की ओर भी लोगों का रूझान होने लगा है। इसकी वजह यही है कि कई बार यह देखा गया है कि इस प्रकार की औषधियां और जड़ी बूटियां पद्धति देर से असर करती है लेकिन अक्सर ही वे स्नायुविक समस्याओं का जड़ से निदान करने में सक्षम हैं। एलोपैथी दवाओं में प्रायः ही जोड़ों के दर्द जैसे तकलीफों में जो दवाइयां दी जाती है वह दर्द का निवारण करती हैं लेकिन इसका संपूर्ण इलाज नहीं करतीं।
इसके अलावा कई फूल चिकित्सकों का यह भी दावा है कि आजकल की भाग-दौड़ की दुनिया में लोगों को आमतौर पर जो रोग या परेशानियां होती है ंवह मुख्य रूप से भावनात्मक ज्यादा होती हैं और उनका सीधा
संबंध हमारे चेतन तथा अवचेतन मस्तिष्क से होता है। ऐसे में फूलों के अर्क से बनी औषघियां निःसंदेह ही ज्यादा कारगर होंगी क्योंकि जितनी तेजी से कोई सुगंध या दुर्गंध हमारे मस्तिष्क पर असर करती है उतनी तेज कोई अन्य दवाई नहीं करती। शायद यही वजह है कि अब फूलों का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाने लगा है। यह काफी लोकप्रिय भी हुए हैं और कभी-कभी डाक्टर भी इनका प्रयोग करने की सलाह दे देते हैं। वैसे भी गुलाब, चंपा, चमेली, मोंगरा, गुड़हल, कमल आदि फूलों का प्रयोग तो भारतीय वैद्यकी में किया ही जाता रहा है इससे स्पष्ट है कि इन दवाओं में कुछ तो दम है ही। जब फूलों को देखना एक भावनात्मक तुष्टि तथा प्रसन्नता दे सकता है तो उनके अर्क भी लाभकारी तो होंगे ही। (हिफी)