
मोनू चूहा बड़ा शरारती था। वह कभी भी अपनी मां का कहना नहीं मानता थां एक दिन उसकी मां दवाई लेने गई और जाते वक्त मोनू से कह गई कहीं बाहर मत जाना। मगर वह नहीं माना अपनी मां के जाते ही झट से घूमने निकल पड़ा। उछलते-कूदते नदी किनारे पहुंचा। वहां पहुंचकर तो उसे और भी अच्छा लगा। खेलकूद कर जब वह थक गया तो उसे नींद आने लगी। वह वहीं नीम के पेड़ के नीचे सो गया।
एकाएक उसकी आंख खुली। सूरज डूब चुका था। चारो तरफ अंधेरा देखकर वह डर के मारे रोने लगा। उसको रोता देखकर पेड़ पर बैठा उल्लू जिसे उसके साथी गाइड नाम से पुकारते थे बोला यह बताओ कि तुम इस नदी के किनारे कैसे पहुंचे। मोनू बोला मेरी मां मुझे कहीं नहीं जाने देती। आज जब मां घर पर नहीं थी तब मैं चुपके से घूमने निकल आया। घूमते-घूमते निकल आया। घूमते-घूमते यह नदी नजर आई बस यहीं रूक कर खेलने लगा।
मोनू की बात सुनकर उल्लू बोला, यही होता है बड़ों का कहना न मानने का अंजाम। तुम नहीं जातने कि मां-बाप अगर अपने बच्चों को रोकते-टोकते हैं तो उसमें उनकी ही भलाई होती है। अच्छा चलो अब रोना बंद करो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आता हूं।
गाइड से मोनू बुरी तरह डरा हुआ था। उसे डर था कि कोई उसे अपना शिकार न बना ले। मोनू ने अपनी मां से सुना था कि कुछ लोग बच्चों को बहकाकर ले जाते हैं और उनसे भीख मांगने आदि जैसे घिनौने काम कराते हैं। इसलिए वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। उसकी आंखों में आंसू साफ-साफ दिखाई दे रहे थे। गाइड समझ गया कि मोनू क्या सोच रहा है। उसने कहा घबराओ नहीं। मैं तुम्हें घर पहुंचा कर आऊंगा। मोने के पास और कोई चारा भी तो नहीं था। गाइड के साथ मोनू चल पड़ा।
अभी वह आधे रास्ते ही पहुंचा था कि मोनू की मां आती दिखाई दी। मोनू अपनी मां को देखते ही खुशी से उछल पड़ा और बोला। मां आज के बाद से मैं हमेशा आपका कहना मानूंगा। मोनू की मां ने गाइड का धन्यवाद किया। मोनू की मां अंदर ही अंदर खुश थी क्योंकि एक तो उसका खोया हुआ बेटा मिल गया था और दूसरी जो बात वह मोनू को समझा नहीं पा रही थी वह उसे अब स्वयं समझ आ गई थी कि बड़ों की बात न मानने से बच्चे कभी-कभी बहुत बड़ी परेशानी में फंस जाते हैं। (हिफी)