
विशाल सागर के तट पर टिटिभि का एक जोड़ा रहता था और दोनों पति-पत्नी सागर के तट पर रहते हुए बड़े खुश थे। इनका छोटा-सा संसार इतना सुखी था कि उन्हें यह भी पता नहीं था कि इस दुनिया में दुःख नाम की कोई चीज भी है। शाम के समय सागर में जब लहरें उठतीं तो उसके साथ शीतल पवन उनसे आकर अठखेलियाँ करती हुई सारे शरीर को गद्गद् कर देती। प्रकृति का यह दृश्य कितना सुंदर और मनमोहक था।
सुबह होती और सुबह का देवता सूर्य अपनी सुनहरी-रूपहली किरणों को सागर के पानी पर फेंकता तो ऐसा प्रतीत होता था, जैसे सूर्य सागर में सोने के तार गढ़ रहा है।
टिटिभि के प्यार के पौधों में जब फूल आने लगे तो उसकी पत्नी ने बताया कि वह तो अब गर्भ से है। उसे अंडे देने के लिए कोई सुरक्षित स्थान चाहिए।
टिटिभि ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘देखो, प्रिये! हमने तो सारा जीवन इसी सागर तट पर व्यतीत किया है। अब ऐसे समय, जबकि हमारी संतान जन्म लेने वाली है, इस सागर को छोड़कर जाना कोई बुद्धिमत्ता की बात नहीं। अरे, जब साथ जीए हैं, साथ ही मरेंगे। क्यों छोड़ेंगे, अपने सागर का साथ। यह तो अपना पारिवारिक साथी है। इससे हम नहीं डरते। यह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’’
इन दोनों की बातें सागर बड़े ध्यान से सुन रहा था। वह मोटी बुद्धि तो यही समझा कि यह दोनों पक्षी बड़े ही अभिमानी हैं। मैं कितना विशाल हूँ, कितना गहरा हूँ। भला यह जरा-सा पक्षी मेरा क्या मुकाबला करेगा? इसलिए तो यह रात को सोते समय पैर ऊपर करके सोता है ताकि यदि रात को आकाश धरती पर गिर जाए तो वह उसे रोक लेगा।
टिटिभि ने अपने पति का कहना माना और रात को सागर तट पर रेत में अपने अंडे दे दिए।
दोनों पति-पत्नी अपने लिए भोजन की तलाश में वहाँ से उड़कर दूर चले गए। सागर तो पहले ही उन्हें उनकी अकड़ की सजा देने के लिए तैयार बैठा था। उसी समय ऊँची उठती हुई लहरें आईं और सारे अंडे उसमें बहकर जल में चले गए।
जैसे ही रात को टिटिभि और उसकी पत्नी वापस आए, वहाँ पर कुछ भी नहीं था।
टिटिभि रोती हुई अपने पति से बोली, ‘‘देख लिया न मेरी बात न मानने का फल! अरे इतने बड़े सागर से हमारी दोस्ती कैसे हो सकती है? दोस्ती तो केवल बराबर वालों से होती है।’’
शिक्षा-जो लोग बड़ों और बुद्धिमानों की बात को नहीं मानते, उनका अंत सदा ही बुरा होता है। वे सदा सुख से वंचित रहते हैं। (हिफी)