
तेनालीराम लंबे समय से महाराजा कृष्णदेव राय की सेवा कर रहे थे। एक बात उन्हें बेहद खल रही थी। विजयनगर के ब्राह्मण बड़े ही लालची थे। वे धरम-करम की उलटी-सीधी बात बताकर महाराजा को लूटते रहते थे। एक दिन महाराजा कृष्णदेव राय ने सभा में बताया कि मरते समय हमारी माँ को आम खाने की इच्छा थी, परंतु उनकी यह इच्छा पूर्ण न हो सकी। क्या अब ऐसा कोई उपाय है कि मेरी मां की आत्मा को शांति मिले?
ये मसला राजपुरोहित जी! महाराजा ने कहा।
‘एक सौ आठ ब्राह्मणों को एक-एक सोने का आम दक्षिणा स्वरूप भेंट करने पर राजमाता की आत्मा को शांति प्राप्त हो सकती है।’’
उसकी लालच भरी यह बात सुनकर जहां तेनालीराम के तन-बदन में आग लग गई, वहीं महाराज ने खुश होकर तुरंत सोने के एक सौ आठ आम दान करने की घोषणा कर दी।
तेनालीराम ने सोचा, इन ब्राह्मणों का कोई इलाज करना ही पड़ेगा। किंतु उन्हें कोई युक्ति नहीं सूझ रही थी, इसलिए वे मन मसोसकर रह गए।
कुछ दिन बाद तेनालीराम की माँ की मृत्यु हो गई। उन्होंने विधिवत उनका अंतिम संस्कार किया और तेरहवीं के लिए सक सौ आठ ब्राह्मणों को राजपुरोहित सहित अपने निवास पर आमंत्रित किया। तेरहवीं के सभी कार्य संपन्न हुए, ब्राह्मणों को एक अलग कक्ष में बैठाया गया। वहां आकर तेनालीराम ने नौकरों को इशारा किया। इशारा पाते ही नौकर दहकती हुई सलाखें लेकर उपस्थित हो गए।
‘इन सभी को गरम सलाखों से घुटनों पर दागा जाए।’’
ये सुनते ही सभी ब्राह्मणों में चीख-पुकार मच गई। वे उठकर भागने लगे तो नौकरों ने उन लोगों को पकड़ लिया, फिर एक-एक करके सभी के घुटनों में सलाखें दागी र्गइं।
बात महाराजा तक पहुंची। उन्होंने तेनालीराम को तलब करके ब्राह्मणों के साथ किए गए अभद्र व्यवहार का कारण पूछा।
तेनालीराम ने कहा, ‘महाराज! मेरी मां के पैर के जोड़ों में दर्द रहता था। उन्हें एक वैद्य ने बताया था कि उनके घुटने लोहे की गरम सलाखों से दागे जाएं तो उनका रोग ठीक हो जाएगा। यह इच्छा पूर्ण होने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। तब मैंने यह रास्ता अपनाया। जब ब्राह्मणों को सोने के आम दान देने से राजमाता की अंतिम इच्छा पूर्ण हो सकती है तो क्या इस प्रकार मेरी मां का रोग दूर नहीं हो सकता।
तेनालीराम की बात सुनकर महाराजा हंस पड़े, जबकि राजपुरोहित सहित सभी ब्राह्मणों के सिर शर्म से झुक गए। (हिफी)