समाज सेवा से बने नारायण

घनश्याम पांडे या स्वामीनारायण या सहजानंद स्वामी हिंदू धर्म के स्वामीनारायण संप्रदाय के संस्थापक थे। अप्रैल, 1781 को भगवान श्रीराम की जन्मभूमि कही जाने वाली अयोध्या के पास छपिया नाम के गांव में उनका जन्म हुआ था। उस दिन रामनवमी थी।
पांच वर्ष की अवस्था में बालक ने पढ़ना-लिखना शुरू किया और आठ साल की उम्र में उनका जनेऊ संस्कार हुआ। इसके तुरंत बाद बालक ने शिक्षा में अपनी विलक्षण प्रतिभा दिखाई और अनेक शास्त्रों को पढ़ लिया। कुछ ही समय में वे घर छोड़कर निकले और पूरे देश की परिक्रमा कर ली, तब तक उनकी बहुत ख्याति हो चुकी थी और लोग उन्हें नीलकंठवर्णी कहने लगे थे। देश के कई राज्यों से होते हुए वे गुजरात आ गए। यहां उन्होंने बाकायदा अपने संप्रदाय की शुरुआत की और उनके बहुत से अनुयायी बन गए. उन्होंने उस दौर की कई कुरीतियों को खत्म करने में बड़ा योगदान दिया। तब गुजरात समेत देश में कई प्राकृतिक आपदाएं आया करती थीं। उस दौरान स्वामीनारायण ने अपने अनुयायियों को लोगों की मदद के लिए प्रेरित किया। इस सेवाभाव को देखकर लोग उन्हें भगवान के अवतारी मानने लगे।