एक बार की बात है घने जंगल के बीच हाथियों का एक झुंड जा रहा था। हाथियों का राजा बुरी तरह थक गया था। उसने रौब से अपने साथियों से कहा मैं अब और आगे नहीं जा सकंूगा इसलिए तुम सब जाओ और मेरे लिए खाना लेकर आओ।
अपने राजा का आदेश सुनकर हाथी परेशान हो गए सूखे जंगल में कहां से राजा के लिए खाना लाएं। तभी बहुत तेज तुफानी बारिश होने लगी। बाकी हाथी भी भूखे थे फिर भी उन्होंने राजा हाथी के आदेश का पालन किया। वो खाने की तलाश में निकल पड़े।
उधर गजराज बड़े आराम से जमीन पर लेटकर खर्राटे भरने लगा। अचानक उसकी आंख खुल गई। दर्द के मारे चिल्लाते हुए उसने अपनी सूंड हिलाई और देखा कि उसकी सूंड पर एक चींटी रेंग रही है। यह दशा देखकर वह गुस्से से आग बबूला हो उठा। उसने तेजी से अपनी सूंड झटकी, बेचारी नन्हीं चींटी जमीन पर जा गिरी। चींटी के गिरते ही उसने उसे कुचल दिया। चींटी के प्राण पखेरू उड़ गए।
यह नजारा चींटी की मां देख रही थी उससे रहा न गया। वह तुरंत अपने साथियों को बुला लाई और इंतजार करने लगी हाथी के सोने का।
थोड़ी देर बाद उसका इंतजार खत्म हुआ हाथी फिर से खर्राटे भरने लगा। बस उसी वक्त सारी चीटिंयां उसकी सूंड में घुस गई और काटने लगीं। गजराज दर्द के मारे चिल्लाता हुआ कुछ देर बाद वहीं जमीन पर तड़प-तड़प कर मर गया।
अब तक गजराज के साथी खाना लेकर आ चुके थे उन्होंने जब गजराज का यह हाल देखा तो वह एक साथ बोले-ईश्वर ने कहा है जमीन पर अकड़ेते हुए न चलो न तो तुम जमीन को फाड़ सकते हो और न ही पहाड़ों की ऊंचाई की पहुंच कम कर सकते हो।
किसी ने सच ही तो कहा है, घमंड तो टूटता ही है सबका।