प्रेरणास्पद लघुकथा 

गुलाम

 

किशन गढ़ के युवराज महेन्द्र की कल सुबह से ही ताजपोशी होना तय पाया गया अतः उन्हें आराम करने देने के लिए तमाम दरबारी व विशेष सलाहकार परिषद के सदस्य और प्रमुख मंत्री मोहनलाल युवराज को प्रणाम कर कक्ष से बाहर निकल गए।
प्राकृतिक वस्तुओं और सुंदरता के दीवाने युवराज ने अपने ताजपोशी के शुभ अवसर पर अपने भावी राजमुकुट पर हीरे मोती लगवाए थे और ताजपोशी के समय पहनने के लिए हीरे मोती जड़ित विशेष परिधान भी तैयार कराए थे।  इस अवसर के लिए उन्होंने देश-विदेश के कुछ बड़े अधिकारियों को समुद्र के मछुआरों से नीलम एवं जिप्ट के राजाओं की कब्रों पर पाए जाने वाली धनिया, चीनी पच्चीकारी वाले चीनी मिट्टी बर्तन और पार्शियाई रेशन के गलीचे आदि लेकर आने का आदेश दे रखे थे। यही नहीं इन वस्तुओं के साथ ही पश्मीना, हांथी के दांत, मून जैवे के बने विशेष कंगन और चंदन की कड़ी भी विशेष रूप से मंगवाई गई थी यही कल्पना करते-करते युवराज कब गहरी निद्रा में समा गये पता ही नहीं चला।
हे! ऋषिवर, किशनगढ़ के भावी नरेश युवराज तो पूरी तरह से भोग विलास में लिप्त रहते थे। उनके हांथों में साम्राज्य क्या पूरी तरह सुरक्षित रह सकेगा? कृपा कर युवराज की आंखों से पट्टी हटाकर उन्हें शासन के योग्य करने का कोई उपाय करने की कृपा करें।
किशनगढ़ राज्य से सटे घने जंगल में साधनारत निश्काम योगी और किशनगढ़ के कुलगुरू को घेरकर जब कुछ मंत्रियों और दरबारियों के समूह ने अंर्तनाद किया तो धीरे से अपनी आंखें खोलकर उपस्थित लोगों के समूह को देख मुस्कारते ऋषिवर ने इशारे से जल्द ही सब कुछ ठीक करने का आश्वासन दे पुनः अपनी साधना में लीन हो जाने को तत्पर हो गए और उनकी आंखें धीरे-धीरे स्वतः बंद होती जा रही थीं।गधे की बुद्धिमानी
इधर गहरी नींद में सोए हुए युवराज महेन्द्र ने अचानक ही किसी दूसरी दुनिया में पहुंच गए, और अपने को एक अन्य राज्य के राजा के रूप में राजा के मुख पर मुस्कुराहट फैली हुई थी। इस समय वह अपने शानदार कक्ष में बैठा हुआ सुरा और सुंदरियों की महफिल में गोते खा रहा था क्योंकि वह राजा भी, पूरी तरह से भोग विलास में लिप्त रहने वाला था और ऐसे में उनके हाथों में उसका साम्राज्य पूरी तरह से सुरक्षित नहीं था। ओर उसके राज्य पर कब उसके दुश्मनों का हमला हो जाएगा किसी को भी इस बात का अनुमान नहीं था। उस समय तक उस राजा पर सुरा का असर पूरी तरह से छा चुका था और बैठे वह अपनी जगह पर लुढ़क गया तो उसके कक्ष में तैनात सेवकों ने भागकर राजा के मंत्री को सूचित किया जिन्होंने आकर राजा को संभाला और उस रासरंग की महफिल को फौरन खत्म करने का हुक्म दिया तो सभी तबलची और नाचने-गाने वाली एक-एक कर प्रणाम कर कक्ष से बाहर निकल गए।
तब मंत्री ने राजा के सेवकों से वहां पड़े खाली मय के प्यालों व हुक्के आदि के साथ ही अन्य दूसरी वस्तुओं को हटाने का आदेश देकर राजा को भलीभांति बिस्तर पर लिटा दिया और प्रणाम कर कक्ष से बाहर जाने के लिए अभी अपेन कदम बढ़ाए ही थे कि कुछ सैनिकों के साथ बदहवास से सेनापति श्वेतांग ने आकर उन्हें और बिस्तर पर अस्त-व्यस्त हालत में पसरे पड़े महाराज को प्रणाम कर उनसे कहा कहा कि ‘गजब हो गया! तीन पड़ोसी राजाओं की सेनाओं ने एक साथ हमारे राज्य पर हमला कर दिया है और अब हमें फौरन ही अपनी सेनाओं को एकत्रित कर हमले का सामने करने के लिए प्रस्तुत होना पड़ेगा परंतु महराज की ऐसी हालत है तो फिर युद्ध में हमारी सेनाओं का हौंसला बरकरार रखने के लिए हमारा मुखिया कौन होगा?
बहुत देर सोचने के बाद मंत्री जी ने सेनापति को भींचकर गले से लगाते हुए रूंधी आवाज में कहा कि अब तुम्ही इस युऋ में हमारी सेनाओं की कमान संभालोगे, और इस लड़ाई में विजयी होकर वापस लौटोगे। इतना कहकर उन्होंने पूजा की थाली मंगाई और सेनापति का तिलक कर और उसे राजा की तलवार भेंटकर उसको विदा किया और अत्यंत ही चिंतित मुद्रा में पलंग पर फैले पड़े राजा पर एक ओर उड़ती हुई सी दृष्टि डाली और अपाने आवास की ओर धीरे-धीरे कदम बढ़ा दिए। आवासम ें पहुंचकर लेटने के बजाय आसन पर बैठकर विचार मग्न हो गए और विचारों में खोए हुए ही उनको झपकी आ गई। भारी कोलाहल से मंत्री की आंखें खुली तो उन्होंने पाया कि उनके साथ ही सेनापति श्वेतांग और राजा तीनों ही शत्रु राजाओं के सामने बंदी के रूप में बंधे पड़े हैं। तभी दुश्मन राजाओं ने उन तीनों को ही खौलते तेल में कड़ाहे में डाल देने का हुक्म दिया और उनका सेनापति खौलते तेल में डालने े लिए उन तीनों को ले जाने लगा।
अचानक चीखने के साथ ही उठ बैठे थे युवराज महेन्द्र, एक व्याकुल सी नजर से अपने आस-पास देखने पर उनको अपने अभी-अभी समाप्त हुए अपने स्वप्न का अहसास हुआ। तो स्वप्न पर विचार करते हुए युवराज महेन्द्र ने वहीं बैठे ही बैठे अपने मन में कुछ निश्चय कर मंत्री मोहनलाल को बुलाया और अपने को गुलाम बनाने वाली सुरा को फेंक देने और सुंदरियों को तत्काल उचित मतेहनताना देकर महल से कहीं दूर बसा देने का आदेश दिया। और तत्पश्चात राजतिलक की तैयारियों का जायजा लेने चल पड़े। उस समय एक ओर जहां जंगल में साधनारत किशनगढ़ के कुल गुरू अपनी बंद आंखों से भी इस दृश्य को देखकर मुस्करा रहे थे वहीं दूसरी ओर राजमहल की खिड़की से आती भगवान भास्कर की किरणों किशनगढ़ के सुखद भविष्य की ओर इशारा करती साफ दिख रहीं थीं। (हिफी)

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