
यह कहावत तो बहुत लोगों ने सुनी होगी। इसका संबंध भी संत रविदास से है।
बताते हैं कि एक दिन संत रविदास अपनी कुटिया में बैठकर प्रभु का स्मरण कर रहे थे, तभी एक ब्राह्मण आया वह गंगा स्नान करने जा रहा था। संत रविदास ने कहा कि यह एक मुद्रा है, इसे मेरी तरफ से गंगा मैया को दे देना। ब्राह्मण जब गंगा जी में स्नान करने के बाद संत रविदास की दी गयी मुद्रा को जल में डालने को तैयार हुआ, तभी उसने चमत्कार देखा। गंगा मैया ने हाथ निकालकर वह मुद्रा ले ली। इसके बदले में ब्राह्मण को एक सोने का कंगन दे दिया। ब्राह्मण जब गंगा जी द्वारा दिया कंगन लेकर लौट रहा था तो वह नगर के राजा से मिलने चला गया। ब्राह्मण ने सोचा यदि यह कंगन राजा को दे दें तो राजा बहुत प्रसन्न होगा। उसने कंगन राजा को भेंट कर दिया। राजा ने सचमुच प्रसन्न होकर बहुत सी स्वर्ण मुद्राएं उसकी झोली में डाल दीं। ब्राह्मण अपने घर चला गया।
इधर, राजा ने वह कंगन अपनी महारानी के हाथ में पहनाया। महारानी बहुत खुश हुईं लेकिन कहने लगी- यह तो एक ही है, क्या आप ऐसा ही एक और कंगन नहीं मंगा सकते। राजा ने उस ब्राह्ममण को बुलवाया और कहा जैसा कंगन भेंट किया था, वैसा ही कंगन तीन दिन में लाकर दो। दूसरा कंगन नहीं दिया तो दण्ड मिलेगा। ब्राह्मण परेशान था कि नाहक राजा के पास कंगन भेंट करने आ गया, अब दूसरा कंगन कहां से लाऊँ? इसी चिंता में ब्राह्ममण फिर संत रविदास के पास गया। संत रविदास से ब्राह्मण ने पूरी कहानी बतायी। संत रविदास ने कहा ‘‘ब्राह्मण देव, तुमने मुझे बताए बगैर कंगन राजा को भेंट कर दिया लेकिन मैं इस से नाराज नहीं हूॅ। अब गंगाजी से प्रार्थना करता हूं कि इस ब्राह्मण का मान-सम्मान आपके हाथ में है, इसकी लाज रख लेना। इतना कहने के बाद संत रविदास ने अपनी वह कठौती उठाई जिसमें वे चमड़ा धोते थे। इसमें चमड़ा गलाने का जल भरा था। संत रविदास ने गंगा मैया का आह्वान कर अपनी कठौती से जल छिड़का। गंगा मैया प्रकट हो गयीं और रविदास जी के आग्रह पर एक और कड़ा ब्राह्मण को दिया। ब्राह्मण खुश होकर राजा के पास चला गया।
रविदास के शिष्यों में एक ने उनसे भी गंगा स्नान के लिए चलने को कहा। संत ने उत्तर दिया कि गंगा स्नान के लिए मैं अवश्य चलता लेकिन एक व्यक्ति को जूते बनाकर देने का वचन दिया है। यदि आज जूता बनाकर नहीं दिया तो वचन भंग होगा। ऐसे में गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहीं लगा रहेगा। उन्होंने कहा कि अगर मन सही है तो इस कठौती के जल से ही गंगा स्नान का फल प्राप्त होगा। उसी समय से यह कहावत प्रचलित हुई – मन चंगा तो कठौती में गंगा।