स्मृति विशेष

राष्ट्रीयता का भाव भरने वाले दिनकर

हिन्दी साहित्य में रामधारी सिंह दिनकर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने एक छात्र के रूप में दैनिक समस्याओं से संघर्ष किया। वे जब मोकामा से हाईस्कूल के छात्र थे, तब स्कूल के बंद होने तक अर्थात चार बजे तक स्कूल में रहना उनके लिए संभव नहीं था। इसलिए बीच की छुट्टी में ही स्कूल छोड़कर वापिस घर आ जाते और आर्थिक उपार्जन के लिए कोई कार्य करते। इस तरह के संघर्ष में दिनकर ने हिन्दी, संस्कृत, मैथिलि, बंगाली, उर्दू और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया था। भारत की आजादी के अभियान में दिनकर की कविताओं ने देश के युवाओं को काफी प्रभावित किया था। दिनकर ने अपनी कविताओं के माध्यम से गरीबी और शोषण को समझाया। दिनकर ने 1920 में पहली बार महात्मा गांधी को देखा था। भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रश्मिरथी के अंग्रेजी अनुवाद किये जाने पर लीला गुजधुर स्वरूप को सराहना संदेश भेजा था। उन्हें सम्मान देने के उद्देश्य से 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उनकी देशभक्ति कविताओं को संसद भवन के हाल में भी लगवाया था। दिनकर जी के नाम पर दिनकर साहित्य रत्न सम्मान दिया जाता है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने 23 अक्टूबर 2012 को 21 प्रसिद्ध लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को यह सम्मान दिया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी भी दिनकर जी का अक्सर उल्लेख करते थे। भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के समय दिनकर जी क्रांति कारी अभियान की सहायता करने लगे थे लेकिन बाद में उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मार्ग अपना लिया था।
भारत में तो बहुत शांति है। विभिन्न जातियों और पंथों के अनुयायी हिल-मिल कर रहते हैं। एक-दूसरे के पर्व त्योहार में सहभागी होते हैं लेकिन कितने ही देशों में मारकाट मची है। आतंकवादी-अलगाववादी जहां हिंसा फैलाते हैं तो हमने पर्यावरण को क्षति पहुंचा कर कितनी ही समस्याएं आमंत्रित कर ली हैं। स्वर्ग और नर्क की धारणा सिर्फ भारत ही नहीं अन्य देशों में भी है। विभिन्न धर्मों में भी इसे मानते हैं लेकिन इसका व्यावहारिक मतलब धरती पर सुख-समृद्धि और संतुष्टि लाना है। इसी तरह से धरती को स्वर्ग बनाया जा सकता है राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी कालजयी रचना रश्मिरथी में लिखा है –

ऊॅच-नीच का भेद न माने
वही श्रेष्ठ ज्ञानी है
दया, धर्म जिसमें में हो
सबसे वही पूज्य प्राणी है

इस तरह के भाव रखने वाले रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 30 सितम्बर 1908 को बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बाबू रविसिंह और माता का नाम मनरूप देवी था। उनका बचपन ही उनको काव्य का अनुभव बना होगा, तभी तो उन्होंने लिखा –

तेजस्वी सम्मान खोजते
नहीं गोत्र बतला के
पाते हैं जग में प्रशस्ति
अपना करतब दिखला के

बालक रामधारी ने भी पढ़ने में इतनी रूचि दिखाई कि उनके किसान परिवार का नाम गौरव से लिया जाने लगा। मैट्रिक की परीक्षा में उन्होंने सर्वाधिक अंक प्राप्त किये और रामधारी सिंह को भू देव स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। शिक्षा ग्रहण करने के बाद 1950 में वह एक स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिन्दी विभाग के
अध्यक्ष बन गये। उनकी कविताओं में राष्ट्र प्रेम छलका करता था। उन्हें राज्य सभा का सदस्य बनाया गया। भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया। दिनकर उपनाम से वह लिखते थे। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों में कालजयी रचनाएं दीं। दिनकर के काव्य उर्वशी पर भारतीय ज्ञानपीठ का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। इसके अलावा कुरूक्षेत्र रेणुका, रसवंती, रश्मि रथी, परशुराम की प्रतीक्षा प्रसिद्ध काव्य रचनाएं है। भारतीय संस्कृति के चार अध्याय इनकी प्रमुख गद्य रचना है। रामधारी सिंह दिनकर जैसे महान कवियों के लिए उनके ही शब्दों में कहा जा सकता है कि –

नहीं फूलते कुसुभ मात्र
राजाओं के उपवन में
अमित बार खिलते वे
पुर से दूर कुंज कानन में

रामधारी सिंह दिनकर ने ये उद्गार अपनी कालजयी रचना रश्मिरथी में महान योद्धा कर्ण के प्रति व्यक्त किये जो कुंती का पहला पुत्र था और एक सारथी के घर में पाला-पोषा गया था। कर्ण को भेदभाव का दंश झेलना पड़ा और दिनकर जी ने यही बताने का प्रयास किया है कि जब तक भेदभाव को समाप्त नहीं किया जाता, तब तक पृथ्वी पर स्वर्ग नहंीं बन सकता-

धर्मराज यह भूमि किसी की
नहीं क्रीत है दासी
है जन्मना समान परस्पर
इसके सभी निवासी

अर्थात् इस पृथ्वी पर सभी को समान अधिकार मिले हैं यह किसी की खरीदी हुई दासी नहीं है, इसलिए उसके सभी पुत्र एक समान हैं। सभी को खुली रोशनी और खुली हवा चाहिए। विकास करने का सबको अवसर मिलना चाहिए तभी यह पृथ्वी स्वर्ग बनेगी।
कवि प्रश्न उठाता है कि दुर्भाग्य से ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा है-

लेकिन विघ्न अनेक अभी
इस पथ पर अड़े हुए हैं
मानवता की राह रोक कर
पर्वत अड़े हुए हैं
न्यायोचित सुख सुलभ नहीं
जब तक मानव-मानव को
चैन कहां धरती पर तब तक
शांति कहां इस भव को?

कवि कहता है कि इन विघ्न-बाधाओं को दूर करके ही हम पृथ्वी को स्वर्ग बना सकते हैं-
सब हो सकते तुष्ट एक सा, सब सुख पा सकते हैं
चाहें तो पल में धरती को स्वर्ग बना सकते हैं।
राष्ट्र प्रेम से भरी रचनाएं देने वाले दिनकर जी 24 अप्रैल 1974 को हमसे विदा हो गये।

श्रेष्ठा (हिफी)

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