
हिन्दी के छायावादी कवियों में सूर्यकांत त्रिपाठी निराजा का विशेष स्थान है। उनकी एक कविता ‘हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र’ में एक पक्ति है –
। निराला जी जन्म कब हुआ, इस पर मत भेद हैं। क्योंकि उनके कहानी संग्रह लिली में उनकी जन्म तिथि 21 फरवरी 1899 लिखी है। निराला अपना जन्म दिन बसंत पंचमी को मनाते थे। इसी दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती का जन्म भी मनाया जाता है। इसलिए निराला को सरस्वती पुत्र कहा गया है। उनकी कविताओं में सीख है तो समाज को जमकर प्रताड़ित भी किया गया है। इसलिए वे महाप्राण भी कहे गये। इनके पिता पंड़ित राम सहाय तिवारी उन्नाव (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाली की नौकरी करते थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म पश्चिम बंगाल के मेदिनी पुर जिले में फरवरी 1896 में हुआ था। उन्होंने हाईस्कूल तक हिन्दी, संस्कृत और बंगला का अध्ययन किया। हाईस्कूल तक ही औपचारिक शिक्षा हुई। बाल्यावस्था में ही मां की ममता से वंचित हो गये और युवावस्था तक पहुंचते पहुंचते पिता भी साथ छोड़ गये। इसके बाद महामारी में उनकी पत्नी मनोहरा देवी चाचा, भाई तथा भाभी भी स्वर्ग सिधार गये। जीवन के झंझावातो ने निराला को जो अनुभव दिये, उसी से अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरूपमा, कुल्ली भाट जैसे उपन्यास और लिली, चतुरी चमार, सुकुल की बीवी जैसे कहानी संग्रह और जूही की कली, अनामिका, परिमल, गीतिका, कुकुरमुत्ता, अगिमा जैसे काव्य संग्रह हिन्दी साहित्य को मिले। महान साहित्यकार निराला ने प्रयागराज (पूर्व इलाहाबाद) में 15 अक्टूबर 1971 को प्राण त्यागे। अभाव की जिंदगी ने उन्हें बहुत प्रेरणा दी थी। निराला ने तोडती पत्थर नामक कविता में लिखा –
वह तोड़ती पत्थर
देखा उसे मैने इलाहाबाद के पथ पर
कोई न छायादार
पेड़, वह जिसके तले बैठी स्वीकार।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, आधुनिक भारत के सबसे प्रसिद्ध कवी थे। उनका जन्म 21 फरवरी 1886 को बंगाल के मिदनापुर (वर्तमान उत्तरप्रदेश) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही वे कवी सम्मलेन में जाया करते थे और वहाँ जाकर उन्हें काफी प्रसिद्धि हासिल कर ली थी। बंगाली के विद्यार्थी रहते हुए, निराला को शुरू से ही संस्कृत भाषा में काफी रूचि थी। उस समय अपने ज्ञान और आध्यात्म की बदौलत उन्होंने बहुत सी भाषाओ जैसे बंगाली, अंग्रेजी, संस्कृत और हिंदी पर अपनी पकड़ जमा ली थी। निराला का जीवन काफी थोडा और दुर्घटनाओ से भरा हुआ था। उनके पिता पंडित रामसहाय त्रिपाठी एक सरकारी नौकर थे और एक अत्याचारी इंसान थे। उनकी माता की मृत्यु तभी हो गयी थी जब वे छोटे थे। निराला ने बंगाली भाषा में प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। जबकि मेट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद, उन्होंने घर पर बैठकर ही संस्कृत और अंग्रेजी साहित्यों को पढना शुरू किया। इसके बाद अचानक वे लखनऊ स्थानांतरित हो गये और वहा वे उन्नाव जिले के गढ़ाकोला गाँव में रहने लगे, जो उनके पिता का पैतृक गाँव भी था। इसके बाद निराला वही पले-बढे और वहा रहते हुए उन्हें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, और रबिन्द्रनाथ टैगोर से काफी प्रेरणा मिली। युवावस्था में ही विवाह करने के बाद निराला ने अपनी पत्नी मनोहरा देवी से हिंदी भाषा का ज्ञान लिया। इसके तुरंत बाद उन्होंने बंगाली की बजाए हिंदी में कविताए लिखना शुरू की। बचपन में देखे गये बुरे दिनों के बाद निराला को अब अपनी पत्नी के साथ कुछ अच्छा समय व्यतीत करने का समय मिला था। लेकिन उनके जीवन का यह आनंद भी ज्यादा समय तक नही टिक सका और जब वे 20 साल के थे तभी उनकी पत्नी की मृत्यु हो गयी और इसके कुछ समय बाद ही उनकी बेटी की भी मृत्यु हो गयी। इसके बाद निराला को आर्थिक मुश्किलों का भी सामना करना पड़ रहा था। इस काल में उन्होंने बहुत से प्रकाशकों के लिए काम भी किया, उन्होंने प्रूफ-रीडर और समन्वयक के रूप में काम किया था।
उनका ज्यादातर जीवन बोहेमियन परंपरा के अनुसार व्यतीत हुआ। जब वे अपने लेखो में अधिक या कम विद्रोही होने लगे तो लोग उन्हें जल्दी नही अपनाते थे। अपने द्वारा लिखे गये लेखो के जवाब में उन्हें सिर्फ और सिर्फ उपहास ही उपहास मिले। इन सभी चीजो ने उनके जीवन के अंतिम क्षणों में उन्हें पागलपन का शिकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने लेखो में सामाजिक शोषण और सामाजिक भेदभाव के मुद्दे को बड़े ही गंभीर रूप से व्यक्त किया है।
वर्तमान में निराला उद्यान, एक भवन, निराला प्रेक्षाग्रह और डिग्री कॉलेज, महाप्राण निराला डिग्री कॉलेज का नाम उन्ही के नाम पर रखा गया है। प्रयागराज के दारागंज मार्केट स्क्वायर में उनके जीवन क्रम को स्थापित किया गया है। यह वही जगह है जहाँ उन्होंने अपना ज्यादातर समय व्यतीत किया है।
निराला ने महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पन्त और जयशंकर प्रसाद के साथ मिलकर छायावाद अभियान का बीड़ा उठाया था। निराला के परिमल और अनामिका को वास्तविक छायावाद हिंदी साहित्य का नाम दिया गया है। अपने जीवन काल में उन्हें ज्यादा पहचान नही मिली थी। उनकी कविताओ का प्रकार उस समय काफी क्रांतिकारी था, लेकिन उनके स्वभाव के चलते उनकी ज्यादातर कविताए प्रकाशित नही हो पाई। अपने छंदों से उन्होंने सामाजिक शोषण के खिलाफ आवाज भी उठाई थी। अपने कार्यो में उन्होंने वेदांत, राष्ट्रीयता, रहस्यवाद और प्रकृति के प्यार का खासा मिश्रण किया है। उनकी रचनाओ का विषय हमेशा से ही ऐतिहासिक, धार्मिक, प्राकृतिक, सामाजिक और राजनीतिक रहा है। उन्होंने ही अपनी कविताओ में सौन्दर्य दृश्य, प्राकृतिक प्रेम और आजादी जैसी चीजो को शामिल किया है। इसके बाद छायावादी युग में उन्हों कविताओ के नए रूप को उजागर किया। सरोज स्मृति नाम की उनकी कविता काफी प्रसिद्ध है, जिसमे उन्होंने अपनी बेटी के प्रति उमड़े प्यार और भावनाओ का वर्णन बड़ी खूबसूरती से किया है। (हिफी)