स्मृति विशेष

एक नाटक की महिला पात्र लतिका पर उनका नाम लता रख दिया

1974 में पहली बारगिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने 25 हजार गाना गाने का रिकॉर्ड लता दी के नाम

भारत की स्वर साम्राज्ञी नहीं रही

जिसके गाने पर संगीत कार अपना राग भूल जाते थे, बच्चे लोरियां सुनकर सो जाते थे और जिन्होंने प्रदीप जी का कालजयी गीत ऐ मेरे वतन के लोगो, जरा आंख में भर लो पानी सुनाकर फफक फफक कर रोने पर मजबूर कर दिया,वही स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर 92 साल की आयु में 6 फरवरी को हम सब को छोड़कर चली गयी । भारत की स्वर कोकिला पूरे विश्व में सुरों की साम्राज्ञी मानी जाती थीं ।हमेशा से यह कहा जा रहा है कि उनकी जैसी आवाज दुनिया भर में न किसी की थी न किसी की होगी। सुरों के मामले में वे महानतम में महानतम थीं। बहुत छोटी सी उम्र में से ही लता दीदी को स्वर कोकिला कहा जाने लगा था।संगीत से फिल्मों तक उनका सफर बहुत दिलचस्प रहा है। उनका जन्म 28 सितंबर 1929 को तत्कालीन इंदौर स्टेट में हुआ था। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर मराठी और कोंकणी संगीतकार थे। इसलिए लता दी का जन्म ही संगीत के साथ हुआ था।लता मंगेशकर दीनानाथ मंगेशकर की दूसरी पत्नी शेवंती की संतान थीं। दीनानाथ मंगेशकर की पहली पत्नी का नाम नर्मदा था, लेकिन उनकी मृत्यु के कारण दीनानाथ मंगेशकर ने उनकी छोटी बहन शेवंती से शादी कर ली थी। दीनानाथ ने अपने सरनेम में मंगेशकर खुद जोड़ा था। उन्होंने अपने पैतृक गांव गोवा में मंगेशी को अपना सरनेम बना लिया। लता दीनानाथ की सबसे बड़ी संतान थीं। लता दीदी का जन्म का नाम हेमा था, लेकिन बाद में उनके पिता ने अपने एक नाटक की महिला पात्र लतिका पर उनका नाम लता रख दिया।
उन्होंने 50 हजार से अधिक गानों को अपना स्वर दिया।
लता को कई लोग मां सरस्वती का अवतार भी मानते हैं। लता ने हिंदी, मराठी, बंगाली समेत 36 से अधिक भाषाओं में गाना गाकर एक रिकॉर्ड बनाया है। मध्यप्रदेश के इंदौर में जन्मी लता के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक मराठी संगीतकार, शास्त्रीय गायक और थिएटर एक्टर थे। लता की मां गुजराती थीं। मूल रूप से गोवा के मंगेशी के रहने वाले दीनानाथ का सरनेम हार्डीकर था, जिसे बदलकर उन्होंने मंगेशकर कर दिया। लता मंगेशकर के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर की माता जी येसुबाई गोवा के मंगेशी गांव की एक देवदासी थीं. यह देवदासी समाज अब गोमांतक मराठा समाज के नाम से जाना जाता है। उनके पिता पंडित गणेश भट्ट नवाथे हर्डीकर, इसी मंगेशी गांव के मंदिर के पुजारी थे, चूंकि पंडित दीनानाथ एक देवदासी के पुत्र थे, तो पिता का नाम मिलना असंभव था, इसलिए उन्होंने अपना उपनाम मंगेशकर रख लिया था। येसुबाई मंदिर में भजन गाती थीं और दीनानाथ के मन संगीत के प्रति अपार प्रेम अपनी मां से मिला। दीनानाथ को अपनी पुत्री लता की सुरीली आवाज के बारे में पता ही नहीं था। लता शुरू से ही संगीत में काफी दिलचस्पी लेती थीं,लेकिन प्रॉपर ट्रेनिंग नहीं लेती थीं। पिता को संगीत की प्रैक्टिस करते देख, शिष्यों को सिखाते सुन उन्होंने कई राग सीख लिये थे। कहते हैं कि पिता जब एक शिष्य को राग पूरिया धनश्री सिखा रहे थे, उस लड़के से सुर लग ही नहीं रहे थे। आंगन में खेलती लता ने तुरंत अपने पिता के स्वरों की नकल करते हुए इस कठिन राग को बड़ी आसानी से गा दिया। बेटी की इस प्रतिभा के बारे में अचानक पता चलने पर पंडित दीनानाथ हैरान रह गए थे। फिर उन्होंने लता को संगीत की विधिवत शिक्षा देनी शुरू कर दी।
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दिग्गज उस्ताद बड़े गुलाम अली खां के संदर्भ में कहा जाता है कि वे खुद इस कोकिल-कंठ के बहुत मुरीद थे। बताया जाता है कि लता जी की आवाज में एक फिल्मी गीत सुनकर उस्ताद ने एक कार्यक्रम में राग विशेष से जुड़ी अपनी प्रस्तुति को छोड़ दिया था। दरअसल, उस्ताद बड़े गुलाम अली खां तत्कालीन बंबई (अब मुंबई) में एक कार्यक्रम के सिलसिले में पहुंचे थे। यहां आने के बाद उन्होंने लता मंगेशकर की आवाज में एक हिंदी फिल्मी गीत सुना। यह गाना राग यमन में था। इसे सुनकर उस्ताद इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने राग यमन की अपनी प्रस्तुति बिसरा दी।
इसी प्रकार कहा जाता है कि लता दी ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाने से रूला दिया था। बहुत कम लोगों को पता है कि ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाने को गाने के लिए पहले स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर तैयार नहीं थीं। बहुत मान-मनौव्वल के बाद ही उन्होंने यह गीत गाया था। लता दी पहले यह गीत अपनी छोटी बहन आशा के साथ गाना चाहती थीं लेकिन वह समय पर पहुंच नहीं पायीं। बाद में लता मंगेशकर को किसी तरह दिल्ली लाया गया और उन्होंने इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू समेत पूरे देश की आंखों में आंसू ला दिया था। हालांकि तब लता दी को यह पता नहीं था कि यह गाना इतना मशहूर हो जाएगा कि भारत के इतिहास के सबसे मशहूर राष्ट्रभक्ति गीत बन जाएगा। राष्ट्रभक्ति को मार्मिकता से जोड़ने वाले गानों में ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाने से बढ़कर शायद ही कोई गाना हो।
सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के बारे में माना जा रहा है कि अब तक उन्होंने 36 भाषाओं में 50 हजार से अधिक गाने गाए हैं। इनमें कुछ गाने उन्होंने विदेशी भाषाओं में भी गाये हैं। 1974 में पहली बार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने 25 हजार गाना गाने का रिकॉर्ड लता दी के नाम दर्ज किया था हालांकि जल्द ही यह रिकॉर्ड मोहम्मद रफी का हो गया जो उस वक्त तक 30 हजार गाने रिकॉर्ड कर चुके थे लेकिन 1984 में गिनीज बुक ने फिर से लता मंगेशकर के नाम सबसे ज्यादा गाने का रिकॉर्ड अंकित कर दिया और 1991 तक कई स्रोतों से यह पता चला कि स्वर कोकिला भारत रत्न ने 50 हजार से ज्यादा गाना गाए हैं।
लता जी ने 1927 में पांच साल की उम्र में पिता दीनानाथ मंगेशकर से संगीत की शिक्षा शुरू की। सन 1942 में उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर का निधन हो गया। नवयुग चित्रपट के मालिक लता के गार्जियन बन गये।उन्होंने लता को सिंगर और एक्ट्रेस बनाने का फैसला लिया।
लता ने 1942 में मराठी फिल्म के लिए पहला गाना गाया लेकिन अंत समय में इसे रिजेक्ट कर दिया गया। इसी साल विनायक ने मराठी फिल्म पहली मंगला गौर में लता दी को अभिनेत्री की भूमिका दी और इसी फिल्म के लिए गाना गंवाया। इसके बाद 1943 में पहली बार मराठी फिल्म के लिए हिन्दी में गाना गाया- ‘माता एक सपूत की, दुनिया बदल दे तू’। यह गीत लोकप्रिय हुआ और 1945 में लता मंगेशकर मुंबई आ गईं। इसके बाद भिंडीबाजार घराना के उस्ताद अमन अली खान से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा शुरू की। इसके बाद 1946 में बसंत जोगलेकर की हिन्दी फिल्म ‘आप की सेवा में’ के लिए ‘पा लागू कर जोरी’ गाना गाया। सफर आगे बढता रहा और 1950 में लता मंगेशकर देश की सबसे लोकप्रिय सिंगर बन गईं। लता ने
1953 में झांझर फिल्म की म्यूजिक डायरेक्टर का दायित्व भी निभाया था। भारत पर
1962 में विश्वासघाती हमले के बाद देश में नयी चेतना लाने के लिए ही कवि प्रदीप से गीत लिखवाया गया ओ मेरे वतन के लोगो और इसे गाया था लता मंगंशकर ने। इस गाने को सुनकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखों में आंसू छलक आये थे।
सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को1969 में पद्म भूषण,1989 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार,1997 में महाराष्ट्र भूषण अवार्ड,
1999 में एनटीआर नेशनल अवार्ड,1999 में पद्म विभूषण,1999 में जी सिने लाइफ टाइम अचीवमेंट,2001 में भारत रत्न और 2007 में लीजिएन ऑफ ऑनर अवार्ड से नवाजा गया ।
उनको पांच फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिले।
लता जी पांच फिल्मों की म्यूजिक डायरेक्टर रहीं। उन्होंने 1960 में राम राम पवहाना,
1963 में मराठा टिटुका मेलवावा,1963 में ही मोतियांची मंजुला,1965 में सधी मनसे और 1963 में तंबडी माती का संगीत निर्देशन किया । लति जी ने चार फिल्मों का प्रोडक्शन भी किया।सन 1953 में वदाई (मराठी),1953 झांझर (हिन्दी),1955 में कंचन गंगा (हिन्दी) और1990 में लेकिन (हिन्दी) जैसी कलात्मक फिल्म बनायी थी। अब उनकी यादें ही गुनगनाने को विवश करती रहेंगी।

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