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मध्य प्रदेश में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का रास्ता साफ: सीएम यादव

जबलपुर। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने वह जनहित याचिका निरस्त कर दी, जिसके माध्यम से ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के राज्य शासन के 2019 के निर्णय को चुनौती दी गई थी। 2021 में यूथ फार इक्वलिटी संस्था की ओर से दायर जनहित याचिका पर ही चार अगस्त 2023 को अंतरिम आदेश में कोर्ट ने 87रू13 का फार्मूला निर्धारित किया था।
इसके अंतर्गत राज्य सरकार के निर्णय अनुसार ओबीसी के लिए बढ़ाए गए 13 प्रतिशत पदों को होल्ड कर बाकी 87 प्रतिशत पदों पर पूर्ववत आरक्षण व्यवस्था से भर्ती लागू रखने के निर्देश दिए गए थे। याचिका के साथ इस आदेश को भी निरस्त करने के साथ कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ओबीसी आरक्षण को लेकर कोई बाधा नहीं है। ऐसे में प्रदेश में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता साफ हो गया है। होल्ड 13 प्रतिशत पदों पर भी भर्ती हो सकेगी।
विशेष अधिवक्ता विनायक प्रसाद शाह के अनुसार यूथ फार इक्वलिटी द्वारा दायर याचिका में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह आरक्षण संविधान के प्रविधानों का उल्लंघन करने के साथ ही समानता के अधिकार को प्रभावित करता है। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश के तत्कालीन महाधिवक्ता द्वारा 26 अगस्त, 2021 को दिए गए अभिमत के आधार पर सामान्य प्रशासन विभाग ने दो सितंबर, 2021 को एक परिपत्र जारी कर ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ देने की अनुमति प्रदान की थी। इनमें नीट पीजी प्रवेश परीक्षा 2019-20, पीएससी द्वारा मेडिकल आफिसर भर्ती-2020 और हाई स्कूल शिक्षक भर्ती के पांच विषय सम्मलित थे। हाई कोर्ट ने चार अगस्त, 2023 को अंतरिम आदेश के तहत सामान्य प्रशासन विभाग के इस परिपत्र पर रोक लगा दी थी। आशय यह था कि सभी नियुक्तियों में ओबीसी को पूर्ववत 14 प्रतिशत आरक्षण ही दिया जाएगा।
जनहित याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी व मराठा रिजर्वेशन सहित अन्य न्यायदृष्टांतों में स्पष्ट व्यवस्था दी है कि किसी भी स्थिति में कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र के कारण प्रदेश में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक हो गया है।
आतिशी दुबे मेडिकल से जुड़े मामले में ओबीसी आरक्षण को पहली बार चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने 19 मार्च, 2019 को ओबीसी के लिए बढ़े 13 प्रतिशत आरक्षण पर रोक लगाई थी। इसी आदेश के अंतर्गत कई नियुक्तियों में भी रोक लगाई गई। यह याचिका दो सितंबर, 2024 को हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित हो गई। इसके अलावा राज्य शासन ने ओबीसी आरक्षण से जुड़ी लगभग 70 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करा लीं, जिन पर अभी निर्णय नहीं आया है।

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