बेवजह हिरासतों में भेजने वाले मजिस्ट्रेट पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जो न्यायिक दंडाधिकारी या न्यायिक मजिस्ट्रेट बेवजह लोगों को हिरासत में भेजते हैं, उन्हें कौशल बढ़ाने के लिए न्यायिक अकादमियों में भेजना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस्ट संजय किशन कौल, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने यह व्यवस्था दी है। अदालत ने कहा है कि ऐसे मैजिस्ट्रेट से न्यायिक कार्य वापस ले लिया जाना चाहिए और ट्रेनिंग के लिए न्यायिक अकादमियों में भेजा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के जजों ने खासकर उत्तर प्रदेश में इस तरह के मामलों का मुद्दा भी उठाया है। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने कहा है कि एक तो ऐसे लोगों को हिरासत में भेजा जा रहा है, जिसकी आवश्यकता नहीं है और फिर आगे की मुकदवेबाजी का अवसर पैदा कर दिया जाता है। अदालत ने कहा है कि यह ऐसी बात है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और हमारा मानना है कि यह हाई कोर्ट की ड्यूटी है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनकी निगरानी में निचली अदालतें इस देश के कानून का पालन करें।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस्ट संजय किशन कौल, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने कहा है कि श्अगर कुछ मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसे आदेश पारित किए जाते हैं तो यह जरूरी पड़ने पर न्यायिक कार्य वापस भी लिया जा सकता है और ऐसे मजिस्ट्रेट को न्यायिक अकादमियों में भेजना चाहिए ताकि वे वहां पर कुछ समय के लिए अपने कौशल को अपग्रेड करें।श्
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे आदेश सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश राज्य में पास किए गए हैं और कहा है कि इसके बारे में इलाहाबाद हाई कोर्ट के कार्यकारी चीफ जस्टिस को जानकारी दी जाए। कोर्ट ने कहा है कि श्ऐसे आदेश बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश से होते हैं और हमें जानकारी दी जाती है कि खासकर हाथरस, गाजियाबाद और लखनऊ की अदालतों से पारित आदेश इस कानून की अनदेखी करते नजर आते हैं।श् बेंच ने कहा कि श्हम इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील को बुलाते हैं, ताकि माननीय ऐक्टिंग चीफ जस्टिस को जानकारी दी जा सके, जिससे वह आवश्यक निर्दश जारी कर सकें, जिससे ऐसी घटनाएं न हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणियां सतेंदर कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो और अन्य के मामले में सुनवाई के दौरान की है। अदालत इसी मामले में जुलाई 2022 के अपने फैसले की तामील से संबंधित मामले की सुनवाई पर यह बातें कही हैं। अदालत ने अन्य बातों के अलावा गिरफ्तारी और ट्रायल के दौरान सीआरपीसी के प्रावाधनों को लागू करने पर जोर दिया था। अदालत ने उस फैसले में यह भी कहा था कि अदालतें जमानत याचिकाओं पर दो हफ्ते के भीतर फैसला करें, सिर्फ उन मामलों को छोड़कर जिसमें कानून के अलग प्रावधान हैं।