घोटाले में फंसा एक और मुख्यमंत्री

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
जमीन घोटाला अब सामान्य नेता ही नहीं कर रहे हैं बल्कि इसके आरोप में मुख्यमंत्रियों के नाम भी आ रहे हैं। झारखण्ड के मुख्यमंत्री के तौर पर ही हेमंत सोरेन पर जमीन घोटाले में मुकदमा चला और जेल भेजे गये लेकिन वहां की जनता ने पुनः उनकी पार्टी को ही सबसे बड़ी पार्टी के रूप में चुना। झारखण्ड मुक्ति मोर्चे के नेतृत्व में ही वहां सरकार बनी। अब जमीन के एक घोटाले ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। यह घोटाला मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) के नाम से जाना जा रहा है। आरटीआई कार्यकर्ता की शिकायत पर वहां के राज्यपाल ने मुख्यमंत्री के खिलाफ जांच बैठाई। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा जमीन मुडा द्वााा अधिग्रहीत की गयी थी। इसके बदले में मैसूर के पॉश इलाके में 14 साइटें उन्हें दी गयीं। विपक्ष का आरोप है कि सीएम की पत्नी को महंगे इलाके में मुआवजा देने के लिए यह कार्रवाई की गयी थी। इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सिद्धारमैया की पत्नी समेत अन्य आरोपितों की 142 सम्पत्तियों को जब्त कर लिया है। इस प्रकार लगभग 300 करोड़ की सम्पत्ति को ईडी ने अपने कब्जे में लेकर मुख्यमंत्री को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
प्रवर्तन निदेशालय ने मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी मामले में बड़ी कार्रवाई करते हुए कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया की पत्नी और अन्य लोगों की संपत्ति जब्त कर ली है। ईडी ने सिद्धारमैया की पत्नी समेत अन्य आरोपियों की कुल 142 संपत्तियों को जब्त किया है। इन संपत्तियों का अनुमानित मूल्य करीब 300 करोड़ रुपये है। ईडी ने यह कार्रवाई लोकायुक्त पुलिस मैसूर द्वारा दर्ज भारतीय दंड संहिता, 1860 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत दर्ज प्राथमिकी के आधार पर की है। इस मामले में सीएम सिद्धारमैया और अन्य पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। यह जब्ती एमयूडीए द्वारा भूमि आवंटन में कथित अनियमितताओं के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग की जांच का हिस्सा है। ईडी ने एक बयान में कहा कि जब्त की गई संपत्तियां विभिन्न व्यक्तियों के नाम पर रजिस्टर्ड हैं, जो रियल एस्टेट व्यवसायी और एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। आरोप है कि सिद्धरमैया ने एमयूडीए द्वारा अधिग्रहीत तीन एकड़ 16 गुंटा भूमि के बदले अपनी पत्नी बीएम पार्वती के नाम पर 14 भूखंडों के लिए मुआवजा पाने के लिए अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल किया। इसमें आरोप लगाया गया है, ‘मूल रूप से यह भूमि एमयूडीए द्वारा 3,24,700 रुपये में अधिग्रहीत की गई थी। इस पॉश इलाके में 14 भूखंडों के रूप में दिया गया मुआवजा 56 करोड़ रुपये का है।’
इस प्रकार कर्नाटक का मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मुडा) भूमि घोटाला एक बार फिर चर्चा में है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की उस याचिका को रद्द कर दिया था, जिसमें उन्होंने राज्यपाल के आदेश को चुनौती दी थी। कर्नाटक के राज्यपाल ने 17 अगस्त को मुडा भूमि घोटाले में मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी दी थी। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद मुख्यमंत्री की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। उधर मुख्यमंत्री लगातार सारे आरोपों को झूठा बता रहे हैं। मुडा भूमि घोटाला क्या है? इस मामले में किस पर और क्या आरोप लगे हैं? मामले की शुरुआत कैसे हुई? राज्यपाल की तरफ से इस मामले में क्या कार्रवाई की गई? मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण या मुडा कर्नाटक की एक राज्य स्तरीय विकास एजेंसी है, जिसका गठन मई 1988 में किया गया था। मुडा का काम शहरी विकास को बढ़ावा देना, गुणवत्तापूर्ण शहरी बुनियादी ढांचे को उपलब्ध कराना, किफायती आवास उपलब्ध कराना, आवास आदि का निर्माण करना है। मुडा शहरी विकास के दौरान अपनी जमीन खोने वाले लोगों के लिए एक योजना लेकर आई थी। 50-50 नाम की इस योजना में जमीन खोने वाले लोग विकसित भूमि के 50 प्रतिशत के हकदार होते थे। यह योजना 2009 में पहली बार लागू की गई थी। जिसे 2020 में उस वक्त की भाजपा सरकार ने बंद कर दिया। सरकार द्वारा योजना को बंद करने के बाद भी मुडा ने 50-50 योजना के तहत जमीनों का अधिग्रहण और आवंटन जारी रखा। सारा विवाद इसी से जुड़ा है। आरोप है कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को इसी के तहत लाभ पहुंचाया गया।
आरोप है कि मुख्यमंत्री की पत्नी की 3 एकड़ और 16 गुंटा भूमि मुडा द्वारा अधिग्रहित की गई। इसके बदले में एक महंगे इलाके में 14 साइटें आवंटित की गईं। मैसूर के बाहरी इलाके केसारे में यह जमीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन स्वामी ने 2010 में उपहार स्वरूप दी थी। आरोप है कि मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किए बिना ही देवनूर तृतीय चरण की योजना विकसित कर दी। मुआवजे के लिए मुख्यमंत्री की पार्वती ने आवेदन किया जिसके आधार पर, मुडा ने विजयनगर फेज में 14 साइटें आवंटित कीं। यह आवंटन राज्य सरकार की 50.50 अनुपात योजना के तहत कुल 38,284 वर्ग फीट का था। जिन 14 साइटों का आवंटन मुख्यमंत्री की पत्नी के नाम पर हुआ उसी में घोटाले के आरोप लग रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि पार्वती को मुडा द्वारा इन साइटों के आवंटन में अनियमितता बरती गई है।
आरोप है कि विजयनगर में जो साइटें आवंटित की गई हैं उनका बाजार मूल्य केसारे में मूल भूमि से काफी अधिक है। विपक्ष ने अब मुआवजे की निष्पक्षता और वैधता पर भी सवाल उठाए हैं। हालांकि, यह भी दिलचस्प है कि 2021 में भाजपा शासन के दौरान ही विजयनगर में सीएम की पत्नी पार्वती को नई साइट आवंटित की गई थी। आरोपों पर सीएम का क्या कहना है? मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने आवंटन का बचाव करते हुए कहा कि यह 2021 में भाजपा सरकार के तहत किया गया था। उन्होंने कहा कि विजयनगर में साइटें इसलिए दी गईं क्योंकि केसारे में देवनूर फेज 3 इलाके में साइटें उपलब्ध ही नहीं थीं। सिद्धारमैया के कानूनी सलाहकार एएस पोन्नन्ना ने दावा किया कि विजयनगर में मुआवजे वाली जगह का मूल्य केसारे में मूल जमीन से बहुत कम है। उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अनुसार, पार्वती सरकार से 57 करोड़ रुपये अधिक पाने की हकदार हैं, क्योंकि उन्हें मुआवजे के रूप में मिली भूमि की कीमत महज 15-16 करोड़ रुपये है, जो कि केसारे में उनकी मूल जमीन से बहुत कम है। पोन्नन्ना ने आगे बताया कि मुआवजा स्थल का क्षेत्रफल 38,284 वर्ग फीट है जबकि मूल भूमि 1,48,104 वर्ग फीट की थी। उन्होंने दावा किया कि पार्वती ने देरी से बचने के लिए विजयनगर साइट को चुना, भले ही इसका बाजार मूल्य कम था।
आरोपों के जवाब में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि उनकी जमीन अधिग्रहित कर पार्क बना दिया गया और उन्हें मुआवजे के तौर पर एक प्लॉट दिया गया। आवंटन 2021 में भाजपा के कार्यकाल के दौरान किया गया था। सिद्धारमैया ने कहा, अगर उन्हें लगता है कि यह कानून के खिलाफ है, तो उन्हें बताना चाहिए कि यह कैसे सही है। अगर जमीन की कीमत 62 करोड़ रुपये है, तो उन्हें प्लॉट वापस ले लेना चाहिए और हमें उसी के अनुसार मुआवजा देना चाहिए।
राज्यपाल ने 17 अगस्त को सीएम के खिलाफ मुडा मामले में मुकदमा चलाने की मंजूरी दी। राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने अपने आदेश में मंत्रिमंडल की मुकदमा न चलाने वाली सलाह को अस्वीकार कर दिया। राज्यपाल ने आदेश में कहा कि मुख्यमंत्री पर जो आरोप लगाए गए हैं, उसकी जांच करने के लिए समिति बनाने के लिए सक्षम नहीं है। (हिफी)