लेखक की कलम

भ्रष्टाचार पर प्रहार

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 मंे भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का मुद्दा उठाकर ही कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को पराजित किया था। उस समय 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कोल आवंटन घोटाला, महाराष्ट्र का आदर्श कालोनी घोटाला जैसे कई मामले जनता के बीच चर्चित थे। जनता ने भाजपा पर भरोसा जताया जो आज तक बरकरार है क्योंकि 2019 मंे भी नरेन्द्र मोदी के ही नेतृत्व में भाजपा ने प्रचण्ड बहुमत से सरकार बनायी है। इस बीच सरकार ने योजना आयोग की जगह नीति आयोग, नोटबंदी, जीएसटी जैसे कई कदम भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उठाए लेकिन भ्रष्टाचार को अपेक्षित मात्रा मंे समाप्त नहीं किया जा सका। यह सच है कि भ्रष्टाचार को पूरी तरह समाप्त करना संभव नहीं है लेकिन आम जनता को यह अहसास तो होना चाहिए कि कार्रवाई हो रही है। उत्तर प्रदेश मंे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बुलडोजर की चर्चा इसीलिए तो होती है। गैर भाजपा शासित राज्य भी बुलडोजर चलवाने लगे हैं। बहरहाल, अभी 11 मई को केन्द्र सरकार के रेलवे मंत्रालय ने रेल विभाग के इतिहास मंे पहली बार 19 वरिष्ठ अधिकारियों पर कार्रवाई कर उन्हंे निकाल दिया है। भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे की तरफ बहने वाला गंदा नाला है, यह इससे साबित हो गया है। उत्तर प्रदेश मंे योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अकर्मण्यता के चलते पुलिस के सबसे बड़े अफसर डीजीपी को उनकी कुर्सी से हटा दिया है। इस तरह से भ्रष्टाचार पर प्रहार से नौकरशाह में सार्थक संदेश जाएगा और भ्रष्ट लोगों की आंखें खोलने वाला हो सकता है। ध्यान रहे कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने रेल मंत्रालय को निर्देश दिया था कि नान परफार्मेन्स और भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी तय की जाए और उनके खिलाफ कार्रवाई भी हो क्योंकि भ्रष्टाचार की दीमकें हमारी व्यवस्था को खोखला कर रही हैं।
भारतीय रेलवे के इतिहास में विभाग ने अपने अधिकारियों के खिलाफ अबतक की सबसे बड़ी कार्रवाई करते हुए अपने 19 अधिकारियों को नौकरी से निकाल दिया है। मोदी सरकार ने खराब प्रदर्शन करने वाले और अक्षम अधिकारियों पर बड़ी कार्रवाई करते हुए सरकारी सेवकों की समय समीक्षा के तहत केंद्रीय सिविल सेवा के पेंशन नियम, 1972 के तहत 19 अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया है। इस ऐतिहासिक कार्रवाई में जो 19 अफसर नौकरी से बाहर किए गए हैं उनमें 10 ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर के अधिकारी बताए जा रहे हैं। ये सभी अधिकारी पश्चिमी रेलवे, एमसीएफ,
मध्य रेलवे, सीएलडब्ल्यू, नार्थ फ्रंट रेलवे, पूर्व रेलवे, दक्षिण पश्चिमी रेलवे, डीएलडब्ल्यू, उत्तर मध्य रेलवे, आरडीएसओ, ईडी सेल का सेलेक्शन ग्रेट और उत्तर रेलवे में विभिन्न पदों पर तैनात थे। खास बात ये है कि अश्विनी वैष्णव के केंद्रीय रेल मंत्री की जिम्मेदारी संभालने के बाद से अब तक करीब
77 अधिकारियों ने वीआरएस ले लिया है। सूत्रों के अनुसार पिछले 11 महीने में 96 अधिकारियों को वीआरएस दिया गया है। दरअसल इस तरह की कार्रवाई से मंत्रालय और केंद्र सरकार की ओर से साफ संदेश है कि काम के दौरान लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी और इन नियमों के तहत सरकार काम की समीक्षा कर जबरिया वीआरएस भी दे सकती है।
रेल मंत्री वैष्णव ने पिछले महीने खजुराहो में रेलवे अधिकारियों को चेतावनी देते हुए कहा था कि जो भी अधिकारी काम नहीं कर सकते, वो वीआरएस लेकर घर बैठ जाएं अन्यथा उन्हें बर्खास्त किया जाएगा। ये बात उन्होंने तब कही थी, जब ललितपुर-सिंगरौली रेलवे परियोजना में हो रही देरी को लेकर कुछ रेलवे अधिकारी सीधी जिले की सांसद रीति पाठक से प्राप्त सुझावों पर जानकारी और उनके सवालों का जवाब नहीं दे पाए थे।
यह कटु सत्य है कि भ्रष्टाचार से रेलवे की हालत खराब है। बहुत पहले केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की रिपोर्ट में यह बातें सामने आई थीं। उसने उत्तर रेलवे को इस मामले में पहले नंबर पर रखा। एसी बोगियों में कूलिंग ठप होना, ट्रैक के दोहरीकरण में घटिया निर्माण सामग्री का इस्तेमाल और यात्री सुविधाओं के कामों में कमीशनखोरी में उत्तर रेलवे अव्वल है। सीवीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन साल के दौरान रेल कर्मियों और अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के कुल 18,600 मामले दर्ज हुए थे। इंजीनियरिंग, कॉमर्शियल व मैकेनेकिल से लेकर ऑपरेटिंग तक हर विभाग में भ्रष्ट अधिकारियों का बोलबाला मिला था।
सीवीसी की रिपोर्ट के मुताबिक तीन साल के दौरान रेल कर्मियों और अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के कुल 18,600 मामले दर्ज हुए। इसमें 6,121 मामलों के साथ उत्तर रेलवे टॉप पर थे। वर्ष 2016-17 में रेलवे पर भ्रष्टाचार के कुल 11,200 मामले दर्ज हुए थे। इसमें 8852 मामलों को निपटा दिया गया था, जबकि 2348 केस लंबित थे। 1054 मामले ऐसे हैं, जो छह महीने से अधिक समय से लंबित थे। सीवीसी की रिपोर्ट के अनुसार, भ्रष्टाचार की मुख्य वजह है अफसरों और यूनियन पदाधिकारियों का एक ही मंडल में वर्षों तक डटे रहना। मसलन, उत्तर रेलवे में लखनऊ, दिल्ली, मुरादाबाद, फिरोजपुर व अम्बाला पांच मंडल हैं।
भ्रष्टाचार की तरह ही अकर्मण्यता भी प्रगति में बाधक है। उत्तर प्रदेश के डीजीपी मुकुल गोयल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नाराजगी भारी पड़ गई। शासकीय कार्यों की अवहेलना, विभागीय कार्यों में रुचि न लेने और अकर्मण्यता के चलते उन्हें डीजीपी के पद से हटाकर नागरिक सुरक्षा का डीजी बनाया गया है। गोयल का सेवाकाल फरवरी 2024 तक है। वहीं, शासन की इस कार्रवाई के पीछे हाल के दिनों की घटनाएं बड़ी वजह मानी जा रही हैं। शासन ने एडीजी कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार को फिलहाल डीजीपी का कार्यभार सौंपा दिया है। गोयल को पिछले साल एक जुलाई को तत्कालीन डीजीपी हितेश चंद्र अवस्थी की सेवानिवृत्ति के बाद डीजीपी बनाया गया था। वह केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस लौटे थेे। शुरू से ही उनका कार्यकाल विवादों से घिरा रहा। लखनऊ में एक इंस्पेक्टर को हटाए जाने को गोयल ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था, लेकिन वह इंस्पेक्टर को नहीं हटवा पाए। यह मामला मुख्यमंत्री तक पहुंचा था। मुख्यमंत्री योगी ने इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तक में कहा था कि जिलों में थानेदारों की तैनाती के लिए मुख्यालय स्तर से दबाव न बनाया जाए। हाल के दिनों में ललितपुर के एक थाना परिसर में दुष्कर्म पीड़िता के साथ थानेदार द्वारा दुष्कर्म, चंदौली में पुलिस की दबिश में कथित पिटाई से युवती की मौत, प्रयागराज में अपराध की ताबड़तोड़ घटनाएं, पश्चिमी यूपी में लूट की घटनाएं डीजीपी गोयल को हटाए जाने की प्रमुख वजहें हैं। गोयल पहले भी विवादों में रहे हैं। 2006 में मुलायम सिंह सरकार में हुए पुलिस भर्ती घोटाले में उनका नाम आया था। मामले में अभी याचिका हाईकोर्ट में लंबित है। एक मामले में वह निलंबित भी हो चुके हैं।
भारत में भ्रष्टाचार का रोग बढ़ता ही जा रहा है। हमारे जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं बचा, जहां भ्रष्टाचार के असुर ने अपने पंजे न गड़ाए हों।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के सर्वे के मुताबिक भ्रष्टाचार के मामले में 180 देशों की सूची में भारत इस साल 79वें पायदान पर है। हालांकि भारत की रैंकिंग पिछले साल के मुकाबले तीन पायदान सुधरी है। (हिफी)

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