लेखक की कलम

आजम की रिहाई का पुरस्कार

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

राजनीति में बहुत दूर की कौड़ी खेली जाती है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव न सिर्फ मुखर नेता बन गये हैं बल्कि दूरदर्शिता की राजनीति भी कर लेते हैं। उनकी मुखरता गत 25 मई को लखनऊ के विधान भवन मंे उस समय दिखाई पड़ी जब उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को उन्हांेने ईंट का जवाब पत्थर से दिया। इस बार यूपी मंे विपक्ष इतना कमजोर भी नहीं है कि उसकी आवाज नक्कार खाने में तूती जैसी लगे। इसलिए सपा के विधायक अपने सहयोगियों के साथ सत्तापक्ष को मनमानी नहीं करने देंगे। अखिलेश यादव ने दूरदर्शिता का कदम यह उठाया है कि वे सपा के समर्थन से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे कपिल सिब्बल को राज्यसभा मंे भेजने जा रहे हैं। यह कार्य कांग्रेस के प्रति सहानुभूति के चलते नहीं किया जा रहा है बल्कि सपा के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आजम खान को खुश करने के लिए हो रहा है। मोहम्मद आजम खान धोखाधड़ी के मामले मंे जेल मंे बंद थे और उनको जमानत पर जमानत मिलीं लेकिन रिहा नहीं हो सके। कपिल सिब्बल ने ही सुप्रीम कोर्ट से उनको अंतरिम जमानत ही नहीं दिलवाई बल्कि यूपी सरकार को फटकार भी लगवाई। कपिल सिब्बल को उसी का पुरस्कार मिल रहा है।
आजम खान की नाराजगी ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव की नींद हराम कर दी है। एक तरफ आजम हैं कि अखिलेश पर तंज कसने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं, उनके साथ विधानसभा में बैठने से कतरा रहे हैं जबकि शिवपाल से मेल मिलाप का सिलसिला जारी है। आजम खान चाहते थे कि कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजा जाए तो अखिलेश ने भेज दिया। इस प्रकार अखिलेश यादव ने कपिल सिब्बल को राज्यसभा का चुनाव लड़ाने का फैसला लेकर आजम को मनाने का जो प्रयास शुरू किया है, उसमें आगे चलकर कपिल सिब्बल भी महत्वपूर्ण किरदार निभा सकते हैं। कपिल के कहने पर आजम सपा प्रमुख से अपनी नाराजगी भूल सकते हैं। वैसे भी सियासत में दोस्ती और दुश्मनी लम्बे समय तक नहीं चलती है। बहरहाल, कांग्रेस पार्टी से नाराज चल रहे कबिल सिब्बल ने राज्यसभा की सीट की कीमत पर आखिरकार अपना नया ठिकाना तलाश लिया है। सिब्बल ने निर्दलीय प्रत्याशी की हैसियत से राज्यसभा के लिए नामांकन किया है। उन्हें समाजवादी पार्टी का पूरा समर्थन हासिल होगा।
सिब्बल को यह पुरस्कार मिला है। आजम खान को जेल से बेल पर बाहर निकालने में कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसी के बाद कपिल सिब्बल के सपा की तरफ से राज्यसभा भेजे जाने की चर्चा शुरू हो गई थी। आजम ने भी मीडिया के एक सवाल के जवाब में कहा था कि यदि सिब्बल को राज्यसभा भेजा जाता है तो उन्हें सबसे अधिक खुशी होगी। कपिल सिब्बल ने भी इस बात की पुष्टि कर दी है कि वह सपा के समर्थन से राज्यसभा चुनाव लड़ रहे हैं, इसके साथ ही सिब्बल ने यह भी घोषणा कर दी है कि 16 मई को उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। फिलहाल अभी कपिल सिब्बल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य हैं। उनका कार्यकाल जुलाई में खत्म हो रहा है। कपिल सिब्बल ने टिकट फाइनल होते ही दावा किया है कि वह मोदी सरकार के खिलाफ एक गठबंधन बनाना चाहतें हैं, जिससे 2024 में मोदी सरकार को हटाया जा सके। कपिल सिब्बल का कांग्रेस छोड़ना अप्रत्याशित नहीं था। वह कांग्रेस आलाकमान से काफी नाराज चल रहे थे। वैसे भले कपिल सिब्बल ने राज्यसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के समर्थन से नामांकन भरा हो लेकिन उन्हें राज्यसभा का टिकट देने के लिए लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी और झारखंड मुक्ति मोर्चा की तरफ से भी ऑफर था लेकिन कपिल सिब्बल ने यूपी से ही सांसद बनने को तवज्जो दी। कपिल सिब्बल की गिनती मोदी विरोधी नेता के रूप में होती है। वह मोदी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। यह और बात है कि इसके चलते कई बार वह अपनी और कांग्रेस की किरकिरी भी करा चुके हैं। कपिल सिब्बल भले ही कई बार राज्यसभा के सदस्य रह चुके हैं, लेकिन आज भी उनकी पहचान नेता से अधिक अधिवक्ता के रूप में होती है। अखिलेश ने भी कपिल सिब्बल को राज्यसभा का चुनाव लड़ाने की जानकारी मीडिया को देते हुए यही बताया कि कपिल सिब्बल एक बड़े अधिवक्ता हैं। यह इशारा आजम खान के लिए भी है कि सपा कपिल सिब्बल को राज्यसभा क्यों भेज रही है।
बहरहाल, कपिल सिब्बल का टिकट तय करने के बाद अब सपा के पास दो और राज्ससभा सीटें जीतने लायक वोट बाकी रह गए हैं। कहा जा रहा है कि समाजवादी पार्टी ने अपने दो अन्य राज्यसभा उम्मीदवारों के नाम भी करीब-करीब तय कर दिए हैं। लेकिन अभी अधिकृत सूचना जारी नहीं की गई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अखिलेश की धर्मपत्नी और पूर्व सांसद डिंपल यादव को भी राज्यसभा भेजा जा रहा है। इसी तरह जावेद अली खान को भी पार्टी राज्यसभा भेज रही है। वह पहले भी सपा के राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए जावेद अली की दावेदारी मजबूत हुई है। मालूम हो कि अभी तक राज्यसभा में सपा के पांच सदस्य हैं। इसमें कुंवर रेवती रमन सिंह, विशंभर प्रसाद निषाद और चैधरी सुखराम सिंह यादव का कार्यकाल चार जुलाई को खत्म हो रहा है।
राज्यसभा में यूपी की 11 सीटों के लिए चुनाव 10 जून को होंगे। सभी 11 सदस्यों का कार्यकाल 4 जुलाई को समाप्त हो रहा है। इसके लिए नामांकन 24 से 31 मई तक दाखिल किए जाएंगे। एक जून को नामांकन पत्रों की जांच होगी। 3 जून तक नाम वापस ले सकेंगे। 10 जून को सुबह 9 से शाम 4 बजे तक मतदान होगा। शाम 5 बजे से मतगणना शुरू होगी। इन 11 सीटों में से भाजपा को सात व सपा को तीन सीटें मिलना लगभग तय है। सूत्रों के मुताबिक एक सीट के लिए 36 विधायकों का वोट चाहिए। भाजपा गठबंधन के पास 273 विधायक हैं। ऐसे में उन्हें 7 सीट जीतने में कोई परेशानी नहीं होगी। सपा के पास 125 विधायक हैं। उसे 3 सीट जीतने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन 11वीं सीट के लिए भाजपा व सपा एक दूसरे के खेमे में सेंधमारी का प्रयास करेंगे। अखिलेश यादव को 11वीं सीट जीतने की उतनी चिंता भी नहीं है जितनी अपने दिग्गज नेता आजम खां के रूठने की है। चाचा शिवपाल रूठे रहें तो कोई बात नहीं लेकिन चचा जान आजम का रूठना उनके वोट बैंक को खोखला कर सकता है। (हिफी)

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