भाजपा को किसानों का भी मिला समर्थन

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
- मतदाताओं ने दिया किसान आंदोलन के सूत्रधारों को सबक
- कैप्टन अमरिंदर का धाराशायी होना है इसका सबूत
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन निष्प्रभावी साबित हुआ। यहां के किसानों ने भाजपा को समर्थन दिया। दूसरी ओर मजहबी समीकरण का सपा को लाभ मिला। पंजाब में अकाली दल और कांग्रेस का एक साथ पराभव सामान्य नहीं है। अभी तक पंजाब में इन्हीं दो पार्टियों का मुकाबला चलता था। पहली बार दोनों का सफाया करते हुए आप ने जीत दर्ज की है। यह दिलचस्प है कि किसान आंदोलन के सबसे बड़े समर्थक धराशाई हुए है। किसान आंदोलन की शुरुआत के समय कैप्टन अमरिंदर सिंह वहां मुख्यमंत्री थे। वह किसान आंदोलन के सबसे बड़े समर्थक थे। उन्हें इस आंदोलन में सक्रिय देख अकाली दल भी सतर्क हो गया। आनन फानन में उसने एनडीए से दशकों पुराना नाता तोड़ लिया। केंद्र सरकार में शामिल उसके सदस्यों ने त्यागपत्र दे दिया। संयोग देखिए इन सभी लोगों को एक साथ मतदाताओं ने नकार दिया।
कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। उन्होंने अलग पार्टी बनाई। अकाली दल ने केंद्र की सरकार को छोड़ा था। लेकिन किसान आंदोलन से जुड़ना इन सबके लिए भारी पड़ा। अमरिंदर के बाद चन्नी मुख्यमंत्री बने थे। वह दो क्षेत्रों से चुनाव लड़े थे। दोनों में हार गए। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी आंदोलन को सक्रिय सहयोग दिया था। पांच राज्यों के चुनाव ने इनको भी असलियत बता दी। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पंजाब में कांग्रेस के प्रभारी थे। उन्होंने भी किसान आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई थी, फिर कांग्रेस हाईकमान से आग्रह किया कि वह उत्तराखण्ड चुनाव की कमान संभालना चाहते है। हाईकमान ने उनकी बात मान ली। किसान आंदोलन से छूट कर वह उत्तराखंड चुनाव में सक्रिय हुए। कांग्रेस को जिताने की बात दूर, हरीश अपना चुनाव नहीं बचा सके। आम आदमी पार्टी भी किसान आंदोलन के साथ थी। लेकिन कांग्रेस व अकाली की इसमें चल रही दौड़ से बहुत पीछे थी। यह भी सही है कि उस समय तक आप के पास पंजाब में कांग्रेस व अकाली दल की तरह कोई बड़ा चेहरा नहीं था। राकेश टिकैत चुनाव से दूर थे किंतु भाजपा के खिलाफ उन्होंने भी मोर्चा खोला था। वह तो पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी भाजपा का विरोध करने पहुंचे थे। ये बात अलग है कि वहां उनके सामने पहचान का भी संकट था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी उनकी असलियत अब सामने है। किसान रैली में मजहब विशेष का नारा बुलंद करने का भी उन्हें कोई लाभ नहीं मिला। पंजाब में भाजपा पहले भी कमजोर थी। अकाली दल के साथ गठबंधन का उसे भी लाभ मिलता था लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा ने उस आंदोलन के बाद भी अपनी बिजय यात्रा को आगे बढ़ाया है।
किसानों के नाम पर चला आंदोलन प्रारंभ से ही विवादित था। इसको जिस नाम से चलाया गया,उनकी ही भागीदारी को लेकर सवाल उठते थे किंतु नाम में असर बहुत था। किसान का नाम आते ही सरकार भी सावधान हो जाती है। इसलिए सरकार ने आंदोलनकारियों से एक दर्जन बार वार्ता की थी लेकिन आंदोलन में केंद्र में वास्तविक किसान नहीं थे। वास्तविक किसान इतना वैभवशाली आंदोलन चला ही नहीं सकते हैं। आरोप लगे कि इसके पीछे पंजाब और हरियाणा के बिचैलिए हैं, जिनका कृषि मंडी परिषद पर वर्चस्व रहता था। भाजपा सरकार ने इसमें सुधार किया। उसने अपने कार्यकाल में हुए किसान कल्याण कार्यों का ब्योरा सार्वजनिक किया था लेकिन सत्ता में रहे कांग्रेस सहित अन्य क्षेत्रीय दलों के पास इसका कोई जवाब नहीं था। साढ़े छह करोड़ किसानों के क्रेडिट कार्ड हैं। तीन करोड़ किसानों को क्रेडिट कार्ड और दिया जाना है। खाद सब्सिडी के रूप में अस्सी हजार करोड़ रुपये का निवेश किया गया। कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए एक लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। छोटी अवधि के लिए किसानों को आठ लाख करोड़ का ऋण दिया गया है। इसे पन्द्रह लाख करोड़ तक पहुंचाया जाएगा। नाबार्ड अब तक कृषि क्षेत्र में नब्बे हजार करोड़ रुपये खर्च करता था,अब उसके खर्च का बजट तीस हजार करोड़ और बढ़ा दिया गया है। गेहूं खरीद की मात्रा यूपीए सरकार के समय दस वर्ष पहले के मुकाबले वर्तमान वर्ष तक एक सौ सत्तर प्रतिशत तक हो गई। दस वर्ष पहले गेहूं खरीद करीब सवा दो सौ लाख मीट्रिक टन थी। इस वर्ष करीब तीन सौ निन्यानबे लाख मीट्रिक टन हो गया। यूपीए में गेहूं में अधिकतम पचास रुपए की बढ़ोतरी एमएसपी में की गई,जबकि मोदी सरकार ने वर्ष दो वर्ष पहले इससे दुगनी से अधिक की बढ़ोतरी की थी। यह पिछले आठ वर्षों का अधिकतम बढ़ोतरी का रिकॉर्ड था। धान खरीद में दस वर्ष पहले यूपीए के मुकाबले डेढ़ सौ प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई। दालों की खरीद मोदी सरकार के समय शुरू हुई। पिछली सरकारों के समय न्यूनतम समर्थन मूल्य तो घोषित होता था। लेकिन एमएसपी पर खरीद बहुत कम की जाती थी। किसानों के नाम पर बड़े-बड़े कर्ज माफी के पैकेज घोषित किए जाते थे, लेकिन छोटे और सीमांत किसानों तक यह पहुंचते ही नहीं थे। पहले सरकार खुद मानती थी कि एक रुपए में से सिर्फ पन्द्रह पैसे ही किसान तक पहुंचते हैं। अब एक-एक पाई किसानों तक पहुंच रही है। वर्तमान सरकार ने यूरिया की कालाबाजारी रोकी। उसकी नीमकोटिंग की गई। इससे किसानों को यूरिया मिलने लगी। कृषि मंडी समाप्त करने की बात गलत है। यह सरकार तो मंडियों को आधुनिक बना रही है। नए कृषि सुधारों से विकल्प दिए गए हैं। मंडी से बाहर हुए लेन देन को गैरकानूनी माना जाता था। इसपर छोटे किसान को लेकर विवाद होता था, क्योंकि वे मंडी पहुंच ही नहीं पाते थे। लेकिन अब छोटे से छोटे किसान को विकल्प दिए गए हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सवा लाख करोड़ रुपये से अधिक का गन्ना मूल्य भुगतान सीधे किसानों के बैंक खातों में किया गया। प्रदेश सरकार ने दो दर्जन लंबित परियोजनाओं को पूरा करने का कार्य किया। बीस लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि को सिंचाई की सुविधा प्रदान हो सकेगी। पहले प्रदेश में अधिकांश चीनी मिलें बन्द हो गयी थीं। योगी सरकार बनने के बाद से चीनी मिलों को पुनः संचालित कराया गया। गोरखपुर में पिपराइच चीनी मिल संचालित की गयी। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत दो करोड़ बयालीस लाख किसानों को लगभग सत्ताईस हजार करोड़ रुपये उनके खातों में भेजे गये। किसानों की सहायता हेतु प्रदेश के प्रत्येक जिले में एक अथवा दो कृषि विज्ञान केन्द्र कार्य कर रहे हैं जो किसानों को शासन की विभिन्न योजनाएं एवं तकनीक का लाभ प्रदान करने में सहयोग कर रहे हैं। किसानों की लागत कम करके उनकी आय बढ़ाने के प्रयास चल रहे है। किसी किसान के उत्पाद पर मंडी शुल्क नहीं लिया जाता है, लेकिन मंडी अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा किसान कल्याण के लिए सीधे खर्च करता है। प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से वह पैसा किसान कल्याण के लिए ही खर्च होता है। किसान कल्याण की सर्वाधिक योजनाएं वर्तमान सरकार ने क्रियान्वित की है। इनमें से कई अनवरत रूप से संचालित हो रही हैं। बिडंबना यह है कि इस सरकार को ही महीनों तक किसानों के नाम पर चल रहे आंदोलन का सामना करना पड़ा जिसके चलते, किसानों को अधिकार प्रदान करने वाले कानूनों को भी वापस लेना पड़ा था। आंदोलनकारियों ने उन पार्टियों का समर्थन लिया,जो सत्ता में रहते हुए किसानों का कल्याण करने में नाकाम रहे थे।
बहरहाल, देर से सही लेकिन किसानों की समझ मंे आ गया कि कौन राजनीतिक दल उनका हित कर रहा है। (हिफी)