लेखक की कलम

यूपी में लौटा बुलडोजर बाबा का राज

बुलडोजर बाबा

(प्रभुनाथ शुक्ल-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

उत्तर प्रदेश ने जो राजनीतिक संदेश दिया है अपने आप उसके मायने बेहद अलग है। प्रतिपक्ष की लाख कोशिशों के बावजूद भी भारतीय जनता पार्टी भारी बहुमत से सरकार बनाने में कामयाब रही। दोबारा सत्ता में वापसी कर भाजपा ने साफ संदेश दे दिया है कि उसके मुकाबले विपक्ष कहीं नहीं ठहरता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता बरकरार है। भाजपा ने जातिवाद की राजनीति को ध्वस्त कर पुनः सत्ता में वापसी की है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह बहुत बड़ी सफलता है। योगी आदित्यनाथ ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो 37 सालों में यूपी मंे दोबारा शपथ ले रहे हैं और सत्ता में वापसी की है। कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है। भाजपा कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी के साथ सपा को यह संदेश देने में सफल हुईं है कि प्रदेश में अब विकास विश्वास की राजनीति ही सफल होगी, जातिवाद का कोई स्थान नहीं है।
राज्य में भाजपा की वापसी के पहले समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी का सियासी दबदबा था। राममंदिर आंदोलन के बाद भाजपा ने सत्ता में जबरदस्त वापसी की थी लेकिन मंडल की राजनीति ने उसे गायब कर दिया। राज्य में 90 के दशक के बाद कांग्रेस की वापसी नहीं हो पाई। 40 साल तक उत्तर प्रदेश की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस हर चुनाव में अपना जनाधार खोती चली गई। कांग्रेस धर्मनिरपेक्षता के लबादे में इतना उलझी कि मंडल-कमंडल की राजनीति में उसका अस्तित्व ही खत्म हो गया। इसके बाद कांग्रेस सत्ता में फिर वापस नहीं हो पाई। उत्तर प्रदेश में 2017 के पहले जातिवादी राजनीति चरम पर थी। राज्य में राम मंदिर आंदोलन के बाद भाजपा की सत्ता में वापसी हुई वर्ष इसके बाद यहां सपा-बसपा की जातिवादी राजनीति हावी रहीं।लेकिन 2014 में केंद्र की सत्ता में भाजपा की वापसी के बाद जहां राज्य में कांग्रेस खत्म होती चली गई, वहीं उत्तर प्रदेश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी ने जबरदस्त वापसी की।
उत्तर प्रदेश में भाजपा को घेरने के लिए सपा-बसपा कांग्रेस ने कई प्रयोग दुहराए लेकिन उसका कोई खास प्रभाव नहीं दिखा, क्योंकि विपक्ष चाह कर भी आंतरिक रुप से टूटा और बिखरा था जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिला। केंद्र और प्रदेश में भाजपा की डबल इंजन की सरकार होने की वजह से विकास पर भी काफी गहरा प्रभाव पड़ा। जिन मुद्दों से कांग्रेस बचती थी, भाजपा ने उसे फ्रंटफुट पर खेला। राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक, एनआरसी और हिंदुत्व जैसे मुद्दों को धार दी। सबका साथ सबका विकास वाले मंत्र को अपनाकर भाजपा आगे बढ़ी और कामयाब हुईं। उत्तर प्रदेश में भाजपा जितनी मजबूत हुई विपक्ष उतना कमजोर हुआ। वर्तमान समय में बदले सियासी हालात में विपक्ष को गंभीरता से विचार करना होगा। उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुकाबले विपक्ष कहीं दिख नहीं रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि 2022 के आम चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत ने 2024 का भी मार्ग प्रशस्त कर दिया है क्योंकि विपक्ष के तमाम प्रयासों के बावजूद भी भाजपा को घेरने में वह कामयाब नहीं हो सका है।
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी दलित विचारधारा की मुख्य पार्टी मानी जाती रही। मायावती चार-चार बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं। लेकिन बहुजन समाज पार्टी इतनी जल्द कमजोर हो जाएगी, इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। देश में आज जिस तरह कांग्रेस गुजर रहीं है वहीं हालत बहुजन समाज पार्टी की है। हालांकि आज भी दलित मत उसके साथ है, लेकिन अब उसकी संख्या भी कम हो चली है। सिर्फ दलितों के भरोसे वह चुनाव को नहीं जीत सकती है। वर्ष 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अगड़े और दलितों को लेकर उन्होंने सरकार बनायी थी। लेकिन इस बार के आम चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की जो दुर्गति हुई है, वह चिंतनीय है। चुनाव परिणाम को देखकर साफ होता है कि दलित विचारधारा की मुख्य पार्टी का अस्तित्व खत्म हो चला है। मायावती अभी तक कोई सियासी उत्तराधिकारी नहीं दे सकी हैं। साल 2017 में 19 सीटों पर जीत हासिल करने वाली बहुजन समाज पार्टी एक सीट पर सिमट गई। उसे करीब 12.9 फीसदी मत मिले।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने जमीनी मेहनत की है लेकिन उनके कार्यकर्ताओं ने जोश में होश खो दिया। अति उत्साह में समाजवादी कार्यकर्ताओं के जिस तरह सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुए उसका खमियाजा उसे भुगतना पड़ा। अखिलेश यादव की तरफ से बहुत अच्छी मेहनत की गई लेकिन परिणाम उनके पक्ष में नहीं रहा। फिर भी अकेले दम पर उन्होंने जो मेहनत की वह प्रशंसनीय है। राज्य में सपा 35 फीसदी वोट हासिल करके भी सत्ता में वापसी नहीं कर पायी। 125 सीटों पर संतोष करना पड़ा लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी 41.3 फीसदी वोट हासिल कर 273 सीटों पर भगवा लहरा दिया। हालांकि 2017 के मुकाबले भाजपा को 46 सीटों का नुकसान हुआ है जबकि सपा को 70 सीटों का फायदा मिला है।
इसी तरह प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस 2017 का भी प्रदर्शन दोहराने में कामयाब नहीं हुईं। उसने सिर्फ दो सीटें मिलीं जबकि पांच सीटों का घाटा हुआ। कांग्रेस को ढाई फीसद मत हासिल हुए। कांग्रेस और उसके शीर्ष नेतृत्व के लिए यह मंथन का विषय है। निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा ने नया इतिहास लिखा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बुलडोजर बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए हैं। भाजपा को जीत दिलाने में उसका सांगठनिक अनुशासन, सामूहिक प्रयास और सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास एवं सबका प्रयास जीत दिलाने में कामयाब हुए हैं। राशन, सुशासन का मुद्दा भी अहम रहा है। भाजपा के मजबूत सांगठनिक ढांचे से यह कामयाबी मिली है। भाजपा अपने संगठन को मजबूत बनाने के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ती है। पार्टी के सांगठनिक ढांचे में सबको जिम्मेदारी दी जाती है। उसकी राजनीतिक सफलता के पीछे यह भी आम कारण रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा आम आदमी का विश्वास जीतने में बेहद सफल रही है। राज्य में जातीय मिथक को तोड़ने में भी वह सफल हुई है। भाजपा को काफी संख्या में पिछड़ों ने भी वोटिंग किया है, जिसकी वजह से वह दोबारा सत्ता में लौटी है। (हिफी)

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