
(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
- उत्तराखण्ड व हिमालय के 7 हजार हेक्टेयर वनों को झुलसा गयी आग
- 60 फीसद वनों में आग का कारण हैं हम मनुष्य
- बढ़ रही है गले व फेफड़े की बीमारियां
- जल जाती हैं करोड़ों की वन संपदा
वनों में आग लगने से वन गर्म होते हैं जिससे वायुमण्डल का तापक्रम बढ़ता है। इससे कार्बन वायुमण्डल में इकट्ठा हो जाती है जिससे प्रदूषण फैलता है। प्रदूषण से कई बीमारियां होती है। आसपास के रिहायशी इलाकों में प्रदूषण से नागरिकों के स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है। गले व फेफड़ों की बीमारियंा हो जाती है। टीवी व अस्थमा के रोगी बढ़ जाते हैं। गर्मियों में वातावरण का तापक्रम सामान्य से कई गुणा बढ़ जाता है। अधिक गर्मी से शरीर से पसीना अधिक निकलता है जिससे डिहाईडेªशन हो जाता है।
वनाग्नि से वन सम्पदा को गंभीर हानि पहुंचती है। पर्वतीय क्षेत्र में वनों में आग लगने से वहां की ठंडी आबोहवा गर्म हो जाती है जिससे पर्यटन क्षेत्र को गंभीर हानि पहुंचती है। इस साल 1.25 हजार हेक्टेयर वन आग के भेंट चढ़ गये। जीव जंतु आग की तपिश से बचने के लिए रिहायशी इलाकों की तरफ निकल जाते हैं जिससे मवेशियों व लोगों को खतरा हो जाता है। हिंसक वन्य जंतु लोगों पर हमला करते हैं। इस बार गर्मियों में अन्य वर्षो की तुलना में कम वर्षा हुयी जिससे आग की घटनायें बढ़ीं। देवदार के पेड़ों में अधिक आग फैलती है। पिरूल पर्वतीय क्षेत्र में आग फैलाते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार 60 फीसद वनों की आग की घटनायें मानव जनित होती हैं। भूलवश या जानबूझकर वनों में आग लगा दी जाती है। कभी-कभी वन विभाग के ही कर्मचारी वनों को आग से बचाने के लिए घास-फूस में आग लगा देते हैं जो वनांे में फैल जाती है। यही आग वनों को अपनी चपेट में ले लेती है। वन विभाग के कर्मचारी मौके पर तत्काल नहीं पहंुच पाते है क्योंकि वन विभाग के पास संसाधनों की कमी है।
आग लगने की सूचना पर वनकर्मियों को पर्याप्त वाहन व आग बुझाने के पर्याप्त उपकरण न होने के कारण आग बुझाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कई बार कर्मचारी अकेले ही अपने साधन से मौके पर आग बुझाता है। विकराल आग को एक दो कर्मचारी नहीं बुझा पाते। वनों की आग हेलीकोप्टर से पानी की बौछार कर बुझाई जा सकती है। इस आधुनिक प्रौद्योगिकी के युग में भी वनकर्मी परम्परागत ढंग से वनों में आग बुझाते हैं। वन सम्पदा में बहुउपयोगी जड़ी-बूटियां, वन्यजीव, ईंधन, लकड़ी व चारा उपलब्ध होता है। सघन वन हो व हरियाली हो तो हमारा पर्यावरण स्वच्छ रहता है। इससे पर्यावरणीय संतुलन बना रहता है। वनकर्मियों को जिस कर्मठता, परिश्रम, जोखिम व शक्ति से वनों की रक्षा करनी पड़ती है, उसके अनुकूल न तो उनका वेतन है और न सुविधायें उन्हें पुलिस कर्मियों की तरह सुविधायें दी जानी चाहिए।
इस बार उत्तराखण्ड व हिमालय प्रदेश में 7000 हेक्टेयर से अधिक वन आग की भेंट चढ़ गये। इस वर्ष 25 वर्ष के बाद आग लगने की घटनायें हुयी हैं और वन सम्पदा की क्षति हुयी है। उत्तराखण्ड में 3000 हेक्टेयर से अधिक वन अग्नि की भेंट चढ़ गये। 61.5 लाख रूपये से अधिक की आर्थिक हानि हुयी है। फारेस्ट फायर वाॅंलंटियर भी आग बुझाने के लिए तैनात किये गये थे। मई के प्रथम सप्ताह की वर्षा ने वनाग्नि को शांत किया है।
उत्तराखण्ड की तरह हिमाचल प्रदेश में भी 4000 हेक्टेयर वन आग की भेंट चढ़ गये जिसमें 95 लाख रूपये से अधिक की वन सम्पदा आग की भेंट चढ़ गयी है।
आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 में 15 फरवरी से 31 अप्रैल तक 94.57 हेक्टेयर वन आग की भेंट चढ़ गये जो आंकड़ा पिछले छह सालों के बराबर है। छह सालों में 94ण्57 हेक्टेयर वन जले हैं। इस वर्ष वर्षा न होने से वनाग्नि की प्रचण्डता अधिक रही। मई के प्रथम सप्ताह में वर्षा से आग शांत हुयी। वनों को आग से बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को जागरूक बनाया जा सकता है। 15 फरवरी से जून तक फायर सीजन के दौरान जागरूकता अभियान चलाया जा सकता है। वनों में बीड़ी, सिगरेट या कोई जलती वस्तु न फेंकी जाये। ग्राम व वन पंचायत को वनाग्नि के विरूद्ध अभियान में भागीदार बनाया जाना चाहिए। मानव भूल से अधिक आग की घटनायें होती है। वनों में आग लगाना अपराध है। इसलिए ऐसे अपराध से बचें।
भारत के 30 प्रतिशत से अधिक जिले जंगल में भीषण आग लगने के लिहाज से संवेदनशील हैं। गुरुवार को जारी एक अध्ययन में कहा गया है कि पिछले दो दशकों में जंगल की आग के मामलों में 10 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। ‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर’ (सीईईडब्ल्यू) की ओर से किए गए अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पिछले महीने अकेले उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में जंगल की भीषण आग की सूचना मिली थी।
सीईईडब्ल्यू के अध्ययन में यह भी पाया गया कि आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र के जंगलों में जलवायु में तेजी से बदलाव के कारण भीषण आग लगने की आशंका प्रबल है। सीईईडब्ल्यू के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुणाभ घोष के मुताबिक, श्वैश्विक तापमान में वृद्धि के साथ, दुनिया भर में जंगल में भीषण आग की घटनाएं बढ़ी हैं, खासकर शुष्क मौसम वाले क्षेत्रों में। पिछले दशक में, देश भर में जंगल में आग लगने की घटनाओं में तेज वृद्धि हुई है। इनमें से कुछ का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।’ अध्ययन में यह भी पाया गया कि पिछले दो दशकों में, जंगल में आग की कुल घटनाओं में से 89 प्रतिशत से अधिक घटनाएं उन जिलों में दर्ज की गई हैं जो परंपरागत रूप से सूखा के लिहाज से संवेदनशील हैं या जहां मौसम में बदलाव के रुझान देखे गए हैं, यानी जहां पहले बाढ़ आती थी वहां सूखा पड़ रहा है या इसके विपरीत स्थिति है। कंधमाल (ओडिशा), श्योपुर (मध्य प्रदेश), उधम सिंह नगर (उत्तराखंड), और पूर्वी गोदावरी (आंध्र प्रदेश) जंगल की आग वाले कुछ प्रमुख जिले हैं जहां बाढ़ से सूखे की ओर एक अदला-बदली की प्रवृत्ति दिख रही है। (हिफी)