लेखक की कलम

अपनों के निशाने पर कांग्रेस पार्टी

पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी अपने ही नेताओं के निशाने पर आ गई है। जी-23 ग्रुप के नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने तो सीधे गांधी परिवार पर हमला करते हुए उन्हें पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देकर दूसरे किसी कांग्रेस जन को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने तक की मांग कर डाली है। कपिल सिब्बल के बाद बहुत से नेताओं ने भी पार्टी संगठन में आमूलचूल बदलाव की मांग की है। कांग्रेस पार्टी इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। कांग्रेस पार्टी दो बार लोकसभा तथा राज्यों के विधानसभा चुनाव में लगातार हारती जा रही है।
हाल ही में कांग्रेस पार्टी को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा व मणिपुर में बहुत बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े प्रांत में तो कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ हो गया है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जहां भाजपा का प्रदर्शन लगातार अच्छा होता जा रहा है, वहीं कांग्रेस दिनों दिन कमजोर होती जा रही है। कुछ दिनों पूर्व संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस महज दो सीटें ही जीत सकी है, जबकि 2017 में कांग्रेस 7 सीटों पर विजयी हुई थी। इस बार कांग्रेस को 21 लाख 51 हजार 234 वोट मिले जो पिछली बार 54 लाख 16 हजार 540 वोटों की तुलना में 32 लाख 65 हजार 306 वोट यानी 3.92 प्रतिशत कम मिले हैं। इस बार कांग्रेस 397 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। जबकि पिछली बार समाजवादी पार्टी से समझौता होने के चलते महज 114 सीटों पर ही चुनाव लड़ पाई थी।
उत्तराखंड में कांग्रेस 70 में से 19 सीटें ही जीत पाई है जबकि इस बार कांग्रेस को सबसे अधिक विश्वास उत्तराखंड में सरकार बनाने का था। मगर वहां 4.40 प्रतिशत वोट बढ़ने के बावजूद भी कांग्रेस सरकार बनाने से बहुत पीछे रह गई। इतना ही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस बार भी लालकुआं विधानसभा सीट से भाजपा के डॉ मोहन सिंह बिष्ट से करीब 17 हजार वोटों से चुनाव हार गए। 2017 में भी हरीश रावत मुख्यमंत्री रहते दो विधानसभा सीटों से चुनाव हार गए थे।
कांग्रेस को सबसे बुरी स्थिति का पंजाब में सामना करना पड़ा है। यहां कांग्रेस महज 18 सीटों पर ही सिमट कर रह गई। उसे 59 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी घटकर 22.98 प्रतिशत रह गया है, जो पिछली बार की तुलना में 15.66 प्रतिशत कम है। कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहे चरणजीत सिंह चन्नी दोनों विधानसभा सीटों चमकौर साहिब व भदौड़ से तथा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अमृतसर पूर्व सीट से चुनाव हार गए हैं। इसके अलावा कांग्रेस के अधिकांश मंत्री व बड़े नेता चुनाव हार गए हैं। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के बाद पंजाब में भी कांग्रेस से सत्ता छीन ली है।
राजनीति के जानकार गोवा विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस, कांग्रेस की सरकार बनने के कयास लगा रहे थे। लोगों का मानना था कि लगातार 15 साल से सत्ता में रहने के कारण भाजपा के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर व्याप्त हो रही थी, जिसका लाभ कांग्रेस को मिलता नजर आ रहा था। मगर चुनाव परिणामों में कांग्रेस बुरी तरह पिछड़ गई। कांग्रेस को 40 में से महज 11 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। 20 सीटें जीतकर भाजपा फिर सरकार बनाने जा रही है। गोवा विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को पिछली बार की तुलना में 6 सीटों का व 4.58 प्रतिशत वोटों का घाटा उठाना पड़ा है। गोवा के मतदाताओं ने कांग्रेस की पिछली बार की गलती को माफ नहीं किया है। रही सही कसर वहां आम आदमी पार्टी व तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशियों ने कांग्रेस के वोट काटकर पूरी कर दी।
मणिपुर विधानसभा के चुनाव में भी कांग्रेस बहुत कमजोर स्थिति में आ गई है। इस बार कांग्रेस महज 5 सीटें ही जीत पाई है जबकि पिछली बार उसने 28 सीटों पर चुनाव जीता था। पिछली बार की तुलना में वहां कांग्रेस को 18.17 प्रतिशत वोट भी कम मिले है। उत्तर पूर्व के सभी आठों राज्यों में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई है।
2014 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर हो गई थी। फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस हार गई थी। इसके साथ ही राज्य विधानसभाओं के चुनाव में भी कांग्रेस को लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। 2018 जरूर कांग्रेस के लिए कुछ अच्छा रहा। इस वर्ष कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में अपनी सरकार बनाई। मगर पार्टी में नेताओं की आपसी गुटबाजी के चलते कर्नाटक व मध्य प्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस में दलबदल करवा कर अपनी सरकार बनवा ली। कर्नाटक के मुख्यमंत्री व मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ अपने साथी विधायकों को संतुष्ट नहीं कर पाए जिसके चलते उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी।
अभी राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार चल रही है। महाराष्ट्र व झारखंड में कांग्रेस गठबंधन सरकार में शामिल है। कभी पूरे देश पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस आज महज दो- चार प्रदेशों तक ही सिमट कर रह गई है। कांग्रेस के बड़े नेता जितिन प्रसाद, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुष्मिता देव, लुइजिन्हो फलेयरो, आर पी एन सिंह, आदिति सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद आयोजित कांग्रेस कार्यसमिति की मीटिंग में रस्मी तौर पर तो सभी ने गांधी परिवार पर भरोसा जताया और सोनिया गांधी को पद बने रहने का प्रस्ताव पास कर दिया था मगर पार्टी के अंदर खाने लोगों में बदलाव की मांग तेज होती जा रही है। बहुत से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को बनाने की मांग कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में 397 सीटो पर चुनाव लड़ने पर कांग्रेस को महज 2.33 प्रतिशत वोट मिले जबकि मात्र 34 सीटों पर चुनाव लड़ने वाले राष्ट्रीय लोकदल को कांग्रेस से अधिक 2.85 प्रतिशत वोट मिले हैं। उत्तर प्रदेश से लोकसभा की 80 सीटें आती हैं। वहां कांग्रेस का महज दो सीटों पर सिमट जाना पार्टी के लिए चिंतन मनन का विषय है जबकि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पिछले तीन वर्षों से उत्तर प्रदेश में लगातार पार्टी को मजबूत करने में लगी हुई है।
प्रदेश प्रभारियों का खूब विरोध हो रहा है। अधिकांश प्रभारी ऐसे नेताओं को लगाया गया है जो स्वंय कई चुनाव हार चुके हैं। ऐसे नेता जो खुद चुनाव नहीं जीत सकते वो संगठन को कैसे मजबूत करेगें यह ज्वलंत सवाल है। हरियाणा में सिटिंग विधायक रहते विधायक का चुनाव हारने वाले रणदीप सिंह सुरजेवाला के पास पार्टी के कई बड़े पद हैं। विवादों के चलते राजस्थान के प्रभारी महासचिव के पद से हटाये गये अविनाश पांडे को फिर से महासचिव व झारखंड का प्रभारी बना दिया गया हैं।
मौजूदा समय में कांग्रेस पार्टी में बड़े बदलाव की जरूरत है। राजस्थान व छत्तीसगढ़ जहां कांग्रेस की सरकार चल रही है। वहां के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ कांग्रेसी विधायकों में व्याप्त असंतोष को भी पार्टी आलाकमान को समय रहते समाप्त करवाना चाहिए। वरना 2023 के विधानसभा चुनाव में वहां भी कांग्रेस को बड़ा घाटा उठाना पड़ सकता है। (हिफी)

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