नये भवन में भी कांग्रेस की पुरानी सोच

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
देश को आजादी दिलाने वाली और सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस अगर आज दयनीय स्थिति मंे है तो इसके पीछे उसकी सोच है। अनुभवी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी उसमंे बदलाव नहीं ला पाये हैं। अभी 15 जनवरी को कांग्रेस को नया दफ्तर मिला है। इस दफ्तर को 9-ए कोटला मार्ग का पता दिया गया है। हालंाकि इसके लिए जमीन दीनदयाल मार्ग पर आवंटित की गयी थी जहां भारतीय जनता पार्टी का भी मुख्यालय है। कांग्रेस को दीनदयाल उपाध्याय से चिढ़ थी अथवा भाजपा से, यह तो उसके कर्ताधर्ता ही बता सकते हैं लेकिन पार्टी के दफ्तर का निकास द्वार उस मार्ग पर न बनाकर कोटला मार्ग पर बनाया गया है। इससे पहले कांग्रेस का दफ्तर 24, अकबर रोड पर था। इस दफ्तर को भी कांग्रेस खाली नहीं करेगी। नये दफ्तर का नाम इंदिरा भवन है। कांग्रेस की वीर सावरकर और सहयोगी दलों को लेकर सोच भी उसकी कमजोरी का कारण बनी है। पार्टी को अपनी सोच मंे बदलाव लाना चाहिए। आज इंडिया गठबंधन के घटक उससे दूर हो रहे हैं तो इसका कारण भी यही है। ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और केजरीवाल नया गठबंधन बना सकते हैं। इसलिए कांग्रेस को अपनी सोच बदलनी होगी।
कांग्रेस पार्टी के नए दफ्तर की इमारत का शिलान्यास साल 2009 में तब हुआ था जब केंद्र में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी और कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं। इसके निर्माण में 15 साल लगे हैं।बताया जा रहा है कि संसाधनों की कमी की वजह से इसके निर्माण में देरी हुई है।कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय की इस नई इमारत का पता 9ए कोटला मार्ग जरूर है लेकिन इसे जमीन का आवंटन उसी दीनदयाल मार्ग पर हुआ है जहां भारतीय जनता पार्टी का मुख्यालय है, पार्टी ने अपने मुख्य प्रवेश द्वार को कोटला मार्ग पर बनाया है ताकि दफ्तर का पता यही रहे। इंदिरा गांधी ने जनवरी 1978 में पार्टी मुख्यालय को 24 अकबर रोड पर शिफ्ट कर दिया था और तब से लेकर यह अब तक पार्टी का मुख्यालय है, तकरीबन 47 साल तक पार्टी का दफ्तर 24 अकबर रोड से चला है अब नए मुख्यालय में शिफ्ट हो रहा है।कांग्रेस पार्टी का नया दफ्तर 6 मंजिला है और इसे कॉर्पोरेट स्टाइल में बनाया गया है और इसमें सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं। इस परिसर में कांग्रेस पार्टी के मुख्य दफ्तर के साथ ही सभी फ्रंटल संगठन महिला कांग्रेस, यूथ कांग्रेस और सेवादल के दफ्तर भी शिफ्ट किए जाएंगे जो कि अभी अलग-अलग जगह से चल रहे हैं। इंदिरा भवन को पार्टी और उसके नेताओं की बढ़ती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया है, जिसमें प्रशासनिक, संगठनात्मक और रणनीतिक कार्यों में सहयोग करने के लिए आधुनिक सुविधाएं शामिल हैं। हालांकि, कांग्रेस 24, अकबर रोड को फिलहाल खाली नहीं करेगी, जो 1978 में कांग्रेस (आई) के गठन के बाद से इसका मुख्यालय था। इस नये दफ्तर में कांग्रेस नयी सोच के साथ काम करेगी, ऐसी उम्मीद अभी नहीं जग रही है। दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर प्रवेश द्वार से अच्छी प्रेरणा मिल सकती थी।
दीनदयाल उपाध्याय (25 सितम्बर 1916-11 फरवरी 1968), जिन्हें पंडितजी के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय राजनीतिज्ञ, एकात्म मानववाद विचारधारा के समर्थक और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पूर्ववर्ती राजनीतिक दल भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के नेता थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय सादा जीवन, उच्च विचार और दृढ़ संकल्प व्यक्तित्व के धनी थे। वे एक मेधावी छात्र, संगठक लेखक, पत्रकार, विचारक, राष्ट्रवादी और एक उत्कृष्ट मानवतावादी थे। उनके सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन में सबसे कमजोर और सबसे गरीब व्यक्ति की चिन्ता सदैव कचोटती थी। गरीबों व माँ भारती की सेवा करने के भाव को लेकर जबरदस्त उत्साह, जज्बे, जुनून और दृढ़ विश्वास के साथ, वे 1937 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हुए। इसके बाद जनसंघ के महासचिव के रूप में राजनीति में कदम रखा और 29 दिसम्बर 1967 को जनसंघ के अध्यक्ष बने। उन्होने 1951 से 1967 तक इस जिम्मेवारी का बखुबी निर्वहन किया। यह देश में कांग्रेस का राजनीतिक विकल्प था। आज यह सच सबित हुआ।
उन्होंने स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी के एक मजबूत, जीवंत और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के विचार को आगे बढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया। पूंजीवाद और समाजवाद की जगह पण्डित दीन दयाल उपाध्याय ने स्वराज के रूप में गांधी जी द्वारा परिकल्पित नैतिक मूल्यों और लोकव्यवहार के आधार पर आर्थिक नीतियों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उनके लिए राजनीति जन सेवा का माध्यम थी। वे कहते थे कि राजनीतिक व्यक्ति को जन सेवक के रूप कार्य करना चाहिए। कांग्रेस इससे सीख ले सकती थी।
कांग्रेस अब विपक्ष मंे सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन बड़प्पन नहीं दिखाती है। कांग्रेस के तेवर ढीले पड़ते नहीं दिख रहे हैं।18 जनवरी को राहुल गांधी के पटना दौरे से पहले कांग्रेस नेताओं के बड़े-बड़े बयान सामने आ रहे हैं।अखिलेश सिंह, शकील अहमद खान, अजीत शर्मा जैसे कद्दावर नेता पहले ही बयान दे चुके हैं और इसी कड़ी में अब ऐसे विधायक ने बयान दिया है जो कांग्रेस की 25 सदस्यीय कोर कमेटी से आते हैं।उन्होंने साफ तौर पर कह दिया है कि कांग्रेस बिहार में 70 सीटों से कम पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है। रोहतास जिले के कांग्रेस के करगहर के विधायक संतोष मिश्रा ने दावा किया है कि बिहार विधानसभा में कुल 70 सीटों से कम पर चुनाव लड़ने का सवाल ही नहीं है, क्योंकि पिछली बार भी उनकी पार्टी 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी।
कांग्रेस नेता भूल रहे हैं कि हरियाणा और महाराष्ट्र मंे शर्मनाक पराजय के बाद अब कांग्रेस दबाव की राजनीति नहीं कर सकती। दिल्ली में दबाव बनाने के प्रयास मंे ही इंडिया गठबंधन के सभी साथी कांग्रेस से किनारा कर गये हैं। दिल्ली मंे अगर भाजपा की सरकार बन गयी तो यह कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी। (हिफी)