लेखक की कलम

मुर्मू के पक्ष में अंतरात्मा की आवाज

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

राजग उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू का राष्ट्रपति निर्वाचित होना तय है। उड़ीसा और आन्ध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टियों ने उनके समर्थन की घोषणा की है। इससे द्रोपदी मुर्मू प्रथम वरीयता मतों के आधार पर ही निर्वाचित हो जाएंगी। सभी समर्थक पार्टियां एकजुट है। दूसरी तरफ विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को अप्रिय स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। संख्याबल और विचारधारा दोनों के आधार पर वह बहुत पीछे रह गए हैं। वह विपक्ष की पहली पसन्द भी नहीं थे। सबसे पहले राष्ट्रपति पद के लिए शरद पवार का नाम आगे किया गया था। पराजय को सुनिश्चित मानते हुए उन्होंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था। इसके बाद फारुख अब्दुल्ला के समक्ष पेशकश की गई। वह भी अपनी फजीहत के लिए तैयार नहीं हुए। वैसे भी जम्मू कश्मीर में संवैधानिक सुधारों के बाद उन्हें मुसीबतों का सामना करना पड़ा। अंत में यशवन्त सिन्हा ही पकड़ में आए। वह भी बहुत अनुभवी हैं। अपनी पराजय का उन्हें भी अनुमान होगा लेकिन पिछले आठ वर्षों से वह नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध एक प्रकार की कुंठा से ग्रसित हैं। इसके लिए वह इधर-उधर भटक रहे थे। तृणमूल कांग्रेस खेमे में पहुँचना इसी भटकाव का ही परिणाम था। ममता बनर्जी के निर्देश पर वह राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बन गए। उन्होंने इसे नरेन्द्र मोदी पर हमला करने का एक अवसर माना है। वह विचारधारा की बात कर रहे हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में अनेक पाले बदले हैं। अब वह किस विचारधारा में है, यह भी स्पष्ट होना चाहिए।
विपक्षी दलों में भी आपसी मतभेद कम नहीं है। ममता बनर्जी ने तो यशवन्त सिन्हा को मंझधार में छोड़ दिया है। उन्होंने कहा है कि द्रोपदी मुर्मू के उम्मीदवार होने का पहले पता होता तो विपक्ष अपना उम्मीदवार नहीं उतारता। इस तरह ममता बनर्जी ने यह स्वीकार कर लिया है कि द्रोपदी मुर्मू अधिक उपयुक्त उम्मीदवार हैं। लखनऊ में राष्ट्रपति चुनाव से सम्बन्धित दो दिलचस्प दृश्य दिखाई दिए। राजग उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू के समर्थन में भारी उत्साह था। विधानसभा चुनाव और उपचुनाव की सफलता और सौ दिन की उपलब्धियों का भी उत्साह इसमें परिलक्षित था। दूसरी तरफ विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की लखनऊ यात्रा उदासी में बीत गई। विपक्षी खेमे में असफलता और गठबंधन में दरार के चलते निराशा है। यशवन्त सिन्हा को ममता बनर्जी की पहल से उम्मीदवार बनाया गया था लेकिन उन्होंने अब हांथ खींच लिया है। हो सकता है कि विपक्षी मतदाता भी अंतरात्मा की आवाज पर द्रोपदी मुर्मू को वोट करें। राष्ट्रपति निर्वाचन मण्डल में सर्वाधिक वोट होने के कारण उत्तर प्रदेश का विशेष महत्त्व है। यह संयोग है कि करीब चैबीस घण्टे के अन्तराल में द्रोपदी मुर्मू और यशवन्त सिन्हा लखनऊ यात्रा प्रवास पर थे। वस्तुतः यहां से द्रोपदी मुर्मू की विजय का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। विपक्ष ने नकारात्मक राजनीतिक अमल किया है। अन्यथा इस चुनाव की आवश्यकता ही नहीं थी। देश सर्वोच्च पद पर वनवासी समुदाय की सदस्य को देखना चाहता है। विपक्ष ने केवल निर्विरोध निर्वाचन की संभावना को समाप्त किया है। इससे विपक्ष की प्रतिष्ठा कम हुई है। राष्ट्रपति चुनाव में आमजन की कोई भूमिका नहीं होती है। फिर भी इस पद हेतु राजग उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू के प्रति आमजन का समर्थन दिखाई दे रहा है। उनके लखनऊ आगमन पर लोगों ने उत्साह प्रदर्शित किया। लोक कलाकारों ने परम्परागत ढंग से उनका स्वागत अभिनन्दन किया। प्रदेश सरकार में मंत्री असीम अरुण भी अपनी प्रसन्नता रोक नहीं सके। उन्होंने भी लोक कलाकारों के साथ ढोल बजाया। अनुच्छेद 52 के अनुसार भारत का एक राष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 53 में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति निर्वाचन नियम, 1974 के उपबंधों द्वारा संपूरित किया गया है, एवं और नियमों के अधीन उक्त अधिनियम राष्ट्रपति के पद के निर्वाचन के आयोजन के सभी पहलुओं को विनियमित करने वाला एक संपूर्ण नियम संग्रह का निर्माण करता है। अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति का चयन एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है। उसमे संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य एवं राज्यों की विधान सभाओं एवं साथ ही राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली क्षेत्र तथा संघ शासित क्षेत्र,पुदुचेरी के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 55 (3) के अनुसार, राष्ट्रपतीय निर्वाचन एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुरूप किया जाएगा और ऐसे निर्वाचन में गोपनीय मतपत्रों द्वारा मतदान किया जाएगा। अनुच्छेद 58 के तहत, एक उम्मीदवार को राष्ट्रपति के पद का चुनाव लड़ने के लिए अनिवार्य रूप से भारत का नागरिक होना चाहिए, 35 वर्ष की आयु पूरी करनी चाहिए, लोकसभा का सदस्य बनने के योग्य होना चाहिए। इसके साथ ही भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन या किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकरण के अधीन किसी भी उक्त सरकार के नियंत्रण के अधीन लाभ का कोई पद धारण नहीं किया होना चाहिए।
नामांकन में पचास प्रस्तावकों और पचास समर्थकों के हस्ताक्षर की हुई सूची जमा करनी होती है। प्रस्तावक और समर्थक राष्ट्रपति चुनाव मतदान करने के योग्य निर्वाचकों में से कोई भी हो सकता है। चुनाव में वोट देने योग्य व्यक्ति केवल एक ही उम्मीदवार के नाम का प्रस्ताव या समर्थन कर सकता है। निर्वाचित सांसदों और निर्वाचित विधायकों को मतपत्र दिए जाते हैं। सांसदों को हरे रंग और विधायकों को गुलाबी रंग का मतपत्र दिया जाता है। उन्हें विशेष पेन भी दिए जाते हैं, जिसका उपयोग वे अपने वोट रिकॉर्ड करने के लिए करते हैं। मतपत्र पर सभी उम्मीदवारों के नाम होते हैं और वोटर अपनी वरीयता को एक या दो अंक के रूप में उम्मीदवार के नाम के सामने लिखकर वोट देता है। ये अंक लिखने के लिए चुनाव आयोग पेन उपलब्ध कराता है। यदि यह अंक किसी अन्य पेन से लिख दिए जाएं तो वह वोट अमान्य हो जाता है। वोटर चाहे तो केवल पहली वरीयता ही अंकित कर सकता है। सभी उम्मीदवारों को वरीयता देना जरूरी नहीं होता है। सांसदों और विधायकों का मत मूल्य अलग अलग होता है। राज्य की जनसंख्या को चुने हुए विधायक की संख्या से बांटा जाता है। फिर उसे एक हजार से भाग दिया जाता है। इसके बाद जो अंक मिलता है, वह उस राज्य के वोट का वेटेज होता है। पूरे देश के सभी विधायकों के वोटों का मूल्य जोड़ा जाता है।
इसमें लोकसभा और राज्यसभा में चुने हुए सांसदों की कुल संख्या से भाग दिया जाता है। फिर जो अंक प्राप्त होता है, उसी से राज्य के एक सांसद के वोट का मूल्य निकलता है। प्रत्येक उम्मीदवार के लिए डाले गए वोटों को जोड़कर, फिर योग को दो से भाग देते हैं और भागफल में एक जोड़कर कोटा तय किया जाता है। इस कोटे से अधिक वोट नहीं मिलते तो सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को हटा देते हैं और हटाए गए उम्मीदवारों के मतपत्र उन वोटों में दूसरी वरीयता पसंद के आधार पर बाकी उम्मीदवारों के बीच वितरित किए जाते हैं। प्रत्येक उम्मीदवार के लिए कुल मतों की गिनती की प्रक्रिया फिर दोहराई जाती है ताकि यह देखा जा सके कि कोई तय कोटा से ऊपर मत पा सका है या नहीं। ऐसा करते हुए जब किसी का वोट कोटा से अधिक पहुंच जाता है तब प्रक्रिया जारी रखते हैं। इसके अलावा लगातार निष्कासन के बाद जब एक उम्मीदवार बचे तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। (हिफी)

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