लेखक की कलम

दिल्ली का दंगल, कांग्रेस का अमंगल

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविन्द केजरीवाल राजनीति के पटु कलाकार साबित हुए हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उनका खेल बिगाड़ने का असफल प्रयास किया था लेकिन केजरीवाल ने दिल्ली के दंगल को कांग्रेस के लिए अमंगल बना दिया। हालात ये हैं कि विपक्षी दलांे के गठबंधन इंडिया के सभी घटक कांग्रेस को खलनायक बता रहे हैं। विपक्षी दलों के मोर्चे की नेता बनने का दावा करने वाली कांग्रेस अब उस गठबंधन से खारिज की जा रही है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पहले ही कांग्रेस से असहमति जता चुके हैं, अब बिहार मंे डिप्टी सीएम रह चुके राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव और सपा के मुखिया अखिलेश यादव भी कांग्रेस को ठेंगा दिखाकर आम आदमी पार्टी (आप) का समर्थन करने लगे हैं। इतना ही नहीं महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के घटक शिवसेना (उद्धव ठाकरे) ने भी कांग्रेस की जगह आप पार्टी का समर्थन कर दिया है। इस प्रकार अरविन्द केजरीवाल ने घरेलू मोर्चेे पर तो जीत हासिल ही कर ली है। उनको विधानसभा चुनाव मंे भाजपा से मुकाबला करना है। कांग्रेस जितनी ही कमजोर होगी, केजरीवाल को उतना ही चुनावी लाभ मिलेगा। दिल्ली ही नहीं अब इसी साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव मंे भी कांग्रेस कोई दबाव नहीं बना पाएगी। उसे राजद की मर्जी पर चलना पड़ेगा।
एक समय था जब, कांग्रेस ही इंडिया गठबंधन की बॉस थी। अब उसे ही बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। पहले उसके नेतृत्व पर सवाल उठे। अब उसके साथ से सब कतराने लगे हैं। उसके सभी अपने पराए होने लगे हैं। इंडिया गठबंधन से कांग्रेस माइनस होती जा रही है। ममता बनर्जी, अखिलेश यादव या तेजस्वी सबने कांग्रेस को ठेंगा दिखा दिया। कांग्रेस को यकीन था कि इंडिया गठबंधन की पार्टियांे से उसे सहयोग मिलेगा। उसे लगा था कि दिल्ली की लड़ाई में वह अलग-थलग नहीं पड़ेगी। मगर उसके सपने पर पानी फिर गया। इंडिया गठबंधन के सभी साथियों ने अपनी मंशा साफ कर दी है। दिल्ली चुनाव में किसका सपोर्ट करना है, ममता बनर्जी से लेकर अखिलेश तक ने तय कर लिया है। अरविंद केजरीवाल की ‘आप’ को ममता-अखिलेश का साथ मिल गया है। उसे कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ लड़ाई में अहम सहयोगियों का साथ मिल गया है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को लेकर कुछ दिन पहले तक मामला फिफ्टी-फिफ्टी का लग रहा था। ऐसा लग रहा था कि इंडिया गठबंधन के अन्य साथी दोनों को या तो बराबर सपोर्ट करेंगे या खुद को तटस्थ रखेंगे पर ऐसा नहीं हुआ। सबने अपने पत्ते खोल दिए। दिल्ली की सियासत कांग्रेस का पूरा खेल ही बदल दिया। हरियाणा-महाराष्ट्र चुनाव हार के बाद से ही कांग्रेस अतिरिक्त दवाब महसूस कर रही थी। उसने सोचा था कि दिल्ली में वह आक्रामक होकर चुनाव लड़ेगी। इसकी रणनीति भी बनी और जमीन पर असर भी दिखा। कांग्रेस ने आप पर खूब हमला बोला। केजरीवाल पर पर्सनल अटैक तक किए। बस कांग्रेस ने यहीं गलती कर दी। अरविंद केजरीवाल ने इसे मौके के रूप में लिया। इंडिया गठबंधन से कांग्रेस को बाहर करने की मांग कर दी। इसका असर हुआ कि ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने दिल्ली के दंगल में अरविंद केजरीवाल की आप को सपोर्ट कर दिया। इसके पीछे यूपी और बिहार की रणनीति रही है। अखिलेश यादव ने अरविंद केजरीवाल को फोन किया। सपा प्रमुख ने फोन पर साफ कर दिया कि समाजवादी पार्टी दिल्ली में आम आदमी पार्टी का समर्थन करेगी। कांग्रेस-भाजपा से मुकाबला कर रही आम आदमी पार्टी को इससे राहत महसूस हुई। ठीक अगले ही दिन यानी 8 जनवरी को अरविंद केजरीवाल को एक और फोन आया। यह फोन था दीदी का। ममता बनर्जी ने भी अरविंद केजरीवाल की पार्टी को अपना समर्थन दे दिया। इसके बाद तो अरविंद केजरीवाल की बाछें खिल गईं। इस तरह दिल्ली की लड़ाई में अखिलेश यादव और ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन से कांग्रेस को माइनस कर दिया। अरविंद केजरीवाल को समर्थन देकर दोनों ने अपना स्टैंड क्लियर कर दिया। कांग्रेस को एक और झटका तब लगा, जब उद्धव ठाकरे ने भी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन दे दिया। कांग्रेस की मुसीबत यहीं खत्म नहीं हुई। बिहार में तेजस्वी यादव ने भी कांग्रेस को साफ-साफ हड़का दिया। तेजस्वी ने तो इंडिया गठबंधन को लोकसभा चुनाव तक का करार बता दिया। राजद ने कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ने की चुनौती दे दी।
बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच सभी राजनीतिक दल अपनी रणनीतियों पर आगे बढ़ रहे हैं। इसी क्रम में राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया है कि इंडिया अलायंस लोकसभा चुनाव के लिए था और यह राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए के मुकाबले के लिए था। बिहार में तो हमारा पहले से ही कांग्रेस से अलायंस है। तेजस्वी यादव के इस बयान को इस संदर्भ में देखा जा रहा है कि ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल के बाद बिहार में आरजेडी की भी कांग्रेस से दूरी बढ़ गई है। हालांकि, सियासत के जानकार इसे बिहार में आरजेडी और कांग्रेस के बीच सीटों की हिस्सेदारी को लेकर प्रेशर पॉलिटिक्स से जोड़कर देख रहे हैं। बिहार में भी कांग्रेस और राजद के बीच सीटों की हिस्सेदारी को लेकर अभी से खींचतान शुरू हो चुकी है। कांग्रेस ने 243 सदस्यीय विधानसभा में 70 सीटों पर दावेदारी ठोक दी है, जबकि बिहार महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, सीपीआई एमएल, सीपीआई, सीपीएम और विकासशील इंसान पार्टी समेत छह दल शामिल हैं।
दिल्ली में बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला कहा जा रहा है लेकिन, लोकसभा चुनाव में ऐसी स्थिति नहीं थी। तब आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ मिलकर लड़ी थी। बिहार में भी इसी वर्ष विधानसभा चुनाव है। तेजस्वी यादव ने निश्चित तौर पर यह संकेत देने की कोशिश की है कि कांग्रेस की बारगेनिंग पर वह दबाव में नहीं आने वाले हैं और सीट बंटवारे पर किसी भी तरह के प्रेशर पॉलिटिक्स को हावी नहीं होने देंगे। दूसरा पहलू यह भी है कि उत्तर प्रदेश में जहां कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का तालमेल रहा है, वहीं दिल्ली विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अपना समर्थन आम आदमी पार्टी को दे दिया है। इसका फायदा सपा उत्तर प्रदेश मंे उठा सकती है। (हिफी)

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