लेखक की कलम

धामी के राज में समानता

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
देव भूमि उत्तराखण्ड मंे सभी लोगों पर समान कानून-व्यवस्था लागू कर दी गयी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने 4 फरवरी 2024 को ही राज्य की कैबिनेट मंे ड्राफ्ट को मंजूरी दी थी। इसके चार दिन बाद ही अर्थात् 28 फरवरी 2024 को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने इसे मंजूरी दे दी थी। अब इस कानून अर्थात् समान नागरिक संहिता (यूसीसी) की नियमावली को भी मंजूरी दे दी गयी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 2022 के विधानसभा चुनाव के समय राज्य की जनता से वादा किया था कि सभी को समानता दी जाएगी। बहरहाल, अभी कानून की नियमावली जारी की गयी है जो अंतिम नोटिफिकेशन के बाद पूरी तरह मान्य होगी। इस बीच किसी को आपत्ति हो तो अदालत की शरण ले सकता है। उत्तराखण्ड विधानसभा ने इस विधेयक को पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजा था और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसे स्वीकृति भी दे दी थी। यूसीसी के मैनुअल का नोटिफिकेशन जनवरी 2025 मंे ही संभव है। इस प्रकार मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने अपना सबसे बड़ा चुनावी वादा पूरा कर दिया है।
उत्तराखंड सरकार ने गत 20 जनवरी को राज्य सचिवालय में हुई कैबिनेट बैठक में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मैनुअल (नियमावली) को मंजूरी दे दी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने संकेत दिया है कि यूसीसी का अंतिम नोटिफिकेशन इसी महीने जारी हो सकता है। उन्होंने मुख्यमंत्री धामी ने कहा, “हमने 2022 में उत्तराखंड के लोगों से वादा किया था कि सरकार बनने के तुरंत बाद यूसीसी बिल लाएंगे। हमने वह वादा निभाया। ड्राफ्ट कमेटी ने इसे तैयार किया, इसे पास किया गया, राष्ट्रपति ने मंजूरी दी और यह एक्ट बन गया। ट्रेनिंग की प्रक्रिया भी लगभग पूरी हो चुकी है। सभी पहलुओं का विश्लेषण करने के बाद जल्द तारीख की घोषणा करेंगे।”
समान नागरिक संहिता का मतलब है ऐसा एक कानून जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और भरण-पोषण जैसे मुद्दों पर सभी धार्मिक समुदायों पर समान रूप से लागू होगा। भारत में अभी एक समान आपराधिक कानून है, लेकिन नागरिक कानून अलग-अलग धार्मिक समुदायों के लिए अलग हैं। आदिवासी समुदायों को यूसीसी के दायरे से बाहर रखा गया है। इसमें हलाला, इद्दत, और तलाक जैसी प्रथाओं पर पूरी तरह से प्रतिबंध है, जो मुस्लिम पर्सनल लॉ का हिस्सा हैं।
मिली जानकारी के अनुसार यूसीसी का ड्रॉफ्ट 750 पेजों में है, जिसमें चार वॉल्यूम और सात शेड्यूल शामिल हैं। इसे तैयार करने के लिए जून 2022 में विशेषज्ञों की पांच-सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। समिति की अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई ने की थी। 2 फरवरी, 2024 को विशेषज्ञ समिति ने अपना ड्राफ्ट सरकार को सौंपा। 4 फरवरी, 2024 को राज्य कैबिनेट ने ड्राफ्ट को मंजूरी दी। इसके बाद 28 फरवरी, 2024 को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने इसे मंजूरी दी। इसके बाद यह विधेयक विशेष सत्र में विधानसभा से पास हुआ। अब सभी धार्मिक समुदायों पर समान कानून लागू होगा। तलाक, विवाह, और संपत्ति के बंटवारे में एक समान प्रक्रिया होगी। महिला अधिकारों को मजबूत करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा। मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने संकेत दिया है कि यूसीसी इसी महीने औपचारिक रूप से लागू हो सकता है। ऐसा होने से उत्तराखंड आजादी के बाद ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने वाला पहला प्रदेश बन जाएगा।
लिव इन रिलेशनशिप के कई अप्रिय प्रसंग सामने आये हैं। अब यूसीसी विधेयक की धारा 378 में राज्य में रह रहे पुरुष और महिला के लिए, चाहे वे उत्तराखंड के निवासी हों या नहीं, संबंधित रजिस्ट्रार को “लिव इन रिलेशनशिप स्टेटमेंट” जमा करना अनिवार्य कर दिया गया है। यदि कपल बाहर रह रहे हैं, तो उत्तराखंड के निवासियों को अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर रजिस्ट्रार को अपने लिव इन रिलेशनशिप की स्थिति प्रस्तुत करनी होगी। कानून कहता है कि पंजीकरण में एक महीने की भी देरी या झूठी जानकारी देने पर छह महीने तक की जेल और 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। अधिकारी अपने आप से या शिकायत के आधार पर रिश्ते को पंजीकृत नहीं करने के लिए जोड़े को नोटिस जारी कर सकते हैं। कानून के अनुसार, लिव इन रिलेशनशिप संबंध से पैदा हुए बच्चे “वैध” होंगे। बच्चे को वैध रूप से विवाहित माता-पिता की तरह ही अधिकार और लाभ प्राप्त होंगे। विधेयक में लिव इन रिलेशनशिप संबंध में साथी द्वारा महिला को छोड़ दिए जाने की स्थिति में विवाह के समान रखरखाव का भुगतान करने का भी आदेश दिया गया है। यदि कपल अपने रिश्ते को समाप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें दूसरे पक्ष और रजिस्ट्रार को एक नोटिस देना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि समाप्ति को अधिकारियों द्वारा मान्यता दी जाए।
गोद लेने के मामले मंे भी यूसीसी एकरूपता लाएगा, जिसका अर्थ है, जिन समुदायों को वर्तमान में कानूनी रूप से बच्चा गोद लेने की अनुमति नहीं थी, उन्हें ऐसा विकल्प दिया जा सकता है। वर्तमान में, हिंदू एडॉप्शन और मेंटिनेंस एक्ट (1956) केवल हिंदुओं, जैनियों, सिखों और बौद्धों के लिए है। मुस्लिम समुदाय यूसीसी को अपनाने के बाद कांट्रैक्ट विवाह (मुता), निकाह हलाला, मिस्यार विवाह (सुन्नी मुसलमानों द्वारा किया जाने वाला एक विवाह अनुबंध) और बहुविवाह जैसी प्रथाएं संभवतः अप्रभावी हो जाएंगी। यहां तक कि शरीयत कानून के तहत न्यूनतम विवाह आयु भी बदल जाएगी। यूसीसी अधिक स्वीकृत तरीके लाएगा जिसके माध्यम से मुस्लिम पुरुष और महिला दोनों अपने विवाह को समाप्त कर सकते हैं। इसी प्रकार वर्तमान में, कैथोलिक कानून ईसाई विवाह को स्थायी, अविभाज्य के रूप में मान्यता देता है, जबकि कुछ इसे एक
अनुबंध के रूप में भी मान्यता दे सकते हैं। यूसीसी विवाहों में एकरूपता लाएगा।
इस प्रकार समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद हिंदू, मुसलमान, ईसाई समुदाय के लिए शादी, तलाक, संपत्ति बंटवारा समेत कई चीजों में बदलाव आ जाएगा। उत्तराखंड में मुस्लिम ही नहीं कई ऐसे हिंदू समुदाय भी हैं, जो एक से ज्यादा शादियां करते हैं। उत्तराखंड की जौनसारी जनजाति में महिलाओं के एक से ज्यादा पुरुषों के साथ शादी करने की परंपरा है। वहीं, भोटिया में पुरुषों के बहुविवाह की परंपरा है। सवाल उठता है कि यूसीसी लागू होने के बाद इन जनजातियों में शादी की परंपरागत व्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा? उत्तराखंड की जनजातियों में जौनसारी, थारू, राजी, बुक्सा और भोटिया जनजाति प्रमुख समूह हैं। उत्तराखंड के देहरादून जिले में लाखामंडल गांव की जौनसारी जनजाति के लोग आज भी अपनी धार्मिक परंपरा के चलते पॉलीऐन्ड्री विवाह करते हैं। आसान भाषा में समझें तो यहां महिलाओं के एक से ज्यादा पुरुषों के साथ शादी करने की परंपरा है। भोटिया जनजाति में महिलाओं को तो बहुविवाह की छूट नहीं है, लेकिन पुरुषों को एक से ज्यादा शादियां करने की अनुमति है। इसीलिए समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी के दायरे से उत्तराखंड की जौनसारी, थारू, राजी, बुक्सा और भोटिया जनजातियों को बाहर रखा गया है। (हिफी)

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