लेखक की कलम

पेंशनभोगियों को एक बार फिर उम्मीदें

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
पेंशनभोगियों की मांगों की समीक्षा करने का वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो आश्वासन दिया है, उसने लाखों रिटायर्ड लोगों के मन में एक नई आशा जगा दी है। अगर 7,500 रुपये की प्रस्तावित बढ़ोतरी लागू की जाती है, तो इससे करोड़ों ईपीएफओ सब्सक्राइबर्स को फायदा होगा। सरकार का यह कदम भारत के बुजुर्ग कार्यबल के लिए वित्तीय गरिमा सुनिश्चित करने में एक नया अध्याय शुरू कर सकता है। साल 2014 से ईपीएस-1995 के तहत न्यूनतम पेंशन 1000 रुपये प्रतिमाह है। लंबे वक्त से न्यूनतम पेंशन को बढ़ाकर 7500 रुपये करने की मांग की जा रही है। ईपीएस-95 पेंशन भोगियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने अपनी इन मांगों को लेकर 10 जनवरी, 2025 को बजट पूर्व परामर्श बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात की थी। उन्होंने सरकार के सामने 7,500 रुपये की न्यूनतम मासिक पेंशन के साथ-साथ पेंशनभोगियों और उनके जीवनसाथी दोनों के लिए महंगाई भत्ते (डीए) में बढ़ोतरी और उन्हें मुफ्त चिकित्सा उपचार की सुविधा देने की मांग रखी थी। रिपोर्ट की मानें तो, सीतारमण ने ईपीएस-95 राष्ट्रीय आंदोलन समिति को आश्वासन दिया कि उनकी मांगों की समीक्षा की जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रेड यूनियनों ने भी सत्र के दौरान वित्त मंत्री से मुलाकात की, लेकिन उन्होंने पेंशन को कम करके 5,000 रुपये प्रतिमाह करने की वकालत की। ट्रेड यूनियनों की इस मांग की ईपीएस-95 राष्ट्रीय आंदोलन समिति ने आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह राशि पेंशनभोगियों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। रिपोर्ट में पेंशन निकाय के हवाले से दावा किया गया है कि सरकार की 2014 में न्यूनतम मासिक पेंशन 1,000 रुपये निर्धारित करने की घोषणा के बावजूद, 36.60 लाख से ज्यादा पेंशनर्स को अभी भी इस राशि से कम मिलता है। इसी से पता चलता है कि भारत के बुजुर्ग कार्यबल के लिए वित्तीय गरिमा सुनिश्चित करने के प्रयास अब तक आधे अधूरे ही हैं। इसके बावजूद उम्मीदें मरती नहीं हैं। सवाल यह उठता है कि देश में करीब 5 करोड़ प्राइवेट कर्मचारी हैं। क्या सरकार को उनकी पेंशन संबंधी जरूरतों का कोई ख्याल नहीं है। केन्द्र सरकार के बजट 2025-2026 में ईपीएफ में बढ़ोतरी के निर्मला सीतारमण के आश्वासन ने सोयी उम्मीदों में हलचल पैदा कर दी।
ईपीएफ मेंबर हर महीने अपनी बेसिक सैलरी का 12 फीसद प्रोविडेंट फंड में कंट्रीब्यूट करते हैं, और उतना ही योगदान कंपनियों की तरफ से किया जाता है। कंपनियों का कॉन्ट्रीब्यूशन दो भागों में बंट जाता है, जिसमें 8.33 प्रतिशत एम्प्लॉई की पेंशन स्कीम (ईपीएस) में जाता है, और 3.67 फीसद एम्प्लॉई के प्रोविडेंट फंड में जाता है।
पेंशनभोगियों की मांगों की समीक्षा करने का वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो आश्वासन दिया है, उसने लाखों रिटायर्ड लोगों के मन में एक नई आशा जगा दी है। अगर 7,500 रुपये की प्रस्तावित बढ़ोतरी लागू की जाती है, तो इससे करोड़ों ईपीएफओ सब्सक्राइबर्स को फायदा होगा। सरकार का यह कदम भारत के बुजुर्ग कार्यबल के लिए वित्तीय गरिमा सुनिश्चित करने में एक नया अध्याय शुरू कर सकता है।
ईपीएफ भारत की एक राज्य प्रोत्साहित अनिवार्य अंशदायी पेंशन और बीमा योजना प्रदान करने वाला शासकीय संगठन है। सदस्यों और वित्तीय लेनदेन की मात्रा के मामले में यह विश्व का सबसे बड़ा संगठन है। इसका मुख्य कार्यालय दिल्ली में है। बड़े-बड़े शहरों में उपकार्यालय बनाए गये हैं। इसका लक्ष्य सार्वजनिक प्रबंधन की गुणवत्ता के जरिये वृद्धावस्था आय सुनिश्चित करने सुरक्षा कार्यक्रमों हेतु अनुपालन के मानदंडों में साफ-सुथरे, ईमानदार एवं सत्यनिष्ठ तरीके से निरंतर सुधार करना और लाभ प्रदान करना है तथा ऐसी प्रणाली तैयार करना है जो भारतीयों को विश्वास जीत सके एवं उनकी आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा में योगदान प्रदान कर सके।
यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) का लाभ केंद्र सरकार के लगभग 23 लाख कर्मचारियों को मिलेगा लेकिन प्राइवेट कर्मचारियों के लिए भी पेंशन स्कीम हैं जिसमें लगातार योगदान देकर कर्मचारी अपनी आखिरी सैलरी से भी ज्यादा पेंशन पा सकते हैं। केंद्र सरकार ने हाल ही में यूनिफाइड पेंशन स्कीम यानी यूपीएस को मंजूरी दी है। इसका लाभ केंद्र सरकार के लगभग 23 लाख कर्मचारियों और राज्य सरकार के कर्मचारियों को जोड़ दें तो यह संख्या करीब 90 लाख तक हो जाती है। यूपीएस के तहत सरकार कर्मचारियों को पेंशन की गारंटी दे रही है जिसमें 25 साल तक नौकरी करने के बाद बेसिक सैलरी का 50 फीसदी हिस्सा पेंशन के रूप में मिलेगा। पेंशन की रकम अंतिम 12 महीने की एवरेज बेसिक सैलरी का 50 फीसदी होगी। वहीं कम से कम 10 साल की नौकरी करने वाले कर्मचारी भी 10,000 रुपये के मासिक पेंशन के हकदार हो जाएंगे। पेंशनभोगी कर्मचारी की मौत के बाद उसकी पेंशन का 60 प्रतिशत उसके परिवार को दिया जाएगा।
इसके साथ ही सवाल यह उठता है कि देश में करीब 5 करोड़ प्राइवेट कर्मचारी हैं क्या सरकार को उनकी पेंशन संबंधी जरूरतों का कोई ख्याल नहीं है। क्या प्राइवेट कर्मचारियों के लिए सरकार की ऐसी कोई योजना है जो उनके बुढ़ापे का सम्मानजनक सहारा बन सके। प्राइवेट जॉब करने वालों के लिए एम्प्लाइज प्रोविडेंट फंड आर्गनाईजेशन (ईपीएफओ) के तहत पेंशन की सुविधा मिलती है। पीएफ खाताधारकों को ईपीएस-95 के तहत पेंशन का लाभ दिया जाता है। ईपीएफओ के नियमों के मुताबिक कोई भी कर्मचारी 10 साल नौकरी करने के बाद पेंशन पाने का हकदार हो जाता है। यह योजना 58 वर्ष की आयु तक पहुंचने वाले पात्र कर्मचारियों को पेंशन लाभ की गारंटी देती है। प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लोगों की सैलरी का एक बड़ा हिस्सा पीएफ के तौर पर कटता है, जो कि हर महीने कर्मचारी के पीएफ अकाउंट में डिपॉजिट हो जाता है। अगर आप 10 साल तक प्राइवेट नौकरी भी कर लेते हैं तो पेंशन के हकदार हो जाते हैं। नियम के मुताबिक, कर्मचारी की बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ते का 12 फीसदी हिस्सा हर महीने पीएफ अकाउंट में जमा होता है जिसमें से कर्मचारी का पूरा हिस्सा ईपीएफ में जाता है, जबकि नियोक्ता (एम्प्लॉयर) का 8.33 फीसद हिस्सा कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) में जाता है और 3.67 फीसद हर महीने ईपीएफ योगदान में जाता है।
आज हालात ये हैं की 30-35 साल निजी संस्थान में सेवा करने के बाद भी 2000 रुपये भी पेंशन के रूप में नहीं मिल पाते हैं। इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) के महासचिव संजय कुमार सिंह ने बताया कि निजी सेक्टर के कर्मचारियों की न्यूनतम पेंशन 1000 रुपये से बढ़ाकर प्रतिमाह 10000 करने की हमारी मांग पुरानी है लेकिन अब यूपीएस के एलान के बाद हम निजी सेक्टर के कर्मचारियों के लिए भी सरकार से ऐसी पेंशन स्कीम लाने की मांग करने जा रहे हैं जो प्रतिमाह 10000 से अधिक हो। उन्होंने कहा कि निजी सेक्टर के कर्मचारी भी इनकम टैक्स देते हैं और जीडीपी में अपना योगदान देते हैं तो फिर उन्हें भी सम्मानित पेंशन की सुविधा मिलनी चाहिए। सरकारी कर्मचारियों के लिए सरकार अपनी तरफ पेंशन फंड में अब 18.5 प्रतिशत का योगदान देगी तो निजी सेक्टर के कर्मचारियों के लिए भी ऐसा कर सकती है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ईपीएफओ की तरफ से निजी सेक्टर के कर्मचारियों को सम्मानित पेंशन देने के लिए एक स्कीम लाई गई थी जिसके तहत उन्हें भी अंतिम मूल वेतन का लगभग 30 प्रतिशत पेंशन के रूप में देने की व्यवस्था की बात थी, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। (हिफी)

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