जिंदगी के प्रति फास्ट फूड जैसी सोच

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
आपको भी 2 जनवरी सुबह के समाचारों में एक और विवाहित युवक पुनीत द्वारा अपनी पत्नी के साथ चल रहे डायवर्स के विवाद के चलते सुसाइड करने का समाचार मिला होगा। अभी देश अतुल सुभाष की आत्महत्या के सदमे से उबरा भी नहीं था कि पिछले दिनों दिल्ली से अतुल सुभाष जैसा ही एक और केस सामने आया है। दिल्ली के रहने वाले पुनीत खुराना की 2016 में शादी हुई थी, अब पुनीत ने खुद की जान ले ली है। पुनीत की खुदकुशी के पीछे उनके परिवार ने उनकी पत्नी को वजह बताया है। पुनीत के परिवार का कहना है कि पुनीत से उसकी पत्नी का तलाक के लिए केस चल रहा था। आत्महत्या से पहले पत्नी से पुनीत की फोन पर बात हुई जिसकी रिकार्ड क्लिप वायरल हो रही है। बातचीत के बाद पुनीत ने पंखे से लटककर अपनी जान दे दी।
उनके परिवार का कहना है कि पुनीत ने खुदकुशी से पहले लगभग 1 घंटे का वीडियो भी बनाया है। आखिर यह सिलसिला कब रुकेगा। हमारे देश की लचर कानून-व्यवस्था और कितने अतुल व पुनीत की बलि लेगी। वहीं सवाल यह भी है कि विवाहित युवा भीतर ही भीतर कितना टूट जाते हैं कि वह बात बेबात पर सुसाइड कर रहे हैं। जिंदगी को फास्ट फूड समझ लिया है।
दरअसल आजकल युवाओं में जिंदगी के प्रति फास्टफूड जैसी सोच पनप रही है। यदि आपसी संबंधों में तनाव पनपता है तो वह जीवन साथी को तत्काल अपने अनुसार चलाना चाहते हैं जबकि किसी भी युवक या युवती के लिए यह संभव नहीं है कि वह एक दूसरे की सोच और जीवन जीने के तरीके पर सौ फीसदी खरे उतरें। दरअसल इसके लिए पति-पत्नी के बीच सामंजस्य स्थापित करने की जरूरत है। पहले संयुक्त परिवार की परंपरा में यह सामंजस्यपूर्ण व्यवहार परिवार में परवरिश के दौरान युवा खुद सीख समझ लेते थे लेकिन अब एकल परिवार के जमाने में सामंजस्य का बेहद अभाव हो गया है। पति-पत्नी एक दूसरे पर अपनी सोच जबरन थोपना चाहते हैं। बस यही कारण है कि आपस में विवाद और मुकदमेबाजी शुरू हो जाती है।
दूसरा बड़ा कारण कानून में महिलाओं को संरक्षण और पुरुष को अपराधी मानने की अवधारणा है।
अब दहेज व घरेलू प्रताड़ना से संबंधित कानूनों में बदलाव नितांत आवश्यक हो गया है ताकि न्याय की इस भावना का पालन हो सके। किसी निर्दोष को सजा नहीं होना चाहिए। आत्महत्या जैसा कठिन निर्णय कोई जिम्मेदार व्यक्ति यूं ही नहीं लेता इसलिए अब न्यायविदों व समाज सुधारकों को यह सोचना ही होगा कि जब एक युवक आत्महत्या के लिए विवश हुआ होगा तो उससे पूर्व उसे कितनी मानसिक प्रताड़ना और पीड़ा से गुजरना पड़ा होगा?
सरकार को भी इस बात पर
ध्यान देना चाहिए कि महिलाओं या किसी अन्य वर्ग के संरक्षण के लिए बने कानूनों का दुरुपयोग न हो , वह इसकी पुख्ता व्यवस्था करे। इन कानूनों का दुरुपयोग करने वालों पर कठोर कार्रवाई होना ही चाहिए, चाहे वह पुलिस विभाग का आदमी हो, न्यायपालिका से जुड़े लोग हों या फिर वे शातिर खिलाड़ी जो इन कानूनों से खेलते हैं।
इन कानूनों में सुधार के लिए सरकार व न्यायपालिका पर दबाव इसके लिए हम सभी जागरूक लोगों को सक्रिय होकर अपनी आवाज बुलंद तरीके से उठानी होगी !
आजकल सोशल मीडिया का जमाना है। यह अपनी बात संबंधित लोगों तक पहुॅंचाने का एक सशक्त माध्यम है। इसलिए सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी बात रखंे! सम्बंधित खबरों को लाइक के साथ ही शेयर भी करें और कमेंट में अपने विचार भी जरूर दें जिससे कि ऐसे पोस्ट की रीच बढ़ सके और यह जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुॅंच सके। तथ्य पूर्ण तरीके से संयमित भाषा में अपनी बात रखें! ध्यान रखें, ये नारी बनाम पुरुष का मसला नहीं है! ये पक्षपात पूर्ण कानून, सालों चलने वाली लम्बी, थका देने वाली और उबाऊ कानूनी प्रकिया, असम्बेदनशील तंत्र और पुरुषों के अंतहीन शोषण का गम्भीर विषय है!
अधिकतम लोगों को इसमें प्रतिक्रिया देनी चाहिए, क्योंकि आज ये दूसरों के साथ हो रहा है, कल आपके अपने भी इससे परेशान हो सकते हैं! बदलाव बहुत धीमे होते हैं, सरकार और समाज की सोच बदलना इतना आसान नहीं है लेकिन यह असंभव भी नहीं है! अतः लम्बे समय तक निरंतर सक्रिय रहें! ये हमारा सामाजिक दायित्व है कि अन्याय के खिलाफ हम मिलकर आवाज उठायें!
कुछ लोग इस तरह की स्थिति में फॅंसने पर इसे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ लेते हैं जिस कारण संकोच वश ये दूसरे लोगों से इसकी चर्चा करने में परहेज करते हैं। इस संकोच को त्याग दें कि लोग क्या कहेंगे? कोई कुछ नहीं कहेगा और कहेगा भी वह क्या कर लेगा? आज कल किसी को किसी की परवाह नहीं है। लोग मुॅंह पर तो सहानुभूति जताते हैं और पीठ पीछे मजाक उड़ाते हैं। अतः सामाजिक निन्दा की परवाह न करें! आपकी जितनी बेइज्जती होनी थी, वह हो चुकी इसलिए खुलकर अपने साथ हो रहे अत्याचार, ब्लैकमेल और शोषण को जाहिर करें!
सबसे अंतिम व सबसे महत्वपूर्ण बात कि अपने जैसे अन्य पीड़ित लोगों का साथ दे, उनका मोरल सपोर्ट करे! संगठित होकर मी टू जैसे अभियान के माध्यम से अपनी पीड़ा जग जाहिर करें !
पुनीत और अतुल की सुसाइड अंतिम नहीं है अभी जब तक युवाओं में सिर्फ पत्नी या अफेयर के अलावा भी परिवार के प्रति जिम्मेदारी की भावना का विकास नहीं किया जाता है और रील बनाने को प्राथमिकता देने का सोशल मीडिया मे फर्जी प्रचार व सहानुभूति पाने की ललक कम नही होगी ऐसी घटनाएं घटित होती रहेंगी। जरूरत इस बात की है कि युवा पीढ़ी जीवन के महत्व को समझें। सुसाइड करना, रील बनाना, सहानुभूति हासिल करना कोई मायने नहीं है। इनकी अहमियत जीवन के अस्तित्व में रहने तक है। रील कितने दिन वायरल होगी? इस सहानुभूति से क्या हासिल होगा? पत्नी या प्रेमिका के इतर भी मां बाप भाई बहन दोस्त सहकर्मी समेत एक पूरा संसार है। उसका भी विचार करना चाहिए। यह निरी मूर्खता और उतावलापन के सिवाय कुछ नहीं है। परिस्थितियों से पलायन करने की जगह उनका मुकाबला करना होगा। (हिफी)