लेखक की कलम

लोक गायिका शारदा सिन्हा का सम्मान

मृत महोत्सव

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

अमृत महोत्सव का यह वर्ष जन जन की चेतना को स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष की महान गाथाओं, महापुरूषों की स्मृतियों एवं उनकी मूल प्रेरणाओं से जोड़ने का अवसर दिया। जिन लोक महानायकों ने आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ाया उन्हें नमन किया गया। सोन चिरैया ने लखनऊ में तीन दिवसीय भारत की लोक कलाओं का अमृत महोत्सव देशज का आयोजन किया गया था।

भारतीय जन जीवन में लोक संगीत सहज स्वभाविक रूप में समाहित है। जीवन से जुड़े सभी प्रसंगों से संबंधित लोक गीतों की भरमार है। यहां प्रभु ने मनुष्य रूप में अवतार लिया। बाल्यकाल से लेकर धर्म क्षेत्र व कुरु क्षेत्र तक प्रभु अलौकिक लीला करते है। प्रभु भोलेनाथ व माता पार्वती के प्रसंग भी आस्था से जुड़े है। इन सभी विषयों पर लोक गीतों व नृत्य की युगों युगों से परम्परा चली आ रही है। भाषा व क्षेत्र के अनुरूप इनमें विविधता रहती है लेकिन इन सभी की सांस्कृतिक भावभूमि समान है। लोक संगीत की दृष्टि से भारत सर्वाधिक समृद्ध है। यहां के संगीत में एकरसता नहीं,बल्कि विविधता है। प्रत्येक क्षेत्र अपने विशिष्ट संगीत के लिए पहचाना जाता था लेकिन इसकी गूंज उस क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं थी। भाषा का अंतर भी बाधक नहीं था। एक दूसरे का संगीत सभी को बांधने की क्षमता रखता था। यह सब भारतीयों के जीवन शैली के साथ जुड़ा था। गोदभराई से लेकर जीवन के सभी संस्कारों के लिए कुछ न कुछ था। यह विशाल और महान विरासत रही है लेकिन आधुनिकता के मोह में इसे उपेक्षा भी मिली। अब विवाह में भी लेडीज संगीत, डीजे आदि का क्रेज बढ़ने लगा। ढोलक, मंजीरे, लोक गीत संगीत पीछे छूटने लगे लेकिन दूसरी तरफ लोक संगीत के संरक्षण व संवर्धन का भी प्रयास चल रहा है। लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी इसकी अलख जगा रही है। उंन्होने सोन चिरैया संस्था की स्थापना की। इसका नाम भी अपने में बहुत कुछ कहता है।
मालिनी अवस्थी के प्रयासों से निजी क्षेत्र में सबसे बड़े लोक संगीत पुरस्कार की शुरुआत हुई। राज्यपाल आनन्दी बेन पटेल ने बिहार की लोक संस्कृति की प्रसिद्ध लोक गायिका पद्म भूषण डॉ शारदा सिन्हा को लोक कलाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए लोकनिर्मला सम्मान से सम्मानित किया। उनको स्मृति चिन्ह,अंगवस्त्र एवं पुरस्कार राशि एक लाख रुपये का चेक भेंट किया। आनन्दी बेन ने कहा कि लोक संस्कृति हमारी जीवंत परंपरा है। इसका प्रचार प्रसार और विकास करने की जरूरत है। यह भारतीय जीवन शैली का अभिन्न अंग है। इसका सबसे जीवंत रूप हमारे घरों में शादी विवाह, जन्मदिन जैसे उत्सवों पर गाये जाने वाले संगीत और नृत्य में देखने को मिलता है। समारोह में लोकनिर्मला सम्मान से सम्मानित डॉ शारदा सिन्हा ने अपनी विशेष प्रस्तुति में भगवती वंदना प्रस्तुत की जिसमें उनकी पुत्री वंदना ने सह प्रस्तुति दी। समारोह में विभिन्न प्रदेशों से आये लोक कलाकारों ने गीत एवं संगीत का मनोहारी प्रदर्शन किया। लोक संगीत जगत में शारदा सिन्हा विख्यात है।
बचपन से ही उनका मैथिली लोकगीत के प्रति रुझान था। वह लोक संगीत के कार्यक्रमों में सहभागी होती थी। यहीं से उनको प्रसिद्धि मिलने लगी थी।
छठ पर्व,दुर्गा पूजा, बिहार उत्सव आदि के माध्यम से उन्हें व्यापक ख्याति मिली। शारदा सिन्हा का जन्म मिथिला क्षेत्र के सुपौल जिले के हुलास गांव में हुआ था। शारदा सिन्हा की गायिकी के प्रति रुचि को देखते हुए बचपन में ही इनके पिता ने एक गाना व नृत्य सिखाने वाले शिक्षक को रखा। वह घर पर आकर शारदा सिन्हा को प्रशिक्षण देते थे। इन्होंने पटना विश्वविद्यालय से स्नातक किया। मैथिली, मगही और भोजपुरी लोक गीतों में उन्हें महारथ प्राप्त है। उनका श्रद्धांजलि नामक एक एल्बम लोकप्रिय हुआ। नजरा गइलीं गुइयां, पनिया के जहाज से पलटनिया बनि अइह पिया,गावल पिरितिया काहे ना लगवले और बताव चाँद केकरा से कहां मिले जाला आदि उनके बेहद लोकप्रिय गीत है। उन्होंने हिंदी फिल्मों में भी गायन किया। मैने प्यार किया फिल्म का गाना ‘कहे तोसे सजना’, हम आपके हैं कौन में ‘विदाई गीत’ गैंग्स ऑफ वासेपुर में शादी गीत ‘तार बिजली से पतले हमारे पिया’ भी काफी लोकप्रिय हुआ था।
शारदा सिन्हा को बिहार गौरव भोजपुरी कोकिला, बिहार रत्न,पद्मश्री, देवी अहिल्या सम्मान पद्मभूषण पुरस्कार मिल चुका है। पद्मश्री मालिनी अवस्थी सोन चिरैया के माध्यम से लोक संगीत की विविध विधाओं के संरक्षण व संवर्धन में सतत सक्रिय है। संरक्षण के साथ ही उन्होंने इसमें सम्मान को भी समाहित किया है। लोक निर्मला सम्मान इस क्षेत्र का सबसे बड़ा सम्मान है। इस अवसर पर होने वाले सांस्कृतिक समारोह भी अपने में सभी लोक कलाकारों के प्रति सम्मान की अभिव्यक्ति जैसे होते है। इसमें लोक कलाओं के अनेक रंग एक साथ प्रकट होते है। इसमें भारत की अति प्राचीन संस्कृति धरोहर के दर्शन होते है जिसे हमारे लोक कलाकारों ने अनेक परेशानियों का सामना करते हुए सहेज कर रखा है। चकाचैध के इस दौर में इनकी राह आसान नहीं रही। फिर भी इन कलाकारों ने संघर्ष किया,संगीत साधना को निरन्तर जारी रखा,आर्थिक अभाव देखा,अनेक विरोधों का सामना किया,लेकिन विचलित नहीं हुए। इस बार भी लोक निर्मला सम्मान समारोह में लोक संगीत की आकर्षक प्रस्तुति हुई। सोनचिरैया संस्था आजादी के अमृत महोत्सव समारोह में भी सहभागी रही है। स्वतन्त्रता संग्राम में लोक कलाकारों ने भी अपने अपने ढंग से योगदान दिया था। लोक कला के
माध्यम से वह देश भक्ति की प्रेरणा दे रहे थे। अमृत महोत्सव का यह वर्ष जन जन की चेतना को स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष की महान गाथाओं, महापुरूषों की स्मृतियों एवं उनकी मूल प्रेरणाओं से जोड़ने का अवसर दिया। जिन लोक महानायकों ने आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ाया उन्हें नमन किया गया। सोन चिरैया ने लखनऊ में तीन दिवसीय भारत की लोक कलाओं का अमृत महोत्सव देशज का आयोजन किया गया था। वस्तुतःलोक कलाओं के संरक्षण।संवर्द्धन के साथ उसको नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए प्रचार प्रसार की जरूरत है। लोक कलाओं में हमारी परम्पराएं जीवन्त हैं। ऐसे आयोजन लोक कलाओं के संवर्धन में महत्वपूर्ण है। लोक कलाओं के निरंतर विकास में गुरुओं का महत्वपूर्ण स्थान है। अमृत महोत्सव आयोजन के संबन्ध में पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने बताया था कि यह महोत्सव सोनचिरैया संस्था के दस वर्ष पूर्ण होने के अवसर को अविस्मरणीय बनाने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था। इस लोक महोत्सव को भारत के स्वाधीनता संग्राम में लोक कलाकारों का योगदान की विषय वस्तु पर केंद्रित किया गया था। (हिफी)

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