सौ दिनों का चुनाव परिणाम

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
सपा के दोनों दिग्गजों के लिए लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देना शुभ नहीं रहा। इन्होंने विधान सभा में रहने का निर्णय लिया था लेकिन इस दांव का प्रतिकूल असर हुआ। विधानसभा में कोई वैचारिक लाभ नहीं मिला। इनके द्वारा छोड़ी गई लोकसभा की दोनों सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया। इसने जहां भाजपा का मनोबल बढ़ाया है, वहीं सपा को निराश होना पड़ा है। इसका मनोवैज्ञानिक असर दो वर्ष बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भी दिखाई देगा क्योंकि दोनों ही क्षेत्र सपा के गढ़ थे। यहां से पराजित होना उसके लिए एक बड़ा सबक है। मुख्य विपक्षी पार्टी को प्रभावी और मजबूत बनाने के लिए अखिलेश यादव ने लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी थी। आजम खान भी प्रदेश में अपना महत्त्व बनाये रखना चाहते थे। इसलिए उन्होंने भी लोकसभा से त्यागपत्र दिया था लेकिन पार्टी को मजबूत बनाने की बात तो दूर, सौ दिन में सपा अपने महत्त्वपूर्ण गढ़ भी बचा नहीं सकी। पांच वर्ष पहले आजमगढ़ और रामपुर नकारात्मक रूप में चर्चित थे। रामपुर में आजम खान का जलवा दिखता था। जौहर विश्वविद्यालय के निर्माण कार्यों पर सवाल उठते थे। आतंकी गतिविधियों के संदर्भ में आजमगढ़ के चंद लोगों का नाम सुर्खियों में आ जाता था। उस समय केंद्र की यूपीए और प्रदेश की सपा सरकार इस मसले को वोटबैंक के नजरिये से देखती थी। आजमगढ़ में आरोपियों के यहां पहुँचने में सेक्युलर नेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा चलती थी। आजम खान के नखरे तो पूरा शासन प्रशासन और सत्तारूढ़ पार्टी उठाती थी। योगी आदित्यनाथ सरकार ने आजमगढ़ और रामपुर दोनों को विकास की मुख्यधारा में शामिल किया। सभी विकास योजनाओं का बिना भेदभाव के क्रियान्वयन सुनिश्चित किया गया। विकास कार्यों ने दोनों जनपदों को नकारात्मक छवि से बाहर निकाला। विगत पांच वर्षों में एक बार भी इन जनपदों की नकारात्मक चर्चा नहीं हुई। किन्तु विधान सभा चुनाव में यहां विपक्ष के समीकरण ही प्रभावी रहे। विकास योजनाओं से लाभान्वित लोगों ने भी जाति मजहब के आधार पर वोट किया था।
मात्र सौ दिन में ही यहां की राजनीतिक तसवीर बदल गई। मतदाताओं ने जमीनी सुधार के आधार पर मतदान किया। परिणाम स्वरूप दोनों ही क्षेत्रों में भाजपा विजयी हुई। आजमगढ़ के विकास को काशी और गोरखपुर के विकास के तर्ज पर आगे बढ़ाया गया। आजमगढ़ को पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे से जोड़ने का कार्य किया गया। आजमगढ में नया विश्वविद्यालय बन रहा है। योगी आदित्यनाथ का आरोप था कि आजमगढ़ को समाजवादी पार्टी की सरकार ने आतंक का गढ़ बना दिया था जबकि आजमगढ़ को विकास के साथ जोड़ने का कार्य भाजपा सरकार ने किया है।
यह चुनाव परिणाम करीब सौ दिन पर आधारित है। मतदाताओं ने इस दौरान सत्ता और प्रतिपक्ष दोनों के कार्यों का आकलन किया। योगी आदित्यनाथ ने सौ दिन की कार्ययोजना बनाई थी। उनका कहना था कि पिछली बार के मुकाबले अधिक तेजी से कार्य किया जाएगा। इसमें उनकी प्रतिस्पर्धा अपनी ही पिछली सरकार से होगी। योगी सरकार ने एक ही कार्यकाल में पिछली सरकारों के मुकाबले बढ़त बनाई है। ऐसे में उसकी प्रतिस्पर्धा अब उन सरकारों से संभव ही नहीं है। उन्हें बहुत पीछे छोड़ कर योगी सरकार आगे निकल चुकी है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ ने अपनी ही पिछली सरकार से प्रतिस्पर्धा का संकल्प लिया था। सौ दिन में इस यात्रा को आगे बढ़ाया गया।योगी सरकार ने जन कल्याण के निर्णयों से अपनी दूसरी पारी का शुभारंभ किया। नई कैबिनेट ने निःशुल्क राशन योजना को जारी रखने का निर्णय लिया। इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को सुशासन संबन्धी दिशा निर्देश दिए। इस प्रकार सरकार ने अपना मन्तव्य स्पष्ट कर दिया। कानून व्यवस्था को सुदृढ़ रखने के साथ ही विकास कार्यों में तेजी कायम रखी जायेगी। सरकार जन अकांक्षाओं को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। चुनाव के पहले जारी लोक कल्याण संकल्प के सभी संकल्प बिन्दुओं को आगामी पांच वर्षों में लक्ष्यवार एवं समयबद्ध ढंग से पूरा किया जाएगा। उत्तर प्रदेश को देश का नम्बर वन राज्य और प्रदेश की अर्थव्यवस्था को देश की नम्बर वन अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था को एक ट्रिलियन यूएस डॉलर बनाने के लिए दस प्राथमिक सेक्टरों को चिन्हित किया जाएगा। ई ऑफिस सिस्टम सिटिजन चार्टर लागू करने के साथ ही विभागों के समस्त कार्यों का डिजिटलाइजेशन किया जयेगा। ग्राउण्ड ब्रेकिंग सेरेमनी में अस्सी हजार करोड़ रुपये से अधिक के
प्रोजेक्ट के निवेश प्रस्तावों का शुभारम्भ किया गया। प्रदेश उपभोक्ता राज्य
से निर्यातक राज्य के रूप में उभर
रहा है।
प्रदेश देश दुनिया में तेजी से उभर रहे सेक्टर का भी हब बन रहा है। डेटा सेंटर आईटी और इलेक्ट्रानिक् में निवेश तेजी से बढ़ रहा है। इंफ्रास्ट्रक्चर मैन्यूफक्चरिंग हैंडलूम टेक्सटाइल अक्षय ऊर्जा मएमएसएमई में भी निवेश हो रहा है। ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह का आयोजन केवल लखनऊ के अलावा प्रदेश के सभी पचहत्तर जनपदों में भी हुआ। प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण व शहरी, मुख्यमंत्री आवास योजना प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, उज्जवल योजना, वन नेशन वन राशन कार्ड योजना, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, पोषण अभियान, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, आयुष्मान भारत योजना, स्वच्छ भारत मिशन,जल जीवन मिशन राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना प्रधानमंत्री स्टैंडअप योजना प्रधानमंत्री स्टार्टअप योजना उत्तर प्रदेश सरकार एक जनपद एक उत्पाद योजना विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना और ऐेसी ही अन्य योजनाओं का लाभ प्रत्येक व्यक्ति तक बिना किसी भेदभाव के उपलब्ध कराया जा रहा है। योगी आदित्यनाथ की बिजनेस फ्रेंडली नीतियों के परिणाम स्वरूप अब उद्यम प्रदेश बन रहा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में इस बार द्विदलीय व्यवस्था कायम हुई थी। विपक्ष के नाम पर केवल एक पार्टी ही मजबूत बन कर उभरी थी। कांग्रेस और बसपा का अस्तित्व कसम खाने लायक ही बचा था। यह लगा कि सपा मजबूत भूमिका का निर्वाह करेगी। लेकिन बजट सत्र में ही यह धारणा निर्मूल साबित हुई। चुनाव के बाद से ही इस पार्टी को आंतरिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इस बात का नकारात्मक और मनोवैज्ञानिक असर भी दिखाई देने लगा है। नेता प्रतिपक्ष को धन्यवाद प्रस्ताव और बजट पर बोलने का भरपूर अवसर मिला। उन्होंने इसका पूरा लाभ उठाया। सत्ता पक्ष ने भी उनको धैर्य के साथ सुना लेकिन विपक्ष के हमले से सत्ता पक्ष को कोई परेशानी नहीं हुई। विपक्ष के बयान खुद उसकी परेशानी बन गए। कई मुद्दों पर तो विपक्ष को हास्यास्पद स्थिति का सामना करना पड़। इसके लिए विपक्ष खुद ही जिम्मेदार था। अभिव्यक्ति का तरीका और मुद्दे दोनों का उल्टा असर हुआ। शुरुआत नेता प्रतिपक्ष द्वारा उप मुख्यमंत्री पर टिप्पणी से हुई। पहली बार हप भप जैसे शब्द सुनाई दिए। उप मुख्यमंत्री के दिवंगत पिता का भी उल्लेख किया गया। इसके बाद पर्फ्यूम गोबर संयन्त्र ऑस्ट्रेलिया राहुल गांधी के उल्लेख से भी विपक्ष की छवि पर प्रतिकूल असर हुआ। शायद विपक्ष को यह अनुमान नही रहा होगा कि उसके यही मुद्दे चर्चा के विषय बन जाएंगे। यह सही है कि विपक्षी नेतृत्व को चुनाव के बाद से ही आंतरिक दबाब का सामना करना पड़ रहा है। इसका असर भी रणनीति पर दिख रहा है। इसके लिए भी नेतृत्व खुद जिम्मेदार है। चुनाव में जिनका सहयोग लिया गया, जिनके साथ सम्मानजनक व्यवहार का वादा किया, उनकी अवहेलना शुरू हो गई है। शिवपाल यादव ने पहले ही नाराजगी व्यक्त कर दी थी। ओमप्रकाश राजभर भी नसीहत दे रहे है। ऐसा लगा कि विपक्ष ने अपनी पराजय को अभी तक सहजता से शिरोधार्य नहीं किया है। (हिफी)