तिरसठ परिवारों की अवर्णनीय खुशी

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बांग्लादेश से 1970 मंे विस्थापित हुए 63 हिन्दू परिवारों को कानपुर के रसूलाबाद मंे पुनर्वासित किया है। इनको जो खुशी मिली होगी, उसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि यह हमारे देश भारत की मानवता है कि यहां पीड़ितों को शरण दी जाती है। उनको हर प्रकार की सुविधा मिलती है। बांग्लादेश से विस्थापित हुए जिन 63 परिवारों को कानपुर के रसूलाबाद मंे बसाया गया है उनमंे प्रत्येक परिवारों को 2 एकड़ भूमि, मुख्यमंत्री आवास, जिसमंे शौचालय भी बना होगा, मिलेगा। जिन लोगों को आवास नहीं मिल पाएगा, उन्हंे आवास निर्माण के लिए प्रति परिवार एक लाख 20 हजार रुपये की राशि दी जाएगी। इन लोगों को 2 एकड़ भूमि, 200 वर्गमीटर आवासीय पट्टा, मुख्यमंत्री आवास व शौचालय आवंटित करने का निर्देश मुख्यमंत्री ने दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जिन लोगों को उस देश मंे जगह नहीं मिल पायी, जहां वे पैदा हुए भारत ने उन लोगों के लिए दोनों हाथ फैलाकर, उन्हंे जगह दी है, ये भारत की मानवता का प्रतीक है। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लक्ष्य-सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास को स्मरण करते हुए कहा कि ये विस्थापित 1970 से पुनस्र्थापित होने की राह देख रहे थे लेकिन पूर्व की सरकारों ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया। सीएम योगी ने मुसहर और वनटांगियां जैसी जनजातियों के उत्थान में किये गये प्रयासों का भी उल्लेख किया।
नागरिकता कानून पर अमल करते हुए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक नया अध्याय शुरू किया है। वर्ष 1970 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) छोड़कर मेरठ के हस्तिनापुर में बसे 63 बंगाली हिंदू परिवार भविष्य में कानपुर के बाशिंदे होंगे। इन्हें कानपुर देहात के रसूलाबाद में बसाया जाएगा। यहां के भैंसाया, ताजपुर, तरसौली और पहाड़ीपुर गांवों में पहले से ही करीब 350 बंगाली परिवार करीब 50 वर्षों से रह रहे हैं। हस्तिनापुर के बंगाली परिवारों ने सरकार से कानपुर या मेरठ में ही बसाने की अपील की थी। इसे सरकार ने स्वीकार कर लिया है। अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह की अगुवाई में शासन की एक टीम 20 नवंबर को यहां भूमि देखने आ सकती है। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव से पूर्व पुनर्वासित करने की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी।
राज्य सरकार ने गत दिनों इन बंगाली हिंदू परिवारों के पुनर्वास का प्रस्ताव कैबिनेट से मंजूर कराया था। हस्तिनापुर में रह रहे विश्वजीत दास ने बताया कि बांग्लादेश विभाजन से पहले पूर्वी पाकिस्तान में हिंदू परिवारों पर अत्याचार हो रहे थे। बहुत से बंगाली हिंदू जान बचाकर भारत आए थे। उस दौर में सभी को रुद्रपुर कैंप में रखा गया था। इसके बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में इन बंगाली हिंदू परिवारों को जमीन देकर पुनर्वासित कराया गया था। विश्वजीत ने बताया कि उनके समेत 63 परिवारों को मेरठ के हस्तिनापुर में रहने को कहा गया था। रोजी-रोटी के लिए मदन कॉटन मिल में नौकरी दिलवाई गई थी। कहा गया था कि जिन्हें जमीन नहीं दी जा सकी, उन्हें नौकरी दी जा रही है। पांच साल बाद मिल बंद हो गई और सभी परिवार बेरोजगार हो गए। वे सभी वहीं मिल के आसपास ही रहने लगे। उसके बाद से इन परिवारों के लिए किसी पुनर्वास पैकेज की घोषणा नहीं की गई। करीब 45 वर्षों से ये परिवार स्थायी ठिकाने और खुद की पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अब जाकर योगी सरकार से राहत मिली है।
प्रदेश के पुनर्वास विभाग का करीब 10 वर्ष पहले राजस्व विभाग में विलय हो गया था। विभाग से प्रस्ताव तैयार न होने की वजह से पुनर्वास पैकेज कैबिनेट से मंजूर कराया गया। इन बंगाली परिवारों को लोग बांग्लादेशी भी कहते हैं। वर्ष 2009 में मेरठ में सीरियल ब्लास्ट के बाद से इन पर पैनी नजर रखी जा रही है। उसी दौर में इस मांग ने तेजी पकड़ी थी कि इन परिवारों को कहीं विस्थापित कराया जाए, ताकि भविष्य में इन्हें घुसपैठिये की नजर से न देखा जाए। दरअसल, इन परिवारों की आड़ में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए भी सक्रिय रहते हैं। बांग्लादेश से 50 साल पहले आए निर्वासित हिंदू परिवारों को अब उत्तर प्रदेश में खेती की जमीन और मकान के लिए सौगात मिली है। लोकभवन में आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन परिवारों को पुनर्वास प्रमाण पत्र बांटे और कहा कि पहले की सरकारें इन हिंदू रिफ्यूजियों को लेकर संवेदनहीन बनी रहीं, लेकिन हमने मानवता की मिसाल पेश कर इन्हें पुनर्वसित करने का काम किया। योगी आदित्यनाथ ने इन परिवारों को पट्टे बांटते हुए यह भी कहा कि इन्हें सरकार की अन्य योजनाओं का लाभ भी दिया जाएगा।
ये उन्हीं 407 हिंदू परिवारों में से हैं, जो 1970 में बांग्लादेश से विस्थापित होकर आए थे। इनमें से 332 परिवारों को देश के विभिन्न हिस्सों में रखा गया था। हस्तिनापुर की मदन सूत मिल्स में इन्हें काम दिलवाकर इनके पुनर्वास की कोशिश की गई थी, लेकिन 1984 में मिल बंद हो गई। इसके बाद से मेरठ में 63 परिवार 38 सालों से पुनर्वास की प्रतीक्षा कर रहे थे। योगी ने कहा कि इन विस्थापित हिंदू परिवारों का दर्द पिछली सरकारों ने नहीं समझा। योगी सरकार तो पांच साल से है, लेकिन दूसरे कार्यकाल में ही इन परिवारों की सुध क्यों ली गई? जवाब में सरकार का कहना है कि प्रक्रिया 2017 में ही शुरू कर दी गई थी। उस समय हमारे सामने कई चुनौतियां थीं। मुसहर, वनटांगिया कोल, भील, थारू की स्थिति बदहाल थी। हमने मैपिंग करके ऐसे परिवारों को 1.08 लाख मुख्यमंत्री आवास दिए। वर्ष 2017 में सरकार बनने के बाद 38 वनटांगिया गांवों को विकास से जोड़ा। आजादी के बाद पहली बार उन्हें वोट देने का अधिकार मिला।’ योगी ने कहा, ‘अब इन विस्थापित हिंदू परिवारों के पुनर्वास के लिए एक कॉलोनी के रूप में विकसित करने के कार्य करेंगे। जहां इनके रहने, जीवन जीने की सर्वसुलभता हो। वहां महिलाओं के रोजगार के लिए भी अवसर बनाए जाएंगे। स्मार्ट विलेज के रूप में विकसित करने का हमारा प्रयास होगा।’
यूपी सरकार की तरफ से कैबिनेट बैठक में जो फैसला लिया गया था, उसके अनुसार 63 परिवारों को कानपुर के रसूलाबाद में बसाया जाएगा। हर परिवार को 2 एकड़ भूमि, मुख्यमंत्री आवास, शौचालय मिलेगा। दो एकड़ भूमि, 200 वर्गमीटर आवासीय पट्टा, मुख्यमंत्री आवास व शौचालय आवंटित होगा और आवास निर्माण हेतु प्रति परिवार 1.20 लाख रुपए की राशि दी जाएगी। नये साल के पहले दिन जिले के वनटांगिया समुदाय को विकास की मुख्य धारा से जोड़ योगी आदित्यनाथ ने जिले के 18 वनटांगिया गांवों को राजस्व गांव और 3779 वनटांगिया परिवारों को उनके भूमि का पट्टा देकर उनके उम्मीदों में नए पंख लगाई। (हिफी)