लेखक की कलम

राष्ट्रवाद की प्रेरणा

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

आजादी के अमृत महोत्सव में स्वतंत्रता संग्राम के अनेक उपेक्षित प्रसंग उजागर हुए हैं। इसी प्रकार वीर सावरकर को स्वतंत्रता के बाद सुनियोजित रूप में उपेक्षित रखा गया। देश के प्रति उनका समर्पण भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा देने वाला रहा है लेकिन इससे लोगों को वंचित रखा गया। उनका राष्ट्रवाद उच्च कोटि का था। उसमें भारतीय विरासत के प्रति स्वाभिमान था। भारत की श्रेष्टता गौरव का विषय रही है। उन्होंने इसे अभिव्यक्त करने में कभी संकोच नहीं किया। यह बात उस समय के अनेक नेताओं को पसन्द नहीं थी। वीर सावरकर उन लोगों मे थे जो भारत को स्वतंत्र कराने के साथ ही शक्तिशाली और स्वाभिमान राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते थे। उनको देश की दशा विचलित करती थी। भारत कभी विश्वगुरु के रूप में सम्मानित था। उनका कहना था कि व्यक्ति में एक दैवीय तत्व होता है। इसके लिए उसे धर्म के अनुरूप आचरण की स्वतंत्रता होनी चाहिए। विदेशी दासता में यह संभव नहीं है। अतः उससे मुक्ति पहली आवश्यकता है। उन्होंने द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857’ लिखी। इसमें उन्होंनें देश का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रमाणित किया। अंग्रेजों ने इसे मात्र विद्रोह बताया था। इसके बाद वामपंथी इतिहासकार भी अंग्रेजों की बात को ही आगे बढ़ाते रहे। इस प्रसंग से ही वीर सावरकर और वामपंथी रुझान वाले लोगों के बीच अन्तर को समझा जा सकता है।
सावरकर में राष्ट्रीय स्वाभिमान की भावना थी। वामपंथी रुझान के लोग स्वाभिमान विहीन थे। वीर सावरकर 1911 से 1921 तक अंडमान जेल में रहे। इसके बाद उन्हें फिर तीन वर्ष की सजा मिली। अंग्रेज उनसे घबड़ाते थे। सावरकर एक मात्र ऐसे भारतीय थे जिन्हें एक ही जीवन में दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी। काले पानी की कठोर सजा के दौरान उनको अनेक यातनाएँ दी गईं। अंडमान जेल में उन्हें छः महीने तक अंधेरी कोठरी में रखा गया। योगी आदित्यनाथ ने भारत विभाजन की त्रासदी के संदर्भ में वीर सावरकर और मुहम्मद अली जिन्ना का उल्लेख किया। वीर सावरकर अखंड भारत के प्रबल समर्थक थे। दूसरी तरफ जिन्ना विभाजन के खलनायक थे। वीर सावरकर राष्ट्र को प्रथम और सर्वोच्च समझते थे। उनकी इस नीति को अपनाया गया होता तो देश विभाजन की त्रासदी से बच जाता। देश आतंकवाद, अलगाववाद जैसी समस्याओं से सुरक्षित रहता। पाकिस्तान का निर्माण हुआ। यह भारत के लिए स्थाई समस्या है। कश्मीर का विवाद आजादी के बाद से चल रहा है। नरेंद्र मोदी ने कश्मीर में संवैधानिक सुधार किए, इससे समस्या का बड़ी सीमा तक समाधान हुआ है। मोदी के विचारों से असहमत सभी राजनीतिक पार्टियां जम्मू कश्मीर में यथास्थिति कायम रखना चाहती थी। इन्होंने जम्मू कश्मीर में संवैधानिक सुधारों के विरोध में जमीन आसमान एक कर दिया था। इनके और पाकिस्तान के बयानों में गजब की समानता दिखाई दे रहीं थीं। वीर सावरकर का कहना था कि पाकिस्तान आयेगा-जायेगा लेकिन हिन्दुस्तान हमेशा रहेगा। इसका मतलब था कि पाकिस्तान का जन्म हुआ है, जिसका जन्म होता है, उसका अंत प्रकृति का नियम है। भारत शाश्वत रचना है। यह सदन सर्वदा रहेगा। दूसरी तरफ मोहम्मद अली जिन्ना की दृष्टि अत्यन्त संकुचित, संकीर्ण एवं देश विभाजक की थी। वीर सावरकर की दृष्टि सम्पूर्ण भारत की थी। वे कभी अपने मूल्यों, आदर्शों से डिगे नहीं। उनका एकमात्र मिशन भारत की स्वाधीनता था। वीर सावरकर की दिव्य दृष्टि, कृतियां एवं वक्तव्य आज भी भारत को नई दृष्टि दे रहे हैं। जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति एवं
अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मन्दिर का निर्माण वीर सावरकर की विचार दृष्टि के अनुरूप है। आज जम्मू और कश्मीर की जनता मुख्यधारा से जुड़ रही है और विकास एवं प्रगति के पथ पर अग्रसर है। वीर सावरकर ने सनातन धर्मावलम्बियों को हिन्दू शब्द की परिभाषा से परिचित कराया। वीर सावरकर वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दुत्व शब्द दिया। वीर सावरकर की हिन्दुत्व की विचारधारा के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए एक समान दृष्टि एवं व्यवहार होना चाहिए तथा देश के संसाधनों पर सबका हक है। वीर सावरकर के विचारों, आदर्शों एवं मूल्यों की प्रासंगिकता वर्तमान में पहले से और भी ज्यादा है। देश एक भारत-श्रेष्ठ भारत की ओर अग्रसर है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत भी कहते हैं कि हिंदुत्व एक ही है।वह पहले से है और आखिर तक वही रहेगा। स्वतंत्रता के बाद से ही वीर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चली। राजनाथ सिंह के अनुसार सावरकर के विरूद्ध झूठ फैलाया गया। कहा गया कि वो अंग्रेजों के सामने बार-बार माफीनामा दिये लेकिन सच्चाई ये है कि क्षमा याचिका उन्होंने स्वयं को माफ किये जाने के लिए नहीं दी थी। महात्मा गांधी ने उनसे कहा था कि दया याचिका दायर कीजिये । महात्मा गांधी के कहने पर वो याचिका दिये थे।
महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में भी उनको गिरफ्तार किया गया लेकिन बाद में बरी भी हो गये थे। देश को स्वतंत्र कराने की उनकी इच्छाशक्ति मजबूत थी। विशेष विचारधारा से प्रभावित लोग उनके राष्ट्रवाद को समझ ही नहीं सकते। 1909 में उन्होंने ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के प्रति वफादार होने की शपथ नहीं ली थी। इस कारण उन्हें बैरिस्टर की उपाधि का पत्र कभी नहीं दिया गया। वह विश्व के ऐसे पहले लेखक थे जिनकी कृति 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को दो देशों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया। वीर सावरकर समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई 1910 को समुद्र में तैर कर फ्रांस पहुंच गए। उनका मुकदमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला। उनको बंदी बनाकर भारत लाया गया। वीर सावरकर को अंग्रेजी हुकूमत ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी। उन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकड़ और कोयले से कविता लिखी। उनकी लिखी पुस्तकों पर आजादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबंध लगा रहा। राष्ट्रध्वज के बीच में चक्र लगाने का सुझाव वीर सावरकर ने सर्वप्रथम दिया था, जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने स्वीकार किया था। (हिफी)

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