लेखक की कलम

नेजा मेला को रोकना ही उचित

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
महाराष्ट्र के नागपुर में 17 मार्च को हुई हिंसा ने एक बड़ा सबक यह भी दिया है कि अब भारत में आतताइयों का महिमा मंडन किसी भी सूरत में नहीं होगा। वहां के सपा नेता अबू आजमी ने औरंगजेब को आदर्श न बताया होता तो नागपुर से औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग इतनी तेज न होती। अब भारत की युवा पीढ़ी तो हर हालत में गुलामी का चिन्ह मिटा देना चाहती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह दिल्ली में ब्रिटिश हुकूमत के स्मारकों का नाम बदला है, उसी तरह उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार गुलामी के चिन्ह मिटा रही है। इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किया जा चुका है। अलीगढ़ का नाम हरिगढ़ रखने की बात चल रही है तो संभल में पुलिस प्रशासन ने सैयद सालार मसूद गाजी की याद में लगने वाले वार्षिक नेजा मेले को अनुमति न देकर उचित कदम उठाया है। सैयद सालार मसूद लुटेरे महमूद गजनवी का सेनापति था जिसने हमारे सोमनाथ मंदिर को लूटा था। इस मेले की एक खास बात यह भी है कि मेला लगने से एक सप्ताह पहले ही नेजा अर्थात् ढाल जमीन में गड्ढा खोदकर खड़ी की जाती है। यह ढाल महमूद गजनवी की विजय का प्रतीक मानी जाती है। गुलामी के दौरान चोर-लुटेरों तक ने हम पर कितने जुल्म ढाए, इसकी यह एक बानगी है। वे ऐसी व्यवस्था कर गये कि जिससे हम पीढ़ी दर पीढ़ी जलील होते रहें। आश्चर्य और दुख है कि आजादी के बाद हमें इन बातों का ख्याल तक नहीं आया। हालांकि इसका एक कारण यह भी था कि आदमी की सबसे पहली जरूरत है रोटी। ब्रिटिश हुकूमत ने हमें लाचार और अपंग बना दिया था। हमारे देश से लगभग मुफ्त में अथवा नाम मात्र का पैसा देकर कच्चा माल लिया जाता और उसी माल से बनी वस्तुएं महंगी दर पर हमंे बेची जाती थीं। इसलिए आजादी के बाद सबसे पहले हम मूल आवश्यकताओं को जुटाने में लगे रहे। अब हम हर स्तर पर आत्मनिर्भर हैं तो गुलामी की परम्पराएं और स्मृतियां भी मिटा रहे हैं। संभल में नेजा मेला समिति को भी इस पर राष्ट्र गौरव को
ध्यान में रखकर विचार करना चाहिए।
उत्तर प्रदेश के संभल जिले में प्रशासन और पुलिस ने महमूद गजनवी के भांजे और सैन्य कमांडर सैयद सालार मसूद गाजी की याद में वार्षिक ‘नेजा मेले’ के आयोजन को अनुमति देने से इनकार कर दिया। मेला से सप्ताह पूर्व ढाल गाड़ने वाली जगह को पुलिस और प्रशासन बंद करा रहा है। पुलिस ने मेले के आयोजन को देशद्रोह बताया। संभल एएसपी श्रीश चंद्र के मुताबिक इस कार्यक्रम को लेकर दूसरे समुदाय के लोगों द्वारा पुलिस प्रशासन के समक्ष अपत्ति दर्ज कराई गई थी। लोगों का कहना था कि सैयद सालार मसूद गाजी ने अपने देश को नुकसान पहुंचाने का कृत्य किया था। ऐसे व्यक्ति के नाम पर मेले का कार्यक्रम कर उसका गुणगान किया जाना ठीक नहीं है।
संभल पुलिस ने ‘नेजा मेला’ समिति से स्पष्ट किया कि ‘देश को लूटने वाले’ व्यक्ति की याद में आयोजित होने वाले कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी जाएगी। ‘नेजा मेला’ कमेटी के सदस्य 17 मार्च को कोतवाली में अपर पुलिस अधीक्षक (एएसपी) श्रीश चंद्र से मिले, जहां अधिकारी ने साफ शब्दों में सालार मसूद गाजी के नाम पर मेले के आयोजन को अनुमति देने से इनकार कर दिया।
ढाल गाड़ने को लेकर एक स्थान पर गड्डा बना हुआ था। पुलिस और प्रशासन ने 18 मार्च को गड्डा बंद करा कर ढाल नहीं गाड़ने देने की चेतावनी दी। एएसपी श्रीशचंद ने कहा कि देश के लुटेरे की याद में नेजा मेला नहीं लगाने दिया जाएगा। उन्होंने कमेटी के लोगों से स्पष्ट किया कि इतिहास गवाह है वह (मसूद गाजी) महमूद गजनवी का सेनापति था, जिसने सोमनाथ को लूटा और कत्लेआम किया। अधिकारी ने बताया कि किसी लुटेरे की याद में किसी भी तरह का मेले का आयोजन नहीं होगा। नगर ‘नेजा मेला’ कमेटी के अध्यक्ष शाहिद हुसैन मसूरी ने पत्रकारों से कहा कि यहां पर सैकड़ों वर्ष से मेले का आयोजन किया जाता है। लेकिन इस वर्ष पुलिस अधिकारियों ने यह कहते हुए अनुमति देने से इनकार कर दिया कि सालार मसूद गाजी आक्रांता थे और उनकी याद में मेले का आयोजन नहीं होगा।
अपर पुलिस अधीक्षक श्रीश चंद्र ने मेले की अनुमति के लिए पहुंचे लोगों से पूछा कि आप किसके नाम पर मेले का कार्यक्रम करते हैं। इसको लेकर आयोजकों ने कहा कि सैयद सालार मसूद गाजी के नाम पर नेजा मेला किया जाता है। इसके बाद अपर पुलिस अधीक्षक ने दो टूक कहा कि सैयद सालार मसूद गाजी के नाम पर मेले की अनुमति नहीं दी जाएगी। कहा जा रहा है कि उन्होंने यहां तक भी कह दिया कि सोमनाथ मंदिर लूटने वालों के नाम से मेला आयोजित करने की अनुमति नहीं दी सकती।
क्रूर आक्रांता सैयद सालार मसूद गाजी के नाम पर हर वर्ष लगने वाले नेजा मेला की ढाल संभल कोतवाली के सामने गाढ़ी जाती थी। इसके एक सप्ताह बाद अगले मंगलवार को चंदौसी रोड स्थित ग्राम शाहपुर सूरा नगला से मेले की शुरुआत होती थी।सन् 1026 में सोमनाथ की लूट, गजनवी साम्राज्य के शासक महमूद गजनी द्वारा गुजरात के चालुक्य वंश के विरुद्ध किया गया एक सैन्य अभियान था। इसे भारत पर महमूद का पंद्रहवाँ आक्रमण माना जाता है, जिसमें रणनीतिक कब्जा और निर्णायक लड़ाइयाँ देखी गईं और इसका समापन प्रतिष्ठित सोमनाथ मंदिर के विनाश में हुआ। सोमनाथ के मंदिर पर महमूद गजनवी ने करीब 17 बार आक्रमण किया था। करीब 10000 सैनिकों की अपनी पूरी फौज लेकर आता था सिर्फ मंदिर को लूटने के लिए। उस समय उसने मंदिर को लूटने के बाद पूरी तरह से तहस नहस कर दिया था। आप अंदाजा लगा सकते है कि 17 आक्रमण झेलने के बाद मंदिर में बचा ही क्या होगा। लेकिन कुछ समय पश्चात वहां के स्थानीय राजा के द्वारा पुनः मंदिर का निर्माण कराया गया था। गुजरात के सोलंकी वंश के राजा चामुंडराय अपनी राजधानी पाटन खाली छोड़कर रफू चक्कर हो गए और जनता तथा नगर भगवान भरोसे छोड़ अपनी सुरक्षा हेतु जंगलों में भटकते रहे। उनके पुत्र महमूद गजनवी खुद को राजा बनने की आशा मेबुस्की मिन्नतें करते रहे। उनके पौत्र भीमदेव प्रथम सोमनाथ की रक्षा हेतु मंदिर पहुंचे और सुरक्षा व्यवस्था अपने हाथ ले युद्ध की तैयारी की। आसपास के गुजरात के हिन्दू राजाओं के साथ सोमनाथ में मोर्चा जमाया। तीन दिन भीषण युद्ध के बाद महमूद भीमदेव को हराकर घायल करके सोमनाथ फतह करने में कामयाब हुआ। राजा जान बचाकर भाग गया खंभात।
महमूद ने पीछा किया। लूटपाट की, मन्दिर और देव मर्यादाएं भंग कीं। पुजारियों का वध किया। देवदासियों को कैद किया, साथ ले गया और घोडों-खच्चरों पर लूट का सामान लादकर लाहौर होता हुआ गजनी वापस चला गया। गजनी में मीनारें दो दिनार बनवाई और वहां पर हिन्दू गुलामों की मंडी लगवाई जहां पर भारतीय गुलामों की कीमत 2 दीनार रखी गयी। यह भी कहा जाता है कि रास्ते में उसका लूट का सामान ताहर नाम के एक डाकू ने छीन लिया। कुछ सामान पंजाब के जाटों ने झपट लिया। उसकी सेना लौटते समय कच्छ के रन से गयी क्योंकि रास्ते में मालवा के प्रतापी महाराज भोज की सेना उसका इंतजार कर रही थी और गजनी अब लड़ने लायक नहीं रह गया था। अधिकतर सेना रास्ते में मर गयी थी भयंकर गर्मी और पानी की कमी से ऊंट-घोड़े भी मरने लगे थे।
1026 में महमूद गजनी ने पंजाब के जाटों पर आक्रमण किया और फिर सोमनाथ से लौटते हुए किये गए दुर्व्यवहार का बदला लिया। भीषण युद्ध हुआ और गजनी अपनी गजब चुनौतीपूर्ण युद्ध नीति की वजह से युद्ध जीता। जाट पराजित हो गए। (हिफी)

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