लेखक की कलम

आओ नियति से वादे पर चर्चा करें

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

हमारा देश आज (15 अगस्त 2022) को 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। यह निश्चित रूप से हमारे सबके लिए गौरव और गर्व की बात है। इस बीच हमने चतुर्दिक प्रगति की है। खाद्यान्न से लेकर रक्षा प्रणाली तक हमने आत्म निर्भरता प्राप्त की और थोड़ी-बहुत जो कमी है वो शीघ्र ही पूरी हो जाएगी। भौतिक रूप से हमने विश्व के उन्नत कहे जाने वाले राष्ट्रों की पंक्ति में खड़े होने का अधिकार प्राप्त कर लिया है। हमारा लोकतंत्र भी सराहनीय है। देश में जातिगत और सम्प्रदाय गत विषमताओं के रहते भी जितना सद्भाव और समरसता हमारे देश में है उतनी दूसरे देशों में नहीं मिलती। कथित विकसित देश आज भी नस्लीम दुर्भावना से मुक्त नहीं ो पाए तो कई देश लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही की व्यवस्था में जकड़े हुए हैं। इस सबके बावजूद हमने देश की आजादी मिलने पर नियति से एक वादा किया था। यह वादा प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हम सभी की तरफ से किया था उसे पूरा करने में हम पूरी तरह सफल नहीं हो पाए हैं पंडित नेहरू ने हम सभी को मानवता की सेवा करने की प्रतिज्ञा दिलायी थी। नेहरू जी ने कहा था कि कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।
आज इस महान जश्न के बीच इस पर भी विचार करना जरूरी है। अभी कुछ दिन पहले ही नोएडा में एक युवक ने महिला के साथ अक्षम्य अभद्रता की। उसे गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन यह सोच संकीर्ण क्यों है? इसी प्रकार कोलकाता में एक वरिष्ठ राजनेता की महिला सहयोगी के ठिकानों से करोड़ों की नकदी बरामद हुई। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने शिक्षक भर्ती घोटाले के संदर्भ में छापेमारी की थी। शिक्षकों पर ही बच्चों और युवाआंे का भविष्य बनाने का दायित्व हैै। उनकी भर्ती में ही यदि रिश्वतखोरी हो रही है तो उनसे अच्छे कर्तव्य की अपेक्षा कैसे की जा सकती हे। इसमें अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध पायी गयी है। पूरी जांच-पड़ताल सामने नहीं आयी लेकिन गुनाह का पचास करोड़ पहाड़ तो दिखाई ही पड़ गया। इसी संदर्भ में राजनेता को मंत्री पद छोड़ना पड़ा और हिरासत में जेल भी भेजा गया। इस तरह हमारे देश के संविधान ने लोकतंत्र के जिन तीन स्तम्भों को खड़ा किया था उनमें दो दागदार साबित हो रहे हैं कार्यपालिका और विधायिका की सोच अब ज्यादा संकीर्ण हो गयी है। घोटालों को लेकर ही कहा जा रहा कि सिर्फ विपक्षी दल के नेताओं पर ही ईडी और सीबीआई छापे क्यों डाल रही है? तर्क अपनी जगह है कि कानून को अपना काम करने देना चाहिए लेकिन सरकार की सोच और कार्य भी क्या संकीर्णता से बाहर नहीं निकल पाए? न्याय व्यवस्था को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। न्यायाधीश ही एक-दूसरे पर उंगली उठा रहे हैं। हर आंख से आंसू मिटाने का सपना हमने देखा था उसे भी पूरा नहीं किया जा सका है।
विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के साथ हम लोग भी संकीर्ण सोच से मुक्त नहीं हो पाए। टोकाटाकी से समस्या का हल नहीं निकलने वाला। हम अपने घर के सामने सड़क की सफाई स्वयं नहीं कर सकते तो सफाई करने वाले से करवा तो सकते हैं। स्ट्रीट लाइट नहीं जल रही तो उसकी शिकायत करवा सकते हैं। रास्ते में अगर किसी को चोट लग गयी है तो उसको इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाने में मदद कर सकते हैं। इस प्रकार के कई ऐसे छोटे-मोटे कार्य भी हैं जो हम संकीर्ण सोच के चलते नहीं करते। इस बार स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। हर घर पर तिरंगा फहराना हमारे उत्साह का साक्षी बनेगा लेकिन इसे भी राजनीतिक रंग में रंगने का प्रयास किया जा रहा है। देश को आजादी बहुत संघर्षों के बाद मिली है। इस आजादी का जश्न मनाएं और आजादी के समय लिये गये संकल्पों को भी पूरा करें।
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस दिन ट्रिस्ट विद डेस्टिनी (नियति से वादा) नामक अपना प्रसिद्ध भाषण दिया था।
नेहरू जी ने कहा था- कई सालों पहले, हमने नियति से एक वादा किया था, और अब समय आ गया है कि हम अपना वादा निभायें, पूरी तरह न सही पर बहुत हद तक तो निभायें। आधी रात के समय, जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जाग जाएगा। ऐसा क्षण आता है, मगर इतिहास में विरले ही आता है, जब हम पुराने से बाहर निकल नए युग में कदम रखते हैं, जब एक युग समाप्त हो जाता है, जब एक देश की लम्बे समय से दबी हुई आत्मा मुक्त होती है। यह संयोग ही है कि इस पवित्र अवसर पर हम भारत और उसके लोगों की सेवा करने के लिए तथा सबसे बढ़कर मानवता की सेवा करने के लिए समर्पित होने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं।
पंडित नेहरू ने कहा था- आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे हैं और भारत पुनः स्वयं को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो केवल एक कदम है, नए अवसरों के खुलने का। इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना। इसका अर्थ है निर्धनता, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति (महात्मा गांधी) की यही इच्छा है कि हर आँख से आंसू मिटे। संभवतः ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों की आंखों में आंसू हैं, तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा। आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र है। भविष्य हमें बुला रहा है। हमें कहाँ जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और श्रमिकों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें, हम निर्धनता मिटा, एक समृद्ध, लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें। हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके? कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।
भारत की संविधान सभा ने नई दिल्ली में संविधान हॉल में 14 अगस्त को 11 बजे अपने पांचवें सत्र की बैठक की थी। सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने की। इस सत्र में जवाहर लाल नेहरू ने भारत की आजादी की घोषणा करते हुए ट्रिस्ट विद डेस्टिनी नामक भाषण दिया था।
सभा के सदस्यों ने औपचारिक रूप से देश की सेवा करने की शपथ ली थी। महिलाओं के एक समूह ने भारत की महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया व औपचारिक रूप से विधानसभा को राष्ट्रीय ध्वज भेंट किया। आधिकारिक समारोह नई दिल्ली में हुए जिसके बाद भारत एक स्वतंत्र देश बन गया। नेहरू ने प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में पद ग्रहण किया, और वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पहले गवर्नर जनरल के रूप में अपना पदभार संभाला। महात्मा गांधी के नाम के साथ लोगों ने इस अवसर को मनाया। गांधी ने हालांकि खुद आधिकारिक घटनाओं में कोई हिस्सा नहीं लिया। इसके बजाय, उन्होंने हिंदू और मुसलमानों के बीच शांति को प्रोत्साहित करने के लिए कलकत्ता में एक भीड़ से बात की, उस दौरान ये 24 घंटे उपवास पर रहे।
15 अगस्त 1947 को सुबह 11 बजे संघटक सभा ने भारत की स्वतंत्रता का समारोह आरंभ किया, जिसमें अधिकारों का हस्तांतरण किया गया। जैसे ही मध्यरात्रि की घड़ी आई भारत ने अपनी स्वतंत्रता हासिल की और एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। 1929 लाहौर सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज घोषणा की और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में घोषित किया। (हिफी)

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