माणिक साहा की कुर्सी हुई मजबूत

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
बीते 26 जून को आये उपचुनाव के नतीजे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए कई मायनों मंे विशिष्टता लिये हुए हैं। उत्तर प्रदेश मंे जहां समाजवादी पार्टी और बसपा की दोनों मजबूत सीटों पर भाजपा ने लोकसभा उपचुनाव जीता है, वहीं त्रिपुरा मंे पूर्व सीएम बिप्लब देब और माणिक साहा के बीच चल रहा शीतयुद्ध थम सकता है। त्रिपुरा में मुख्यमंत्री माणिक साहा ने टाउन बोरदोवाली विधानसभा सीट से उपचुनाव जीता है। इसके साथ ही उनकी कुर्सी पक्की हो गयी है। इस साल मई में राज्य मंे माणिक साहा को मुख्यमंत्री जरूर बना दिया गया था लेकिन पूर्व सीएम बिप्लब देब समानांतर सरकार चला रहे थे। भाजपा के अंदर चल रही इस गुटबाजी के चलते टाउन बोरदोवाली सीट का उपचुनाव कांटे का माना जा रहा था। कांग्रेस ने आशीष कुमार साहा को मैदान मंे उतार कर
वोटों के विभाजन की रणनीति अपनायी थी लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी को 6 हजार मतों से पराजय का सामना करना
पड़ा है। माणिक साहा की जीत से बिप्लब देब की गतिविधियां भी कमजोर पड़ जाएंगी।
त्रिपुरा मंे भाजपा के लिए मुख्यमंत्री माणिक साहा जीत हासिल करने में कामयाब रहे हैं। इसके साथ ही उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी सुरक्षित हो गई है। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री और भाजपा उम्मीदवार माणिक साहा ने टाउन बोरदोवाली विधानसभा सीट पर 6104 वोटों से जीत हासिल की है। यहां पर उनके करीबी उम्मीदवार कांग्रेस के आशीष कुमार साहा थे। त्रिपुरा में विधानसभा उपचुनाव नतीजों के बीच अगरतला में बीजेपी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच झड़प भी देखने को मिली थी। त्रिपुरा में विधानसभा उपचुनाव के नतीजों में बीजेपी ने तीन और कांग्रेस ने एक सीट पर जीत हासिल की है। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे बिप्लब कुमार देब पर बीजेपी के पूर्व विधायक और कांग्रेस नेता सुदीप रॉय बर्मन ने आरोप लगाया है कि बिप्लब मौजूदा मुख्यमंत्री माणिक साहा के साथ समानांतर प्रशासन चला रहे हैं। बीजेपी पर आंतरिक मतभेद का आरोप लगाते हुए बर्मन ने कहा कि ऐसा लगता है कि बिप्लब देब सीएम पद पर माणिक साहा को पसंद नहीं कर रहे हैं और समानांतर प्रशासन चला रहे हैं। बर्मन 2018 में बिप्लब देब के मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री थे लेकिन बिप्लब से कथित मतभेदों के कारण 2019 में उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था। बर्मन फरवरी 2022 में कांग्रेस में शामिल हुए। बर्मन ने 2016 में तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के लिए कांग्रेस छोड़ दी थी। वह तृणमूल छोड़ने के बाद 2017 में भाजपा में शामिल हुए थे। बर्मन ने मीडिया से बातचीत में कहा है कि बिप्लब देब कैसे अभी भी भारी सुरक्षा के बीच सीएम हाउस में रह रहे हैं और हेलिकॉप्टरों का उपयोग कर रहे हैं। मैं मुख्य सचिव और डीजीपी से मांग करता हूं कि नए सीएम के पदभार ग्रहण करने और अतिरिक्त सुरक्षा वापस लेने के बाद से उन पर खर्च किए गए खर्च का अनुमान लगाकर वसूली की जाए। त्रिपुरा के लोग उन्हें उनके सीएम कार्यकाल के दौरान उनके गलत कामों का जवाब मिले बिना राज्य छोड़ने की इजाजत नहीं देंगे। भाजपा प्रवक्ता सुब्रत चक्रवर्ती ने कहा है कि बिप्लब देब को 2016 में भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद उन पर धमकी के कारण गृह मंत्रालय द्वारा वाई़ सुरक्षा प्रदान की गई थी और यह गृह मंत्रालय तय करेगा कि सुरक्षा कवर को संशोधित किया जाए या वापस लिया जाए। कांग्रेस पर निशाना साधते हुए सुब्रत ने कहा कि कांग्रेस के लोग राजनीतिक रूप से दिवालिया हो गए हैं क्योंकि उनके पास लोगों तक पहुंचने के लिए कोई मुद्दा नहीं है।
बहरहाल, त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बदलने के एक सप्ताह बाद ही ऐसे बयान सामने आने लगे थे जिससे कयास लगाए गये कि राज्य में भाजपा के अंदर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। बिप्लव देव की जगह माणिक साहा को जब त्रिपुरा का मुख्यमंत्री बनाया गया तब राज्य के कानून और शिक्षा मंत्री रतन लाल नाथ ने पूर्व मुख्यमंत्री की तुलना नोबेल विजेता रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद और अल्बर्ट आइंस्टीन से कर दी। कमालपुर में एक कार्यक्रम में संबोधन के दौरान नाथ ने कहा, 50 साल के मेरे राजनीतिक जीवन में मैं 29 साल विधायक रहा, मैंने सचिंद्र लाल सिंह से लेकर बहुत सारे मुख्यमंत्रियों को देखा। बिप्लव देव ऐसे नेता हैं जिन्हें जन नेता कहा जा सकता है। वह अपने आप में अपवाद हैं। उन्होंने राज्य को एक नई दिशा दी, नए सपने दिए। नाथ ने आगे कहा, कुछ लोगों के जन्म लेने का उद्देश्य होता है। जैसे कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रवींद्र नाथ टैगोर, महात्मा गांधी, विवेकानंद या फिर आइंस्टीन। ऐसे बहुत कम लोग जन्म लेते हैं। इसी तरह हमारे त्रिपुरा में बिप्लव देव का भी जन्म हुआ। नाथ के बयान से ऐसा भी लगता था कि अचानक देव को पद से हटाने से पार्टी के बहुत सारे नेता और कार्यकर्ता असहमत थे। इस मामले में जब मुख्यमंत्री माणिक साहा से बात की गई तो उन्होंने कहा, बिप्लव देव के योगदान की तुलना नहीं की जा सकती। हम इस बात को मानते हैं। अब भी वह कार्य कर रहे हैं। नाथ ने जो बात कही है वह तो उनसे ही पूछी जानी चाहिए। त्रिपुरा में भाजपा के कई नेताओं का कहना है कि बिप्लव देव को अचानक हटाना सही नहीं था। राज्य में भाजपा की सत्ता लाने में उनका बड़ा योगदान रहा है।
भाजपा नेतृत्व का कहना है कि बिप्लव देव को इसलिए पदमुक्त किया गया है ताकि वह संगठन का काम देख सकें और 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारी कर सकें। सूत्रों के मुताबिक राज्य दबाव के चलते आनन-फानन में बदलाव किया गया है। एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी बिप्लब देब को कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है। राज्य में 11 मंत्रियों ने शपथ ली जिसमें भी वह शामिल नहीं थे। नाथ के कमेंट को विपक्षी दलों ने भी हाथों हाथ लिया और टिप्पणियां शुरू कर दीं। कांग्रेस नेता सुदीप रॉय बर्मन ने नाथ के इस बयान को पागलपन बताया है। उन्होंने कहा कि इससे ज्यादा पागलपन और क्या हो सकता है। जिस व्यक्ति ने भी यह बात कही है उसका इलाज किसी अच्छे डॉक्टर से कराना चाहिए।
बिप्लब कुमार देब को त्रिपुरा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिए एक महीना हो गया और उनकी जगह भारतीय जनता पार्टी के राज्य प्रमुख और राज्यसभा सांसद माणिक साहा को सीएम बनाया गया लेकिन तब तक यह स्पष्ट नहीं था कि देब क्या भूमिका निभाएंगे। वह 23 जून को राज्य की चार विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के प्रचार से भी गायब थे। चार निर्वाचन क्षेत्रों- अगरतला, टाउन बोरदोवाली, सूरमा और युवराजनगर में होने वाले उपचुनावों को राज्य में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा था। देब ने 2018 में त्रिपुरा में अपनी पहली विधानसभा चुनाव जीत के लिए भाजपा का नेतृत्व किया था और उन्हें मुख्यमंत्री का पद सौंपा गया था। चार साल के कार्यकाल के बाद उन्होंने यह कहते हुए पद से इस्तीफा दे दिया कि उन्हें पार्टी संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई है। उप-चुनावों के स्टार प्रचारक होने के बावजूद, देब केवल नामांकन दाखिल करते समय मुख्यमंत्री माणिक साहा के साथ रहे हैं और त्रिपुरासुंदरी मंदिर की यात्रा के दौरान उदयपुर में अपने ही बनमालीपुर निर्वाचन क्षेत्र के लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत करते देखे गए। बाद मंे पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा तलब किए जाने के बाद देब राज्य से दिल्ली के लिए रवाना हुए। इस दौरे को उपचुनाव से पहले अहम माना जा रहा था। चुनाव विशेषज्ञों का अनुमान था कि इस बार उपचुनाव में कड़ा मुकाबला होगा और सत्ताधारी पार्टी चार सीटों पर जीत हासिल करने की पूरी कोशिश कर रही है, खासकर टाउन बोरदोवाली जहां से सीएम साहा पहली बार सीधे मुकाबले में थे। सीएम माणिक साहा ने ऐसे माहौल मंे भी जीत हासिल की है। (हिफी)