आसियान विदेश मंत्रियों से सार्थक चर्चा

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
कोरोना संकट के बाद यूक्रेन मंे चल रहे युद्ध ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाला है। हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 16 जून को नई दिल्ली में एसोसिएशन आफ साउथ ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के विदेश मंत्री सम्मेलन मंे इन दोनों मामलों को लेकर सार्थक चर्चा की। यह संगठन दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का समूह है जो आपस में आर्थिक विकास और समृद्धि को बढ़ावा देने के साथ ही शांति और स्थिरता कायम करने के लिए भी कार्य करता है। इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपीन्स, सिंगापुर और थाईलैण्ड ने 1967 में जब संगठन बनाया था, उसके बाद इसकी प्रासंगिकता कहीं ज्यादा बढ़ गयी है। पिछले दो सालों मंे कोरोना की महामारी और यूक्रेन व रूस के बीच सौ दिनों से ज्यादा चले युद्ध ने खाद्यान्न और ईंधन का संकट खड़ा कर दिया है। इसके साथ ही चीन की विस्तारवादी और अमानवीय गतिविधियों ने भी आसियान देशों को सोचने पर विवश किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ मंे 47 देशों ने चीन की निंदा करते हुए चिंता व्यक्त की है। भारत और आसियान के बीच व्यापार एवं वित्तीय संबंधों में लगातार सुधार हो रहा है। विदेश मंत्री जयशंकर ने इन मुद्दों पर चर्चा करते हुए आसियान देशों के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को महत्वपूर्ण बताया। इससे पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी भारत के लिए आसियान के महत्व पर विस्तार से बात कर चुके हैं।
भारत ने आसियान देशों के साथ अपनी रणनीतिक साझीदारी को विकेंद्रित वैश्वीकरण तथा टिकाऊ एवं भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखला सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण बताया और इसके लिए मौजूदा परिस्थितियों के मुताबिक नयी प्राथमिकताएं तय करने एवं उनके शीघ्र क्रियान्वयन पर बल दिया। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आसियान भारत विदेश मंत्रियों की विशेष बैठक की सह अध्यक्षता करते हुए अपने आरंभिक उद्बोधन में कहा कि हालांकि कोविड महामारी अभी पूरी तरह से गई नहीं है लेकिन कोविड पश्चात रिकवरी के प्रयासों के तहत अनेक मसलों पर चर्चा की जरूरत है। डॉ. जयशंकर ने कहा कि यह मार्ग यूक्रेन के घटनाक्रम के बाद उत्पन्न भू राजनीतिक परिस्थितियों के कारण और कठिन हो गया है। खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा के साथ साथ उर्वरक एवं आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर इसका असर पड़ रहा है और लाॅजिस्टिक्स एवं आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो रही है। उन्होंने कहा कि आसियान क्षेत्रवाद, बहुपक्षवाद और वैश्वीकरण के पक्ष में हमेशा ध्वजवाहक बना रहा है। आसियान ने हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सामरिक आर्थिक ढांचे की मजबूत बुनियाद रखने में कामयाबी हासिल की है। मौजूदा भू राजनीतिक चुनौतियों एवं वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच आसियान की भूमिका आज पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। भारत एक मजबूत, एकजुट एवं समृद्ध आसियान और हिन्द प्रशांत क्षेत्र में उसकी केंद्रीय भूमिका का पूरा समर्थन करता है।
डाॅ. जयशंकर ने कहा,“ वर्तमान वैश्विक अनिश्चितता के बीच आज हम अपनी 30 वर्ष की यात्रा की समीक्षा कर रहे हैं और आने वाले दशकों के लिए पथ रेखांकित कर रहे हैं। ऐसे में यह भी महत्वपूर्ण है कि हम मौजूदा पहलों को जल्दी पूरा करें और नयी प्राथमिकताएं तय करें।” उन्होंने उम्मीद जताई कि भारत आसियान अपने संबंधों के चैथे दशक में परस्पर बेहतर कनेक्टिविटी के साथ विकेंद्रीकृत वैश्वीकरण तथा टिकाऊ एवं भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखला को सुनिश्चित करने के लिए तैयार हैं।
इससे पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के संगठन आसियान के नेताओं के साथ बृहस्पतिवार को तमाम मुद्दों पर चर्चा की थी पीएम मोदी की इस पहल ने एक बार फिर भारत के लिए आसियान के महत्व को उजागर कर दिया था। पीएम मोदी ने दक्षिणी चीन सागर, आतंकवाद, अफगानिस्तान, कोविड-19 महामारी सहित तमाम मुद्दों पर आसियान नेताओं के साथ चर्चा की। मोदी ने कहा था इस संगठन का मकसद एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच सामाजिक और राजनीतिक स्थिरिता को बढ़ाना और विकास करना है। इस संगठन का नजरिया- एक दृष्टि, एक पहचान, एक समुदाय है। आठ अगस्त को इसका स्थापना दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्यालय इंडोनेशिया के जकार्ता शहर में है। आसियान में इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, ब्रूनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया सदस्य हैं। भारत की विदेश नीति में आसियान का विशेष महत्व है। आसियान को ध्यान में रखते हुए ही भारत ने अपनी लुक ईस्ट नीति बनाई है। आसियान के लिए भारत का एक अलग मिशन है। भारत और आसियान के बीच 25 सालों से बातचीत चल रही है। इसके अलावा भारत और आसियान देशों के बीच 15 साल से समिट स्तर की बातचीत होती है। पांच साल से रणनीतिक साझेदारी भी चल रही है। इसके अलावा आसियान के साथ अन्य स्तरों पर भी लगातार संपर्क बना हुआ है। आसियान भारत का चैथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत के कुल व्यापार में आसियान की भागीदारी करीब 10.6 फीसदी है। भारत के कुल निर्यात में आसियान देशों को होने वाले निर्यात का हिस्सा 11.28 फीसदी है। इसके अलावा भारत और आसियान के बीच कई अन्य क्षेत्रों में सहयोग चल रहा है। पीएम मोदी ने आसियान की एकता को भारत की प्राथमिकता बताया, क्षेत्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी चर्चा की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आसियान के नेताओं के साथ दक्षिण चीन सागर, आतंकवाद, अफगानिस्तान, कोविड-19 महामारी, सम्पर्क सहित साझा हितों से जुड़े क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की तथा दक्षिण चीन सागर में शांति, स्थिरता, सुरक्षा बनाये रखने एवं इसे प्रोत्साहित करने के महत्व को रेखांकित किया। शिखर बैठक में डिजिटल माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि भारत की हिंद-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई) और हिंद प्रशांत के लिए आसियान का दृष्टिकोण (एओआईपी) इस क्षेत्र में उनके साझे नजरिए एवं आपसी सहयोग की रूपरेखा हैं। चीन इसका विरोध करता है।
पीएम ने कहा कि आसियान की एकता और केंद्रीयता भारत के लिए सदैव एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता रही है। आसियान की यह विशेष भूमिका, भारत की एक्ट ईस्ट नीति का हिस्सा है जो ‘सागर’ (क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और विकास) नीति में निहित है।’’ विदेश मंत्रालय में सचिव (पूर्व) रीवा गांगुली दास ने संवाददाताओं से कहा था कि प्रधानमंत्री और आसियान देशों के नेताओं ने क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिये सहयोग पर भारत-आसियान संयुक्त बयान अंगीकार करने का स्वागत किया। दास ने बताया कि प्रधानमंत्री और आसियान देशों के नेताओं ने दक्षिण चीन सागर, आतंकवाद, अफगानिस्तान, कोविड-19 महामारी, सम्पर्क सहित साझा हितों से जुड़े क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर ‘सार्थक’ चर्चा की।
ध्यान रहे चीन के पश्चिमी शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार के मामले पर 47 देशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर चिंता जताई है। इन देशों की मांग है कि संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बैचेलेट वहां की स्थिति पर लंबे समय से विलंबित रिपोर्ट प्रकाशित करें। मिशेल ने पिछले महीने शिनजियांग की यात्रा की थी, लेकिन उसकी रिपोर्ट तैयार होने के बावजूद अभी तक प्रकाशित नहीं की गई है। इसलिए आसियान देशों की एकजुटता जरूरी हैं। (हिफी)