लेखक की कलम

विश्व गुरु की भूमिका में मोदी

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
वेश-भूषा से लेकर विचार-भूषा तक भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गत 9 जनवरी को विश्व गुरु नजर आ रहे थे। देश के पूर्वोत्तर राज्य ओडिशा में प्रवासी भारतीय दिवस के अवसर पर मोदी ने जिस तरह दुनिया में शांति कायम करने का अप्रत्यक्ष रूप से संदेश दिया उसका असर रूस और इजरायल तक निश्चित रूप से पहुंचेगा। रूस और इजरायल दोनों ही हमारे घनिष्ठ मित्र देश हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कई अवसरों पर इसका जिक्र भी किया है लेकिन एक विश्व गुरू की भूमिका मंे जब पीएम मोदी बोलते हैं तब मित्र और शत्रु का भेद नहीं रहता। उस समय दुनिया के कल्याण की भावना रहती है। उस समय सर्वे भवन्तु सुखिनाः, सर्वे संतु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चित् दुःख भाग्मवेत। यह सम्पूर्ण विश्व के कल्याण का मंत्र है इसका अर्थ है कि सभी सुखी होवें। सभी रोग मुक्त रहें। सभी का जीवन मंगल मय बने और कोई भी दुख का भागी न बने। हे भगवान हमें ऐसा वर दो। पीएम मोदी का इशारा यूक्रेन और गाजा पट्टी में सर्दी में ठिठुरते लोगों की तरफ है। अभी कल ही एक तस्वीर देखी थी जिसमें गाजा पट्टी में एक परिवार गड्ढे में विस्तर लगाकर बैठा है। सभी लोग सुख से रहें इसके लिए हमें युद्ध नहीं महात्मा बुद्ध का संदेश ग्रहण करना होगा। हमारे राष्ट्र पिता महात्मा गांधी सन् 1915 में 9 जनवरी को ही दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह और अहिंसा से ब्रिटिश हुकूमत को परास्त कर भारत लौटे थे। इसी संदर्भ में भारतीय प्रवासी दिवस मनाया जाता है। प्रवासियों की जब बात आती है तब गिरमिटिया भाई-बहनों की याद भी आती है जो अपने साथ कपड़े-लत्ते के साथ रामचरित मानस की प्रति भी ले गये और जहां गये वहां भाईचारे और सद्भाव की दुनिया बसायी थी। मोदी चाहते हैं कि उस इतिहास को सारी दुनिया को दिखाने के लिए फिल्म बनायी जाए। ऐसी सोच विश्व गुरू की ही हो सकती है।
पीएम मोदी ओडिशा में थे। यहां उन्होंने प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन को संबोधित किया। इस मंच का इस्तेमाल पीएम मोदी ने दुनिया में शांति कायम करने के लिए भी किया। उन्होंने इजरायल और रूस का सीधे तौर पर नाम तो नहीं लिया। मगर युद्ध और बुद्ध की बात कहकर एक क्लियर मैसेज जरूर भेज दिया। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा, ‘ओडिशा भारत की समृद्ध विरासत का प्रतीक है। कदम-कदम पर विरासत के दर्शन ओडिशा में होते हैं। ओडिशा में सम्राट अशोक ने तब शांति का रास्ता चुना था, जब तलवार के बल से साम्राज्य बढ़ाने का दौर था। इसीलिए भारत दुनिया को कह पाता है कि भविष्य युद्ध में नहीं बल्कि बुद्ध में है। पीएम मोदी की यह टिप्पणी कि ‘भविष्य युद्ध में नहीं बल्कि बुद्ध में है’ आज के वैश्विक परिप्रेक्ष्य में काफी अहम है। अभी रूस-यूक्रेन में दो साल से अधिक समय से जंग चल रही है। दोनों देशों में विनाशलीला पूरी दुनिया देख चुकी है। फिर भी युद्ध कब खत्म होगा, यह किसी को नहीं पता। ग्लोबल लेवल पर शांति स्थापित करने की बीच-बीच में कवायद होती रही है। बावजूद इसके सफलता नहीं मिली है। भारत ने भी अपनी ओर से पूरी कोशिश की है। पीएम मोदी ने तो इसके लिए पुतिन और जेलेंस्की से मुलाकात भी की। दोनों को समझाया और युद्ध के परिणाम को लेकर आगाह भी किया। मगर अब तक दोनों नहीं मान पाए हैं। उधर इजरायल भी एक साथ कई मोर्चों पर युद्ध लड़ रहा है। उसकी हिजबुल्लाह और हमास से लेबनान, फिलिस्तीन से लेकर ईरान तक जंग जारी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रवासी भारतीय दिवस के मौके पर पूरे विश्व से आए भारतवंशी परिवार का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि कुछ दिन में महाकुंभ प्रयागराज में शुरू हो रहा है। कई त्यौहार आ रहे हैं। त्योहार का माहौल हर तरफ है। आज ही के दिन महात्मा गांधी 1915 में भारत आए थे। उन्होंने कहा कि प्रवासी भारतीय समुदाय ही दुनिया में भारत के राष्ट्रदूत हैं। भारतीय जहां भी जाते हैं, उस देश की सेवा और वहां के नियमों का सम्मान करते हैं। इन सबके साथ हमारे दिल में भारत धड़कता रहता है। मोदी ने कहा 21वीं सदी का भारत जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है, वो अभूतपूर्व है। दस साल में भारत ने पच्चीस करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। दसवीं बड़ी अर्थव्यवस्था से भारत पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। भारत तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा वो दिन दूर नहीं। उन्होंने कहा, भारत की बात को दुनिया ध्यान से सुनती है। भारत ग्लोबल साउथ की आवाज को ही ताकत से उठाता है। भारत अपने ग्लोबल रोल का विस्तार कर रहा है। दुनिया में गिरमिटिया भाई-बहनों पर एक डेटा बेस तैयार करना चाहिए। कैसे गिरमिटिया बाहर गए और अपनी पहचान बनाई। इनकी लेगसी पर रिसर्च, फिल्म बनाई जा सकती है। मैं अपनी टीम से इसकी संभावना तलाशने के लिए कहूंगा।
दरअसल, प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन पहली बार किसी पूर्वी राज्य में हुआ है। इसका एक सबसे महत्वपूर्ण मकसद केंद्र और मोदी सरकार की पूर्वोदय प्रॉजेक्ट के प्रति प्रतिबद्धता को जमीन पर लाना है। पूर्वोदय प्रॉजेक्ट से मतलब भारत के पूर्वी क्षेत्र के सम्पूर्ण विकास से है। इसके तहत ओडिशा, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश शामिल हैं। सम्मेलन के आयोजन से ओडिशा के सांस्कृतिक विरासत को दुनिया में फैले प्रवासी भारतीयों के सामने रखने का मौका मिला है। हालांकि, पूर्वोदय का प्लान ही इसके मुख्य केंद्र में है। भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के दस साल हो चुके हैं। ओडिशा का दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से ऐतिहासिक समुद्री जुड़ाव रहा है। यह इस जुड़ाव को और मजबूत करेगा। ओडिशा में पहुंचे करीब 5000 प्रवासी भारतीय पीएम मोदी की भूमिका को विदेशों में अब साफ-साफ महसूस करते हैं। कतर से आई एक प्रवासी भारतीय महिला ने कहा, ‘मोदीजी ने गर्व महसूस कराया है। जैसे पहले लोग अमेरिका जाने के लिए तरसते थे। अब भारत आने के लिए तरसते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के आने से हमें ज्यादा सम्मान मिलता है।
गुयाना में पीएम मोदी के तौर पर कोई प्रधानमंत्री 56 साल बाद उनकी धरती पर पहुंचा था। गुयाना पहुंचते ही राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली ने गले लगाकर प्रधानमंत्री का स्वागत किया। इस दौरान पीएम मोदी भारतीय समुदाय के लोगों से भी मिले, जिनमें गिरमिटिया मजदूर भी शामिल थे। गिरमिटिया मजदूर मूलरूप से भारत के ही मूल निवासी हैं, जो अंग्रेजों के राज के समय में गुयाना, ट्रिनिडाड टोबैको, मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम जैसे तमाम देशों में एक अनुबंध के तहत गए। बाद में वह कभी भारत नहीं लौट सके। मगर जिन देशों में मजदूर बनकर गए वहीं अब अपनी मेहनत के दम पर राज करने लगे। गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली के पूर्वज भी भारतीय मूल के गिरमिटिया मजदूर ही थे। भारत में अंग्रेजों के शासन के दौरान उक्त देशों में गुलामी की प्रथा खत्म होने पर मजदूर भी नहीं रहे। ऐसे में काम करवाने के लिए मजदूरों की जरूरत थी। तब भारत से 5 साल के अनुबंध पर इन मजदूरों को 1834 के दशक के दौरान अमेरिकी, अफ्रीकी और यूरोपीय देशों में भेजा गया। वह 5 साल बाद आ तो सकते थे। मगर आने के पैसे नहीं होने से वहीं हमेशा के लिए बसना उनकी मजबूरी हो गई। इस प्रकार गिरमिटियों का इतिहास भारतीय उपमहाद्वीप के लिए एक महत्वपूर्ण अध्याय है। मोदी इन्हें शांति दूत के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। (हिफी)

 

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