औपनिवेशिक मानसिकता पर मुर्मू का प्रहार

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
इस बार 76वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्र के नाम संदेश में औपनिवेशिक मानसिकता पर विशेष रूप से प्रहार किया है। इसके साथ ही उन्हांेने कई महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठाया जैसे एक राष्ट्र, एक चुनाव, महिलाओं की समानता का अधिकार और आर्थिक विकास की तरफ भी जनता का ध्यान आकर्षित किया। राष्ट्रपति द्रोपदी मूर्मू ने देश की प्रगति की सराहना करते हुए औपनिवेशिक मानसिकता के अवशेषों को खत्म करने की आवश्यकता बतायी। उन्हांेने इस दिशा मंे सरकार के प्रयासों की चर्चा करते हुए ब्रिटिश कालीन अपराध कानून को बदलने को अच्छा प्रयास बताया। राष्ट्रपति ने भारत के संविधान को देश का जीवंत दस्तावेज बताया। उन्होंने कहा कि यही संविधान 75 वर्षों से देश का मार्गदर्शन करता रहा है। राष्ट्रपति ने देश के नाम संदेश में कहा कि हमारी युवा पीढ़ी कल के भारत का निर्माण करेगी। उन्हांेने कहा कि हम सभी का यह कर्तव्य है कि संविधान की भावना को समझें। संविधान में अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस प्रकार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हमें अधिकार के साथ कर्त्तव्य की भी याद दिलाई है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश के 76वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित किया। अपने पारंपरिक भाषण में राष्ट्रपति मुर्मू ने एक राष्ट्र एक चुनाव, महिलाओं को समानता का अधिकार, आर्थिक विकास सहित कई मुद्दों पर अपनी बात रखी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने एक राष्ट्र एक चुनाव को देश के हित में एक दूरदर्शी उपाय बताया। उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव विधेयक नीतिगत पक्षाघात को रोकने, संसाधन विभाजन को कम करने और वित्तीय बोझ को कम करने में मदद करेगा। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव योजना शासन में स्थिरता को बढ़ावा दे सकती है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यह भी कहा कि देश में दशकों से मौजूद औपनिवेशिक मानसिकता के अवशेषों को खत्म करने के लिए सरकार के प्रयास सही दिशा में हो रहे हैं। ब्रिटिश काल के आपराधिक कानूनों को तीन नए आधुनिक कानूनों से बदलना एक बेहतर फैसला था। उन्होंने कहा हम उस मानसिकता को बदलने के लिए ठोस प्रयास देख रहे हैं… इस तरह के बड़े सुधारों के लिए दूरदर्शिता की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में केवल दंड देने के बजाय न्याय प्रदान करने को प्राथमिकता है। इन तीनों कानूनों में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों से बेहतर ढंग से निपटने की क्षमता है। राष्ट्रपति ने हाल के वर्षों में लगातार उच्च आर्थिक विकास दर की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा कि देश के उच्च आर्थिक विकास दर ने रोजगार के अवसर पैदा किए हैं, किसानों और मजदूरों की आय में वृद्धि की है और कई लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। सरकार ने समावेशी विकास को प्रोत्साहित किया। लोककल्याण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता ने लोगों के जीवन को बदल दिया है। नागरिकों के लिए आवास और स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुंच सुनिश्चित हुई है। हाशिए पर पड़े समुदायों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों को बुनियादी सुविधा मुहैया कराकर उनको मुख्य धारा से जोड़ा गया।
राष्ट्रपति ने संविधान सभा का जिक्र करते हुए महिला समानता की बात की। उन्होंने कहा कि महिलाएं हमेशा से देश के लोकतांत्रिक ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। उन्होंने कहा जब दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं की समानता एक दूर का लक्ष्य थी, तब भारतीय महिलाएं राष्ट्र के भाग्य में सक्रिय रूप से शामिल थीं।
प्रेसिडेंट द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि संविधान एक जीवंत दस्तावेज के रूप में विकसित हुआ है जो भारत की सामूहिक पहचान की नींव के रूप में कार्य करता है और पिछले 75 वर्षों में राष्ट्र की प्रगति का मार्गदर्शन करता रहा है। उन्होंने कहा कि एक सुव्यवस्थित स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्र को एकजुट करने के लिए 20वीं सदी के शुरुआती स्वतंत्रता सेनानियों ने बहुत बड़ा योगदान दिया जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। भारत को अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को फिर से खोजने में मदद करने के लिए महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर और बाबासाहेब अंबेडकर जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उन्होंने कहा न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व केवल आधुनिक अवधारणाएं नहीं हैं वे हमेशा हमारी सभ्यतागत विरासत का अभिन्न अंग रहे हैं। उन्होंने कहा कि संविधान के भविष्य पर संदेह करने वाले गलत साबित हुए।
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि इस देश की सहस्राब्दियों-पुरानी नागरिक सत्प्रवृत्तियों के चलते हमारा संविधान एक जीवंत दस्तावेज बन पाया है। मुर्मू ने मसौदा समिति की अध्यक्षता करने वाले डॉ. बी.आर. आंबेडकर और संविधान सभा के उन तमाम सदस्यों को श्रद्धांजलि दी जिन्होंने देश की प्रगति का मार्गदर्शन करने वाला दस्तावेज सृजित किया। एक आधुनिक गणतंत्र के रूप में भारत की यात्रा को उसकी विरासत से जोड़ता है। राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय, स्वतंत्रता, समानता, और बंधुत्व के संवैधानिक मूल्य हमेशा से भारतीय सभ्यता का हिस्सा रहे हैं। स्वाधीनता के समय भारत के भविष्य को लेकर संदेह जताने वाले संशयवादियों को देश की इन्हीं अंतर्निहित शक्तियों के बूते गलत सिद्ध किया गया है। राष्ट्रपति ने संविधान सभा का प्रतिनिधिक चरित्र उजागर किया, जिसके सदस्य देश के हर हिस्से और समुदाय से लिये गये थे, जिनमें 15 महिलाएं भी थीं। उन्होंने कहा, जब अधिकांश विश्व में महिला समानता केवल एक दूर का आदर्श था, भारतीय महिलाएं देश की नियति को गढ़ने में योगदान दे रही थीं। बीते 75 सालों की प्रगति की चर्चा करते हुए, मुर्मू ने औपनिवेशिक युग के अवशेषों को पीछे छोड़ने के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना की।
राष्ट्रपति ने सुशासन को पुनर्परिभाषित करने के एक साधन के बतौर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने के विवादास्पद प्रस्ताव की जोरदार पैरवी की। नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा पेश, एकसाथ चुनावों से जुड़ा मसौदा विधेयक संसद की संयुक्त समिति द्वारा समीक्षाधीन है। राष्ट्रपति इस बहस में इस दलील के साथ उतरी हैं कि एकसाथ चुनाव से शासन में निरंतरता को बढ़ावा मिलेगा, नीतिगत निष्क्रियता से बचाव होगा।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा हमारी सांस्कृतिक विरासत के साथ हमारा जुड़ाव और अधिक गहरा हुआ है। इस समय आयोजित हो रहे प्रयागराज महाकुंभ को उस समृद्ध विरासत की प्रभावी अभिव्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है। हमारी परंपराओं और रीति-रिवाजों को संरक्षित करने
तथा उनमें नई ऊर्जा का संचार
करने के लिए संस्कृति के क्षेत्र में अनेक उत्साहजनक प्रयास किए जा रहे हैं। (हिफी)