अब बिहार में ही मिलेगा रोजगार

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
बिहार के मजदूरों ने मुंबई, दिल्ली और कोलकाता को अपने पसीने से सुविधाएं उपलब्ध करायीं लेकिन बदले में उपेक्षा ही मिली। मुंबई में तो राजठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने प्रताड़ना के नाम पर यूपी-बिहार के मजदूरों को लूटा और पीटा। दिल्ली में उन पर तोहमत लगायी गयी कि बिहारी मजदूर गंदगी और बीमारी फैलाते हैं। इससे बिहार की भी बदनामी हुई लेकिन यह कड़वा सच है कि राज्य में अगर रोजगार होता तो ये गरीब अपने बीबी-बच्चों के साथ पंजाब, दिल्ली और मुंबई-कोलकाता की सड़कों के किनारे क्यों डेरा डालते। बिहार के उद्योग मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन कहते हैं कि अब बिहार के लोगों को मजदूरी करने बाहर नहीं जाना पड़ेगा। बिहार टेक्सटाइल और लेदर पालिसी-2022 को मंजूरी मिल गयी है। इससे राज्य को उद्योग हब बनाया जा सकेगा और लोगों को रोजगार भी मिलेगा। शाहनवाज कहते हैं कि इस प्रकार राज्य के औद्योगीकरण और बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन के काम को पूरा किया जा सकेगा। बिहार से मजदूरों का पलायन रुक जाए और लोगों को राज्य में ही रोजगार मिले, इससे बढ़कर अच्छी बात और क्या हो सकती है।
उद्योग क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रहे बिहार के लोगों को एक बड़ी सौगात मिली है। राज्य कैबिनेट बैठक में 27 मई को बिहार टेक्सटाइल और लेदर पॉलिसी 2022 को मंजूरी मिल गई। राज्य में टेक्सटाइल और लेदर उद्योगों की तेजी से स्थापना हो, इसके लिए बिहार टेक्सटाइल और लेदर पालिसी 2022 में बहुत से इन्सेंटिव्स यानी प्रोत्साहन सुविधाओं का ऐलान किया गया है।
राज्य के उद्योग मंत्री सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि बिहार में टेक्सटाइल और लेदर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए हमने देश की सबसे बेहतर पॉलिसी तैयार की है। उन्होंने कहा इस पॉलिसी के तहत पूंजीगत अनुदान, रोजगार अनुदान, विद्युत अनुदान, फ्रेट अनुदान, पेटेंट अनुदान समेत कई तरह की इंसेंटिव्स का प्रावधान किया गया है जिससे देश भर के टेक्सटाइल और लेदर उद्योग से जुड़े कारोबारियों, उद्योगपतियों को बिहार में उद्योग लगाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और बिहार देश का टेक्सटाइल व लेदर उद्योगों का हब बन सकेगा। उद्योग मंत्री ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का हार्दिक आभार है कि उनकी अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में बिहार टेक्सटाइल और लेदर पॉलिसी 2022 को स्वीकृति मिली है। ये भी खुशी की बात है कि उद्योग विभाग से उनका विशेष लगाव है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय कपड़ा और चमड़ा बाजार में जबरदस्त अवसर हैं। बिहार टेक्सटाइल और लेदर पॉलिसी-2022 की मदद से हम भी राज्य के औद्योगिकीकरण और बिहार में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन के संकल्प को पूरा करने के साथ बिहार को कपड़ा और लेदर उत्पादन का हब बनाकर देश के मिशन में भी सहभागिता निभाएंगे और अंतर्राष्ट्रीय कपड़ा बाजार में मौजूद अवसरों का लाभ बिहार ले पाएगा। उन्होंने कहा कि बिहार में टेक्सटाइल और चमड़ा या इससे संबंधित उद्योग लगाने वालों को 10 करोड़ तक का पूंजीगत अनुदान मिलेगा तो सिर्फ 2 रुपए प्रति यूनिट पावर टैरिफ का भी लाभ दिया जाएगा। उद्योग मंत्री हुसैन ने ये भी कहा कि कपड़ा या चमड़ा उद्योग श्रम शक्ति प्रधान उद्योग है इसलिए इसमें 5000 रुपए प्रति कामगार रोजगार अनुदान का भी प्रावधान किया गया है जोकि औद्योगिक इकाइयों के लिए काफी मददगार साबित होंगे। इसके अलावा ऋण पर 10 प्रतिशत तक का ब्याज अनुदान, एसजीएसटी पर 100 प्रतिशत की छूट, सभी पात्र इकाइयों को प्रति कर्मचारी प्रति वर्ष 20 हजार रुपए का कौशल विकास अनुदान, स्टैम्प शुल्क, निबंधन पर 100 फीसदी की छूट, भूमि सम्परिवर्तन पर भी 100 फीसदी की छूट जैसे कई प्रावधान हैं जो बिहार में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहित करेंगे। बिहार के तेज औद्योगिकीकरण के लिए 10 लाख तक प्रति वर्ष फ्रेट सब्सिडी और 10 लाख प्रति पेंटेट के हिसाब से पेंटेट सब्सिडी का भी प्रावधान बिहार टेक्सटाइल और लेदर पॉलिसी-2022 में है।
केंद्र और राज्य सरकार रोजगार को लेकर तमाम दावें करती हैं। लेकिन नेशनल करियर सर्विस पोर्टल (एनसीएसपी) ने जो आंकड़े जारी किए हैं वो सरकारी दावों की पोल खोल रहे हैं। एनसीएसपी के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले एक साल में बिहार में बेरोजगार युवाओं की संख्या में तीन गुना वृद्धि हुई है।
मार्च 2021 तक राज्य में पोर्टल पर पंजीकृत बेरोजगार युवाओं की कुल संख्या 78,00,259 थी और पिछले 10 महीनों में यह संख्या 2,67,635 हो गई है। एनसीएसपी एक सरकारी वेबसाइट है जहां बेरोजगार युवा अपना नाम दर्ज कराते हैं, और राज्य सरकारें और केंद्र उन्हें उनके प्रोफाइल के अनुसार और भर्ती प्रक्रियाओं के माध्यम से नौकरी प्रदान करती हैं। आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 2020 की तुलना में 2021 में पोर्टल पर पंजीकरण तीन गुना अधिक था। अक्टूबर 2021 में अधिकतम 63,524 व्यक्तियों ने पोर्टल पर अपना नाम दर्ज कराया। इसके अलावा, जून 2021 में 7,967, जुलाई में 18,017, अगस्त में 20,968, सितंबर में 53,906, नवंबर में 62,983, दिसंबर में 20,766, और 2022 जनवरी में 13,000 व्यक्तियों ने पंजीकरण कराया।
बेरोजगारी उन मुद्दों में से एक है जहां केंद्र और बिहार सरकार में सत्ताधारी दलों के नेताओं के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। कृषि उद्योग के अलावा बिहार में कोई और विकसित उद्योग नहीं हैं। इसलिए बिहार के कामगार अपनी जीविका के लिए अपने राज्य से पलायन हो रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार मूल के 60.3 लोग उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब एवं हरियाणा इत्यादि राज्यों में रहते हैं। बिहार में मुख्य कृषि आधारित उद्योग के रूप में चीनी उद्योग, दुग्ध उद्योग, वस्त्र उद्योग, रेशम उद्योग, तंबाकू उद्योग इत्यादि का विकास हुआ है।जूट उद्योग बिहार के कृषि आधारित प्रमुख उद्योगों में से एक है जो रेशेदार फसल पटसन पर आधारित है। देश में जूट उत्पादन के क्षेत्र में बिहार का द्वितीय स्थान है। बिहार में जूट का उत्पादन में पूर्वोत्तर जिला पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज एवं अररिया में होता है। राज्य के उत्पादन में पूर्णिया जिला का अग्रणी स्थान है जो राज्य के कुल जूट उत्पादन का 70 प्रतिशत भाग उत्पादित करता है।बिहार में पिछले दो दशकों से चाय उत्पादक राज्य के रूप में उभरा है बिहार में चाय की खेती किशनगंज जिले में लगभग 50000 एकड़ भूमि पर की जाती है जिसका 50 प्रतिशत हिस्सा पोठिया, 40 प्रतिशत ठाकुरगंज और 10 प्रतिशत किशनगंज में होता है।
बिहार चाय में सर्वाधिक वार्षिक उत्पादन लगभग 4000 टन है। किशनगंज में 7 चाय प्रसंस्करण संयंत्र लगाए गए हैं, जिनमें 2300 से भी अधिक चाय का वार्षिक उत्पादन होता है। इसलिए राज्य मंे उद्योगों पर ध्यान देना जरूरी है। (हिफी)