कुनबे से सावधान रहें पटनायक

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
- जिला परिषद की 852 सीटों मंे 766 पर बीजद का कब्जा
- सत्तारूढ़ दल के विधायक ने भीड़ पर चढ़ा दी कार
कुनबे की परिभाषा को यदि विस्तृत रूप से देखें तो हम जहां काम करते हैं अथवा जहां रहते हैं, वो परिवार अर्थात् कुनबा ही है। राजनीति मंे पार्टी कुनबा है। ओडिशा (उड़ीसा) के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भाजपा की राजनीतिक आंधी मंे भी अपने राज्य को बचाये हैं। हालांकि उन्होंने समय-समय पर भाजपा के प्रति साफ्ट कार्नर भी रखा है लेकिन उन्हें भी पता है कि मौका मिलते ही बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है। मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने अपनी पार्टी के पैर मजबूती से जमाये हैं जिनको भाजपा भी आसानी से उखाड़ नहीं पाएगी। अभी जिला परिषद के चुनाव मंे नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल ने सभी पार्टियों को क्लीन स्वीप कर दिया है। इसका मतलब है कि जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है लेकिन सरकार की इन्कम्बंेसी का असर तो पड़ता ही है। उस पर विधायकों की गुण्डागर्दी सबसे ज्यादा प्रभाव डालती है। अभी हाल ही मंे (12 मार्च) एक विधायक ने नशे मंे कई लोगों पर गाड़ी चढ़ा दी। इस तरह का सत्ता का नशा पटनायक सरकार पर कालिख पोत रहा है। दो साल बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और नवीन पटनायक अगर अपने कुनबे से सावधान न रहे तो भाजपा की आंधी मंे उनकी सरकार भी गिर सकती है। यहां 2019 मंे बीजू जनता दल को 12, भाजपा को 8 व कांग्रेस को एक सांसद मिला था। राज्य की 146 सदस्यीय विधानसभा मंे बीजू जनता दल को 112 विधायक मिले थे। कांग्रेस को 9 और सीपीएम को एक विधायक मिला था। एक विधायक निर्दलीय था।
ओडिशा के जिला परिषद चुनाव में बीजू जनता दल ने शानदार प्रदर्शन किया है। बीजद ने राज्य के सभी 30 जिलों की जिला परिषदों की सीटों पर अपना कब्जा जमाकर नया इतिहास रचा है। इन चुनाव की खास बात यह है कि 70 प्रतिशत महिलाएं जिला पंचायत अध्यक्ष बनी हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है। ओडिशा में बड़ी संख्या में महिलाएं जिलों का नेतृत्व कर रही हैं। सरस्वती मांझी को सबसे कम उम्र की जिला परिषद के रूप में चुना गया है। इस बार जिला परिषद अध्यक्ष चुनी गईं सरस्वती माझी की उम्र 23 साल है और उन्होंने बीएससी की हैं। वह राजयगड़ जिले में विकास कार्य करती नजर आएंगी। इसी तरह मलकानगिरी के स्वभिमान अंचल से आने वालीं समारी तंगुल की उम्र 26 साल है और उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई की है।
इस चुनाव में कुल 21 महिलाएं ऐसी हैं जिनका चुनाव जिला परिषद अध्यक्ष के रूप में हुआ है जो कि कुल सीटों का 70 प्रतिशत है। राज्य के सीएम नवीन पटनायक ने अपने गृह जिले गंजम में भी ओबीसी समुदाय से जिला परिषद अध्यक्ष का चुनाव किया। 30 में से 15 जिलों (50 फीसद) में 40 वर्ष से कम आयु के जिला परिषद अध्यक्ष चुने गए। वहीं बाकी 30 जिलों में से 23 यानी 76 फीसदी 50 वर्ष से कम आयु के जिला परिषद अध्यक्ष हैं। जिला परिषद की अध्यक्षों की औसतन उम्र 41 साल है। जिला परिषद चुनाव में बीजद ने बड़ी भारी जीत दर्ज की है। पार्टी ने 852 सीटों में से 766 पर अपना कब्जा जमाया। ओडिशा में ये चुनाव पांच चरणों 16 फरवरी से लेकर 24 फरवरी के बीच सम्पन्न हुए। इस बार जहां बीजेपी ने 21 प्रखंडों में जीत हासिल की है, वहीं कांग्रेस ने 13 और माकपा ने तीन ब्लॉक में जीत दर्ज की है। इस लिहाज से देखा जाए तो बीजद ने पंचायत समिति के अध्यक्ष पदों में से 88.5 प्रतिशत पर जीत हासिल की।
सरकार की यही छवि बनी रहे तो कोई परेशानी नहीं होगी लेकिन राज्य ओडिशा के खुर्द जिले में 12 मार्च को बड़ी घटना सामने आई। खुर्द के बानापुर में बीजद के निलंबित विधायक प्रशांत जगदेव ने कथित तौर पर अपनी गाड़ी ब्लॉक अध्यक्ष चुनाव के दौरान जमा लोगों की भीड़ पर चढ़ा दी। वाहन की चपेट में आने से सात पुलिसकर्मियों सहित कम से कम 22 लोग घायल हो गए। पुलिस ने कहा कि घटना में चिल्का के विधायक जगदेव भी गंभीर रूप से घायल हो गए। जगदेव के वाहन ने ब्लॉक अध्यक्ष के चुनाव के दौरान बीडीओ बानापुर के कार्यालय के बाहर जमा भीड़ को टक्कर मार दी। अधिकारियों ने बताया कि घटना में बानापुर पुलिस थाना के प्रभारी निरीक्षक आर. आर. साहू सहित दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए और उन्हें एम्स, भुवनेश्वर ले जाया गया। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि बीजेपी के लगभग 15 कार्यकर्ता और सात पुलिस कर्मी घायल हो गए। मामले की जांच शुरू कर दी गई है। खुर्द के एसपी लेख चंद्र पाही ने बताया कि विधायक को पहले टांगी अस्पताल और बाद में उन्हें भुवनेश्वर ले जाया गया। जगदेव को पिछले साल पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निलंबित कर दिया गया था। घटना के बाद आक्रोशित भीड़ ने उनकी कार को घेर लिया। भीड़ को हटाकर जगदेव को अलग ले जाने में पुलिस को भारी मशक्कत करनी पड़ी। हालांकि घटना की वजह अभी पता नहीं लग पाई है। पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है और विधायक का बयान इस केस में लिया जा रहा है।
मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का जन्म ओडिशा के कटक नगर में 16 अक्टूबर 1946 को हुआ। उनके पिता ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक तथा माँ ज्ञान पटनायक थे। उनकी शिक्षा दून विद्यालय में हुई और बाद में उन्होंने किरोड़ीमल महाविद्यालय, दिल्ली से कला में स्नातक की शिक्षा पूर्ण की। नवीन पटनायक एक लेखक भी हैं और उन्होंने अपना युवाकाल लगभग राजनीति और ओडिशा से दूर ही व्यतीत किया। वर्ष 1997 में नवीन पटनायक ने उनके पिता का निधन होने के बाद राजनीति में कदम रखा और एक वर्ष बाद ही अपने पिता बीजू पटनायक के नाम पर बीजू जनता दल की स्थापना की। बीजू जनता दल ने उसके बाद विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की और भाजपा के साथ सरकार बनाई जिसमें वे स्वयं मुख्यमंत्री बने। उन्होंने भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई और गरीब समर्थक नीतियां अपने ही ढ़ंग से आरम्भ की। उन्होंने नौकरशाही का ठीक से प्रबन्धन कर राज्य के विकास के अपने पिता के सपने को अपने विकास का आधार बनाया। इसी तरह उन्होंने ओडिशा में लोकप्रियता हासिल की और लगातार चार बार पूर्ण जनाधार के साथ मुख्यमंत्री बनने में सफल हुये। नवीन पटनायक के नाम पर ओडिशा के इतिहास में सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री बनने का कीर्तिमान है।ख्11, वो अभी तक अविवाहित हैं।
यहां भाजपा भी मजबूती से पैर जमा रही है। बीजेपी ने ओडिशा के मयूरभंज जिले में 2017 के पंचायत चुनाव में अपना कब्जा जमाने के बाद उसे अपने एक मजबूत गढ़ में बदल दिया। इसके बाद पिछले आम चुनाव में यहां से बीजेपी के सांसद सहित 6 विधायकों ने जीत हासिल की थी। मयूरभंज की 9 विधानसभा सीटों में से 6 पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी के लिए मयूरभंज जिला एक मजबूत गढ़ माना जाने लगा था। राज्य के पंचायत चुनाव के नतीजों ने इस धारणा को तोड़ दिया। बीजेपी के लिए पंचायत चुनाव के नतीजे एक बड़ा धक्का साबित हुए और उसे तब जिला परिषद की एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो सकी। मयूरभंज जिले में भाजपा के संगठन की कमान केंद्रीय ट्राइबल अफेयर्स और जल शक्ति मंत्री बिश्वेश्वर टुडू के हाथ में है। इन नतीजों ने साबित कर दिया कि उनका मयूरभंज की जनता पर कुछ खास असर नहीं है। राज्य में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल ने भाजपा का सफाया करते हुए 25 जिला परिषद सीटों पर जीत हासिल कर ली है। कहा जा रहा है कि 2017 के पंचायत चुनाव और 2019 के आम चुनाव में हार के बाद बीजद ने मयूरभंज में पार्टी के संगठन को मजबूत करने के लिए प्रयास तेज कर दिए। बीजद ने संगठन की कमजोरियों को दूर करने के साथ ही असंतुष्टों को अपने साथ जोड़ना शुरू किया। इस जनजातीय बहुल जिले में लोगों की समस्याओं और शिकायतों को दूर करने के लिए किए गए बीजद के प्रयासों का नतीजा इस बार के पंचायत चुनावों में साफ दिखाई दिया है। (हिफी)