लेखक की कलम

कांग्रेस का सियासी अभिमान

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
ओवर कॉन्फिडेंस अर्थात अति विश्वास और अभिमान में अंतर होता है। राहुल गांधी की बात हम छोड़ भी दें तो अनुभवी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को यह बात समझ में क्यों नहीं आ रही है। हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र तक जनता ने कांग्रेस को जो सबक दिया है उसी को आधार बनाकर ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, उमर अब्दुल्ला और तेजस्वी यादव ने अपने सुर बदले हैं। कांग्रेस को इसके बाद भी इस बात का अभिमान है कि विपक्ष की वह नेता है। उसका फैसला सभी विपक्षी दलों को मानना होगा। इसी रौ में बिहार में उसने सीटों की घोषणा की है। पप्पू यादव के बयान ने भी कांग्रेस का अभिमान बढ़ा दिया है। पप्पू यादव कांग्रेस को बड़े भाई की भूमिका में रहने का राग अलाप रहे हैं। बिहार में अगले साल ही विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है। कांग्रेस ने दावा किया है कि वह 2025 के चुनाव में 70 से कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी। बिहार कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह ने यह दावा किया है। उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों के गठबंधन आइएनडीआइए अर्थात इंडिया के 24 घटक दल आपसी सहमति से सीटों का बंटवारा कर चुनाव मैदान में उतरेंगे। प्रशांत किशोर से जुड़े सवाल पर डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि उन्होंने अभी नई-नई पार्टी बनाई है। उन्हें काम करने दीजिए। उन्होंने कहा मेरी सलाह है कि प्रशांत किशोर को भी आइएनडीआइए में शामिल हो जाना चाहिए। उन्होंने नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की महिलाओं को 25 सौ रुपये देने की घोषणा पर कहा कि हम लोग इससे ज्यादा भी दे सकते हैं लेकिन, हमारा ध्यान पहले सरकार बनाने की लड़ाई पर होना चाहिए। विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन कर अधिक से अधिक सीटें प्राप्त करनी होगी। कांग्रेस की पहली परीक्षा तो दिल्ली के विधानसभा चुनाव में ही हो जाएगी। इसके बाद ही कांग्रेस के किसी दावे पर भरोसा किया जा सकेगा।
बिहार के सांसद पप्पू यादव ने कांग्रेस का घमंड बढ़ा दिया है। पप्पू यादव ने कहा कि बिहार में मुख्यमंत्री कोई बने, इससे मेरा कोई मतलब नहीं है। इसको दिल्ली में कांग्रेस को तय करने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। मेरा सिर्फ एक मतलब है कि बिहार चुनाव के दौरान कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका में रहे। उन्होंने कहा बिहार में 15 जनवरी के बाद कांग्रेस को मजबूत किया जाएगा। सांसद ने कहा कि अगर बिहार में बनने वाली सरकार में हमारी हिस्सेदारी हुई तो पेपर लीक जैसी घटनाओं पर विराम लगाते हुए तीन महीने के अंदर छात्रों को ज्वाइनिंग दे दी जाएगी। संविदा एवं नियोजन के लिए परीक्षाएं आयोजित नहीं होगा। बिहारी छात्रों के लिए बिहार में डोमिसाइल की नीति लाई जाएगी और 80 प्रतिशत बिहारियों का स्थान यहां की सेवा में सुरक्षित होगा।
पप्पू यादव के इस बयान के बाद ही प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में 15 दिसंबर को सेवा दल के स्थापना कार्यक्रम के बाद बिहार कांग्रेस अध्यक्ष व राज्यसभा सदस्य डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह ने बड़ा दावा किया है। डॉ. सिंह ने कहा कि कांग्रेस ने 2020 के चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसके बाद 2024 लोकसभा चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर रहा है। सिंह ने कहाकि हमने सिर्फ नौ सीटों पर चुनाव लड़कर तीन पर शानदार विजय प्राप्त की। उन्होंने कहा लोकसभा चुनाव में भी कहा जा रहा था कि सीटों को लेकर महागठबंधन में मतभेद हैं। हमारे बीच कोई मतभेद नहीं। इस पर नेता प्रतिपक्ष और राजद नेता तेजस्वी यादव ने तंज कसते हुए कहा कि जो खुद सीटें तय नहीं करते, उनकी बात करना बेमानी है। यह पूरा मामला प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित प्रांतीय सम्मेलन से शुरू हुआ था।
अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल के 101 वर्ष पूरा होने पर 15 दिसंबर को प्रदेश कांग्रेस सेवा दल द्वारा सदाकत आश्रम में प्रांतीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह के साथ ही अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल के मुख्य संगठक लालजी देसाई एवं विधानमंडल दल के नेता डॉ. शकील अहमद खान विशेष रूप से मौजूद रहे। कार्यक्रम में कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि सेवादल कांग्रेस के आंख-कान है। किसी भी आपदा के वक्त सेवादल के कार्यकर्ता पूरी मुस्तैदी से कार्य करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि आप सब लोग बिहार विधानसभा चुनाव के लिए जी जान से जुट जाएं। लालजी देसाई ने कहा कि सेवादल अनुशासन और जिम्मेदारी का प्रतीक है।
देसाई ने कांग्रेस सेवा दल, यंग ब्रिगेड, सेवादल महिला मोर्चा, सेवादल सहित अन्य विभागों और प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों को भी मतदान केंद्रों पर कार्य करने और बूथ तक मजबूती लाने के लिए निर्देश दिए।
सच्चाई यह है कि कांग्रेस के पास मजबूत कैडर नहीं रह गया। कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच मिलना तो दूर संवाद तक नहीं हो पाता। ऐसे में भाजपा जैसी मजबूत कैडर वाली पार्टी से वह मुकाबला नहीं कर पा रही है। भाजपा को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) और विश्व हिंदू परिषद वीएचपी जैसे कैडर वोट ही नहीं दिलवाते बल्कि हिन्दुत्व से जोड़ने का काम भी करते हैं । इसतरह की मजबूत पार्टी के सामने कांग्रेस का डींग मारना मिथ्याभिमान ही कहा जाएगा। उधर, पूर्णिया सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने कहा है कि राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के झूठ, जुमले तथा आतंक के खिलाफ लड़ने की एक मात्र आवाज हैं। इसलिए मैं चाहता हूं कि वर्ष 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव कांग्रेस के नेतृत्व में लड़ा जाय। राहुल गांधी को सोल्जर बताते हुए सांसद पप्पू यादव ने कहा कि रोजगार, जाति जनगणना समेत तमाम बिंन्दुओं पर एक मात्र राहुल गांधी आवाज उठा रहे हैं। उन्होंने हरियाणा और महाराष्ट्र से सीख लेकर बिहार में क्षेत्रीय दलों को जिद्द छोड़ने की सलाह दी। पप्पू यादव की कांग्रेस के प्रति वफादारी की तारीफ करनी चाहिए लेकिन वह राहुल गांधी को सच्चाई से दूर ले जाकर पार्टी का अहित कर रहे हैं। ममता बनर्जी और उमर अब्दुल्ला जैसे नेता इसी लिए कांग्रेस के खिलाफ बोलने लगे हैं।
पप्पू यादव के इस बयान से राजद सुप्रीमो लालू यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की टेंशन भी बढ़ सकती है क्योंकि तेजस्वी यादव समेत आरजेडी के कई नेता कह चुके हैं कि अपने अपने प्रभाव वाले स्टेट में क्षेत्रीय दलों को ड्राइविंग सीट पर बैठना चाहिए। राजद बिहार में कांग्रेस से मजबूत है।
बिहार में कहावत है कि ऊपर से चकाचक अंदर से मोकामा घाट तात्पर्य यह कि बाहर-बाहर आपको सबकुछ अच्छा-अच्छा दिखेगा लेकिन, अंदर ही अंदर कुछ न कुछ गड़बड़ी रहती है। ऐसा बिहार में महागठबंधन की सियासत को लेकर भी आजकल कहा जाने लगा है। कारण लालू यादव का कांग्रेस के प्रति जो रुख निकल कर आया है वह है, दूसरा कांग्रेस ने जिस तलाक तेवर के साथ अपनी हिस्सेदारी मांगनी शुरू कर दी है वह भी है। राजनीति के जानकारों की नजर में कांग्रेस का रुख थोड़ा अटपटा सा जरूर लगता है, लेकिन बिहार की राजनीति के संदर्भ में उसकी जरूरत भी यही है। हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व इस तेवर को लेकर कितना आगे बढ़ती है यह तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन जिस तरह से लालू यादव की आरजेडी का कांग्रेस को लेकर रुख रहा है वह कांग्रेस पार्टी को कितने दिनों तक गंवारा रहेगा यह नहीं कहा जा सकता। खास तौर पर कांग्रेस से ताल्लुक रखने वाले दो बड़े नेता, जिनके कंधों पर कांग्रेस अपना भविष्य देखती है वह लालू यादव के टारगेट पर हैं। एक हैं पप्पू यादव तो दूसरे हैं कन्हैया कुमार। सियासत के जानकार इसे सीधे-सीधे तेजस्वी यादव के राजनीतिक भविष्य से जोड़कर देखते हैं और राह का कांटा बता रहे हैं। ऐसा कांटा जिसे लालू यादव हर हाल में निकलना चाहते हैं। खास बात यह है कि इनमें एक यादव हैं तो दूसरे
सवर्ण। पप्पू यादव मुसलमानों और यादवों में पॉपुलर हैं, तो कन्हैया कुमार मुसलमानों और दलितों के बीच बेहद लोकप्रिय
हैं। (हिफी)

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