लेखक की कलम

दक्षिण भारत की राजनीति

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

अभी कुछ दिनों पहले ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक हैदराबाद मंे हुई थी। यह शहर आंध्र प्रदेश से अलग करके बने राज्य तेलंगाना की राजधानी है। तेलंगाना मंे तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) की सरकार है और अलग राज्य के लिए आंदोलन करने वाले नेता के. चन्द्रशेखर राव लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। भाजपा ने तेलंगाना मंे अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए ही बैठक स्थल के रूप मंे हैदराबाद को चुना था। बैठक मंे इस बात पर चर्चा भी हुई और तेलंगाना मंे बूथ स्तर पर भाजपा को मजबूत करने की रणनीति बनायी गयी। इसी के बाद चार महान लोगों का राज्यसभा के लिए मनोनयन किया गया। भले ही यह मनोनयन राष्ट्रपति करते हैं लेकिन केन्द्र सरकार का इशारा सर्वोपरि होता है। इसलिए इसे इत्तेफाक नहीं कहा जा सकता कि राज्यसभा के लिए मनोनीत किये गये चारों महान लोग दक्षिण भारत के हैं। अब एक नयी खबर आयी है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की माताश्री विजयम्मा ने वाईएसआरसीपी के मानद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी बेटी की पार्टी के लिए काम करेंगी। विजयम्मा की बेटी और जगन मोहन रेड्डी की बहन शर्मिला रेड्डी तेलंगाना मंे वाईएसआर तेलंगाना पार्टी की कमान संभाल रही हैं। हालांकि शर्मिला रेड्डी और जगन मोहन रेड्डी के बीच सम्पत्ति को लेकर विवाद भी है लेकिन विजयम्मा का यह कहना है कि एक माँ के तौर पर मैं हमेशा जगन के करीब रहूंगी, इससे लगता कि सब कुछ सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है। उधर, तमिलनाडु मंे भी पलानीस्वामी और पन्नीर सेल्वम के बीच सत्ता पर कब्जे का शीतयुद्ध चल रहा है।
दक्षिण भारत की राजनीति में एक बड़ी हलचल हुई है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी की मां विजयम्मा ने वाईएससीआर के मानद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। इसके बाद अब वे अपनी बेटी के साथ जाएंगी। गौरतलब है कि उनकी बेटी ने तेलंगाना में एक नई पार्टी का गठन किया है। तेलंगाना में अगले साल विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। जगन मोहन रेड्डी के पिता की 73वीं जयंती पर जगन ने अविभाजित आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई.एस. राजशेखर रेड्डी को श्रद्धांजलि दी। उनके साथ उनकी पत्नी और मां भी मौजूद थी।
विजयम्मा की बेटी शर्मिला तेलंगाना में वाईएसआर तेलंगाना पार्टी की कमान संभाल रही हैं। विजयम्मा ने इस्तीफे का ऐलान करते हुए कहा कि वह हमेशा जगनमोहन रेड्डी के करीब रहेंगी। उन्होंने गत 8 जुलाई को शुरू हुए पार्टी के अधिवेशन में वाईएसआर कांग्रेस छोड़ने के अपने फैसले की घोषणा करते हुए कहा, ‘‘एक मां के तौर पर मैं हमेशा जगन के करीब रहूंगी।’’ विजयम्मा ने कहा, ‘‘शर्मिला अपने पिता के आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए तेलंगाना में अकेले लड़ाई लड़ रही हैं। मुझे उसका समर्थन करना होगा। मैं इस दुविधा में थी कि क्या मैं दो राजनीतिक दलों (दो राज्यों में) की सदस्य हो सकती हूं। वाईएसआर कांग्रेस के मानद अध्यक्ष पद पर बने रहना मेरे लिए मुश्किल है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैंने कभी सोचा नहीं था कि ऐसी स्थिति पैदा होगी। मुझे नहीं पता कि ऐसा क्यों हुआ, लेकिन मुझे लगता है कि यह ईश्वर की मर्जी है।’’ विजयम्मा ने कहा कि वह अपनी भूमिका को लेकर किसी भी तरह के विवाद से बचने के लिए वाईएसआर कांग्रेस के मानद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रही हैं। पिछले कुछ समय से खबरें आ रही थीं कि जगनमोहन रेड्डी और शर्मिला के बीच संपत्ति से जुड़े मुद्दों को लेकर सब कुछ ठीक नहीं है। खबरों के मुताबिक, पिछले कुछ दिनों में दोनों के बीच कड़वाहट काफी बढ़ गई है और विजयम्मा अपने बेटे से अलग रह रही हैं। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई.एस. राजशेखर रेड्डी की बेटी वाई.एस. शर्मिला तेलंगाना की राजनीति में काफी पहले चली गयी थीं। राज्य की राजनीतिक अखाड़े के प्रमुख खिलाड़ियों के मन में हैरत के साथ यह सवाल भी उठ रहा था कि क्या 2023 के विधानसभा चुनाव पर शर्मिला का असर पड़ सकता है? आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी की बहन शर्मिला, 2014 में अलग राज्य के रूप में गठन के बाद से तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के अध्यक्ष एन. चंद्रबाबू नायडू के बाद तेलंगाना की राजनीति में आने वाली आंध्र प्रदेश की पहली नेता हैं।
राजन्ना राज्यम को वापस लाने के उद्देश्य से, अपने दिवंगत पिता के सुनहरे शासन का सपना पूरा करने के लिए शर्मिला तेलंगाना की राजनीति में कदम रखने के लिए एक नई पार्टी बनाने की योजना बनायी। वाईएसआरसीपी ने शर्मिला के कदम से खुद को दूर कर लिया। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि उनके लिए एक नई पार्टी बनाना जरूरी होगा। शर्मिला, जिन्होंने अपने दिवंगत पिता के वफादारों के साथ परामर्श शुरू किया और कहा कि तेलंगाना की राजनीति में एक नए खिलाड़ी के लिए गुंजाइश है। उन्होंने कहा, तेलंगाना में कोई राजन्ना राज्यम नहीं है। मैं इसे लाना चाहती हूं। उन्होंने दावा किया कि नलगोंडा जिले के वाईएसआर के वफादारों के साथ पहली बैठक के दौरान सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। वह जमीनी हकीकत जानने के लिए अन्य जिलों के वाईएसआर के वफादारों के साथ इसी तरह की बैठक करने की योजना बना रही हैं और अपनी अगली कार्रवाई की घोषणा करने से पहले स्थिति को समझेंगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तेलंगाना की नई राजनीतिक वास्तविकताओं में शर्मिला को राजन्ना राज्यम के लिए आकर्षक योजना पेश करनी होगी, क्योंकि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) कल्याणकारी योजनाओं में हर साल 40,000 करोड़ रुपये खर्च करने का दावा करती है।
यह सच है कि किसानों के लिए मुफ्त बिजली, छात्रवृत्ति और राजीव आरोग्यश्री या गरीबों के लिए स्वास्थ्य बीमा सहित कई योजनाएं राजशेखर रेड्डी द्वारा शुरू की गईं, जिन्हें वाईएसआर के रूप में जाना जाता है। वह साल 2004 से 2009 के बीच अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। मगर कई दलों के नेताओं ने प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि तेलंगाना में एक बाहरी व्यक्ति की कोई भूमिका नहीं है।तेलंगाना के विश्लेषक पी. राघव रेड्डी ने कहा कि अभी भी लोगों में विश्वास है कि वाईएसआर एक अलग राज्य के गठन में बाधा थे। उन्होंने कहा, उन्हें लगता है कि (कांग्रेस
अध्यक्ष) सोनिया गांधी और कांग्रेस आलाकमान द्विभाजन के पक्ष में थे, यह वाईएसआर थे, जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए इस प्रक्रिया को रोक दिया था। साल 2009 में वाईएसआर के हेलीकॉप्टर दुर्घटना में निधन के बाद तेलंगाना के लिए आंदोलन ने गति पकड़ ली।
उधर, हैदराबाद में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उद्घाटन सत्र को संबोधित कर विपक्ष पर विनाशकारी राजनीति करने, प्रधानमंत्री मोदी के विरोध करने के उत्साह में भारत का विरोध करने का आरोप लगाया। नड्डा ने कहा कि बीजेपी गरीबों को सशक्त बनाने में लगी है, जबकि दूसरे दल अपने ही परिवारों को सशक्त बनाने में व्यस्त हैं। अभी लोकसभा चुनाव में वक्त है, लेकिन बीजेपी तैयारी में अभी से ही जुट गई है। इस बार बीजेपी की नजर दक्षिण पर है। 2 और 3 जुलाई को हैदराबाद में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी के गढ़ में काफी अहम मानी जा रही है। बैठक के अंत में प्रधानमंत्री की जनसभा को लेकर 10 लाख लोगों को जुटाने का लक्ष्य रखा गया। दरअसल दक्षिण भारत के पांच राज्यों में 100 से ज्यादा लोकसभा सीटें हैं। बीजेपी की इन पर ही नजर है। बीजेपी का दक्षिण भारत में विस्तार करने पर फोकस है। 2023-24 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के जरिए एक तीर से दो निशाने साधने की रणनीत बनाती दिख रही है। (हिफी)

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