कांग्रेस को एक रख पाएंगी प्रतिभा सिंह

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
अपना दबदबा कायम करने के लिए कांग्रेस मंे गुटबाजी स्थायी रोग बन गया है। इसी साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश मंे विधानसभा के चुनाव होने हैं। गुजरात में हार्दिक पटेल पर कांग्रेस ने बहुत भरोसा जताया था लेकिन उन्होंने राहुल और प्रियंका गांधी पर सीधे-सीधे उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ी और भाजपा का दामन थाम लिया है। इसी तरह हिमाचल प्रदेश मंे भी पूर्व अध्यक्ष अजय बहादुर से एक धड़ा नाराज था। कांग्रेस हाईकमान ने गुटबाजी दूर करने के लिए प्रतिमा सिंह को अध्यक्ष बना दिया है लेकिन गुटबाजी फिर भी खत्म नहीं हो रही। अभी एक विधायक ने इस बात को लेकर नाराजगी जतायी कि उन्हंे मंच पर चढ़ने नहीं दिया गया। बहरहाल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने दावा किया है कि कांग्रेस मंे अब गुटबाजी नहीं है। प्रतिमा सिंह का यह दावा कितना सही है, इसका फैसला प्रदेश के विधानसभा चुनाव करेंगे।
सवाल यह भी उठता है कि क्या कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और दिल्ली में बैठे आला नेताओं को पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी दिख नहीं रही है या हालात ऐसे हो गए हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष समेत दिल्ली में बैठे कांग्रेस के दिग्गज नेता इन हालातों को संभाल नहीं पा रहे हैं। वर्तमान हालात और आंकड़े बता रहे हैं कि कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है। पार्टी एक के बाद एक राज्य में अपना जनाधार खोती जा रही है। ऐसे में सवाल है राष्ट्रीय अध्यक्ष के सिर्फ एक इशारे पर मुख्यमंत्री तक बदल देने वाली कांग्रेस लगातार कई राज्यों में दो गुटों में बंटी अपनी पार्टी को एक साथ क्यों नहीं ला पा रही है। जानकारों की मानें तो इसके पीछे पार्टी नेतृत्व की कार्यशैली ही असली वजह है। पार्टी में जनाधार वाले नेताओं की बजाय उन नेताओं को पद दिया गया जो केंद्रीय नेतृत्व के करीब हैं लेकिन धरातल पर उनके पास अपना वोट बैंक नहीं है। ऐसे में भले ही केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा पाकर पार्टी के ये नेता संगठन और सरकार में मुख्य पदों पर बैठ गए हों लेकिन जमीन पर उनकी पकड़ वो नहीं है जो उनके खिलाफ बोलने वाले नेताओं की है। जो नेता पार्टी नेताओं के खिलाफ बोल रहे हैं उनका अपना जनाधार है। ऐसे में कुछ गिने-चुने व्यक्तियों के खिलाफ बोलने वाले इन नेताओं के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई की जाती है तो रहा सहा जनाधार भी खिसक सकता है, जो फिलहाल पार्टी के पास है। यही बड़ा कारण है कि पार्टी उन नेताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं कर पा रही है जो लगातार ऐसे बयान दे रहे हैं जिसे अनुशासनहीनता की श्रेणी में माना जा सकता है।
लोकसभा चुनाव में ही जहां पार्टी का एक धड़ा आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात कर रहा था, वहीं दूसरा धड़ा अकेले चुनाव लड़ने की बात कर रहा था। केजरीवाल ने 70 में से 62 सीटें जीतकर राजनीति में नया एजेंडा सेट किया है, तो कांग्रेस का वही धड़ा जो लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ जाना चाहता था वह खुल कर बोल रहा है और अरविंद केजरीवाल की तारीफ कर रहा है। इसी तरह हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की वर्ष 2022 में सत्ता वापसी की राह में गुटबाजी रोड़ा बनने लगी है। कांग्रेस के 22 विधायक कई गुटों में बंट गए हैं। अपने-अपने नेताओं की लॉबिंग के लिए कांग्रेस विधायक दिल्ली में डेरा डालते हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह के बाद सर्वमान्य नेता के तौर पर प्रदेश कांग्रेस में कोई विकल्प नहीं था। सुखविंद्र सुक्खू के गुट के विधायकों ने बीते दिनों दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन किया। वीरभद्र सिंह के गुट में शामिल रहे दो विधायकों ने भी पाला बदलकर सुक्खू का दामन थाम लिया। वीरभद्र सिंह के साथ वैचारिक मतभेद रखने वाले सुक्खू का दायरा अब अपने गृह जिला हमीरपुर के साथ-साथ कांगड़ा, कुल्लू, शिमला, सोलन, किन्नौर और ऊना जिला के विधायकों तक बढ़ गया है। अर्की और जुब्बल कोटखाई में हुए उपचुनाव में सुक्खू के समर्थक विधायकों ने जीत दर्ज की है। सुक्खू ने इन दोनों सीटों पर खूब पसीना भी बहाया। दूसरा गुट नेता विपक्ष मुकेश अग्निहोत्री का है। इसके अलावा कुछ वरिष्ठ विधायक तटस्थ दिखे। उपचुनावों में मिली जीत से सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद जरूर हैं।
करीब दो सप्ताह पहले ही भारत जोड़ो सद्भावना सम्मेलन में पहुंचीं पार्टी प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह के समक्ष ही दोनों गुटों की तल्खी सबके सामने आ गई थी। दोनों गुटों ने एक-दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी।वर्चस्व और अपना दबदबा कायम करने के लिए दो धड़ों की लड़ाई चुनावी साल में कांग्रेस के लिए गले की फांस बन गई है। सिरमौर जिला कांग्रेस में चल रही अंदरूनी कलह बंद कमरे से सार्वजनिक मंच तक होते हुए पुलिस थाने तक पहुंच गई। बीते दिनों पार्टी के एक कार्यक्रम में उपजा विवाद इतनी दूर पहुंचेगा, इसको लेकर किसी ने नहीं सोचा होगा। लंबे समय से जिला कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अजय बहादुर के खिलाफ कांग्रेस का एक धड़ा रुष्ट चल रहा था। इस धड़े का आरोप था कि अजय बहादुर पार्टी संगठन को मनमाने तरीके से हांक रहे हैं। सबसे ज्यादा विरोध शिलाई के विधायक हर्षवर्धन चैहान और नाहन से कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशी अजय सोलंकी कर रहे थे। भारत जोड़ो सद्भावना सम्मेलन में पहुंचीं पार्टी प्रदेशाध्यक्ष प्रतिभा सिंह के समक्ष ही दोनों गुटों ने एक-दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। दुखी होकर प्रतिभा सिंह ने सम्मेलन को छोड़कर जाने की बात तक कह दी थी।
विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। कांग्रेस के बीच लड़ाई चाहे टिकट को लेकर हो या फिर वर्चस्व को लेकर, दोनों ही सूरतों में पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। दरअसल, यह लड़ाई जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद को लेकर भी है। सिरमौर कांग्रेस का एक गुट नहीं चाहता था कि अध्यक्ष पद पर दूसरा गुट हावी हो। हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा एवं सांसद प्रतिभा सिंह का कहना है कि मौजूदा भाजपा सरकार ने अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में सिर्फ और सिर्फ पूर्व की वीरभद्र सरकार के समय में शुरू हुए विकास कार्यों के उदघाटन ही किए हैं। यह बात उन्होंने सुंदरनगर में पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में कही। प्रतिभा सिंह 22 जून को मंडी जिला के दौरे पर थीं और उन्हांेने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ आगामी चुनावों को लेकर बैठक की हैं। प्रतिभा सिंह ने कहा कि जनता भली भांति जानती है कि प्रदेश में विकास किसने करवाया है और उसका उद्घाटन किसने किया। यदि भाजपा ने विकास किया होता तो उपचुनावों में जनता इस तरह से जवाब नहीं देती। प्रदेश की जनता जानती है कि विकास करना कांग्रेस पार्टी का ही काम है। वहीं, प्रतिभा सिंह ने पार्टी के भीतर चल रही गुटबाजी की बातों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने कहा कि पार्टी में सब एकजुट हैं। सिरमौर में हुई घटना पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि वहां मंच पर इतने अधिक लोग चढ़ गए, जिस कारण बैठने के लिए जगह ही नहीं बची। ऐसे में जो विधायक हैं, उन्होंने मंच से किसी को हटाने की बजाय खुद ही नीचे बैठना उचित समझा। हालांकि, बाद में उन्हें मंच पर ही बैठाया गया, लेकिन इस घटना को गुटबाजी के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। इस तरह कांग्रेस के पास उपचुनाव मंे जीत की ही संजीवनी है जो बिखराव मंे अपना प्रभाव नहीं डाल पाएगी। (हिफी)