मर्यादा के अनुरूप द्रोपदी मुर्मू का प्रचार

(हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रमुख होता है।संघीय कार्यपालिका की शक्तियों का संचलन प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में होता है। भारत में संसदीय शासन प्रणाली है।मंत्रिमण्डल की सिफारिश और संसद द्वारा पारित विधेयक पर राष्ट्रपति हस्ताक्षर करते हैं। इसके बाद ही कानून बनता है। मूल संविधान में केवल यह उल्लेख था कि राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल की सलाह से कार्य करेंगे। इसका मतलब था कि राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल की सिफारिश और विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में संशोधन किया गया।इसके माध्यम से मंत्रिमण्डल की सिफारिश को स्वीकार करना बाध्यकारी बनाया गया। जनता पार्टी सरकार के समय इस वाक्य में पुनः संशोधन किया गया। इसके अनुसार राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल की सिफारिश को पुनर्विचार हेतु एक बार वापस कर सकते है। दुबारा वह सिफारिश या प्रस्ताव के अनुरूप ही कार्य करेंगे। मतलब राष्ट्रपति को एक बार ही सिफारिश लौटाने का अधिकार है।
इस संवैधानिक व्यवस्था के संदर्भ में विपक्षी उम्मीदवार के चुनाव प्रचार को देखना दिलचस्प है। वह यह दिखा रहे हैं जैसे राष्ट्रपति बनने के बाद वह पूरी व्यवस्था को दुरुस्त कर देंगे, जबकि राष्ट्रपति के पास ऐसा करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं हैं। यशवन्त सिन्हा ने चुनाव प्रचार को राजनीति के नकारात्मक स्तर पर पहुँचा दिया है। वह विगत आठ वर्षों से नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मुखर रहे है। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनने के बाद भी वह राजनीति के उसी धरातल पर हंै। ऐसा लग रहा है कि सर्वोच्च पद के चुनाव प्रचार को उन्होंने मोदी विरोध का अवसर मात्र मान लिया है। जबकि उनकी पराजय सुनिश्चित है। राजग उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनाना तय है। राजग को विपक्षी मतदाताओं को अपनी तरफ मिलाने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। आन्ध्र प्रदेश और उड़ीसा का सत्तापक्ष राजग उम्मीदवार के साथ है। अनेक प्रदेशों के विपक्षी मतदाता राजग उम्मीदवार को अंतरात्मा की आवाज से वोट दे सकते है।यशवन्त सिन्हा का समर्थन करने वाले दलों में भी कोई उत्साह दिखता नहीं है। ममता बनर्जी के बयान से यशवन्त सिन्हा की स्थिति हास्यास्पद हो गई है। ममता ने कहा था कि पहले पता होता तो वह द्रोपदी मुर्मू समर्थन करतीं।ऐसे में यशवन्त सिन्हा की राजनीतिक दलीलों का कोई महत्त्व नहीं है।
उनका (यशवंत सिन्हा) आरोप है कि राष्ट्रपति चुनाव में पैसे देकर विधायकों को खरीदने की कोशिश की जा रही है। मध्यप्रदेश कांग्रेस के अट्ठाइस आदिवासी विधायकों पर भाजपा की नजर है। सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग करो,धन बल का प्रयोग करो वाली भाजपा की नीति के खिलाफ हमारी लड़ाई है। पहले शिवसेना को तोड़ दिया, सरकार गिरा दी और उन्हें फोर्स किया कि हमारे उम्मीदवार का समर्थन करो। यशवन्त सिन्हा अनुभवी नेता है कि उन्हें पराजित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने की कोई आवश्यकता ही नहीं हैं।उद्धव ठाकरे की सरकार अपने कर्मों से गिरी है। यशवन्त के अनुसार विधायकों के उनके पास फोन आ रहे हैं। प्रलोभन दिया जा रहा है कि इतने पैसे ले लो और वोट हमारे प्रत्याशी के पक्ष में दे दो। कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मैं चुनाव में खड़ा हो जाऊंगा। इससे भाजपा डर गई है, इसलिए विधायकों की खरीद फरोख्त का रास्ता अपनाया है। वास्तविकता यह है कि भाजपा ने विगत आठ वर्षों में यशवंत सिन्हा को कोई महत्व नहीं दिया, जबकि वह पूरी क्षमता से सरकार विरोधी अभियान चला रहे थे। अब तो राजग उम्मीदवार के पक्ष में पूरा बहुमत है।यशवन्त अपनी राजनीति से ऊपर उठने को तैयार नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश,कर्नाटक और महाराष्ट्र में चुनी हुई सरकार को गिरा दिया गया। गोवा में कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने का प्रयास हुआ। लोकतंत्र में इससे बड़ा अपराध नहीं हो सकता है। भाजपा की ओर से द्रोपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रलोभन दिए जाने का मामला गंभीर है। निर्वाचन आयोग को इस मामले में संज्ञान लेना चाहिए। वह इस संबंध में औपचारिक शिकायत भी आयोग के समक्ष दर्ज कराएंगे। वह ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं, जिनका राष्ट्रपति चुनाव से कोई संबंध नहीं है। राष्ट्रपति बनने वाला व्यक्ति इस विषय पर कुछ कर भी नहीं सकता। यशवन्त सिन्हा अर्थव्यवस्था पर सरकार पर हमला बोल रहे है। मनमोहन सिंह सरकार की तारीफ कर रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव को देश के भविष्य का चुनाव बताया।कहा कि प्रजातंत्र को बचाने की लड़ाई लड़नी है। यशवन्त सिन्हा को समझना चाहिए कि प्रजातंत्र पर कोई खतरा नहीं है। इस प्रकार की हल्की बातेँ उन्हें नहीं करनी चाहिए। अन्य विपक्षी नेताओं की बात अलग है। वह ऐसे आरोप लगाते रहते हैं। यशवन्त भी आठ वर्ष से यही कर रहे हैं लेकिन अब वह सर्वोच्च संवैधानिक पद का चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अनुरूप उनको गंभीरता दिखानी चाहिए थी लेकिन वह ऐसा करने में विफल रहे हैं। दूसरी तरफ द्रोपदी मुर्मू का आचरण गरिमा के अनुरूप है। उन्होंने एक बार भी हल्की राजनीतिक बातें नहीं की। विपक्ष पर कोई आरोप नहीं लगाया। वैसे भी राष्ट्रपति दलगत राजनीति से ऊपर हो जाता है। द्रोपदी मुर्मू ने इसके अनुरूप अपने को तैयार किया है। उन्होंने किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया। यशवन्त सिन्हा का प्रचार केवल आरोपों पर आधारित है।
आंध्र की सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस और विपक्षी तेलुगु देशम पार्टी ने भी राजग उम्मीदवार के समर्थन का ऐलान किया है। चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि वे गर्व महसूस कर रहे हैं कि आदिवासी महिला पहली बार देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होगी। यह देश के लिए गौरव की बात भी होगी और तेलुगू देशम पार्टी उनका पूरा समर्थन करती है। बीजू जनता दल के नवीन पटनायक नेकहा कि एनडीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार पूर्वी राज्यों का गौरव हैं। दूसरी तरफ ऐसा लग रहा है जैसे यशवन्त सिन्हा केवल नरेन्द्र मोदी पर हमला करने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। वह कह रहे हैं कि इस वक्त संविधान के मूल्यों की रक्षा नहीं हो रही है। इस सरकार में संविधान के मूल्यों की अवहेलना की जा रही है। ऐसा ही चलता रहा तो संविधान नष्ट हो जाएगा। संविधान का कोई महत्व नहीं रहा। यशवंत सिन्हा को जम्मू कश्मीर का संवैधानिक सुधार और नागरिकता संशोधन कानून पसन्द नहीं है। देश इस विषय पर आगे बढ़ चुका हैं। अफगानिस्तान के उत्पीडित लोगों को भारत की नागरिकता मिल रही है। सिन्हा पुरानी व्यवस्था में अटके हैं। कह रहे हैं कि अनुच्छेद 370 का मामला 2019 में सुप्रीम कोर्ट में आया है, उसकी सुनवाई कब होगी, यह पता नहीं है। सीएए का कानून आया। उसके खिलाफ भी लोग कोर्ट में गए। उसकी कब सुनवाई होगी, इसका भी कुछ पता नहीं है। राहत की बात यह कि यशवंत सिन्हा के राष्ट्रपति बनने की संभावना नहीं है। (हिफी)