सावन और शिव

(मोहिता स्वामी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
हमारे देश मंे माना जाता है कि शिव ही सत्य है, शिव ही सुन्दर है। यह भी कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ को श्रावण अर्थात् सावन का महीना बहुत प्रिय लगता है। हिन्दू कलेण्डर के अनुसार पांचवां महीना सावन का होता है। इस बार 14 जुलाई से श्रावण महीने का प्रारम्भ हो रहा है। शिव पुराण के अनुसार सावन का महीना भगवान भोलेनाथ को इतना अच्छा लगता है कि वे माता पार्वती के साथ महीने भर पृथ्वी पर (भूलोक में) निवास करते हैं। सावन का महीना वर्षा ऋतु का दूसरा महीना माना जाता है और आषाढ़ में भले ही भरपूर बारिश न हुई हो लेकिन इतना पानी जरूर बरस जाता है कि धरती हरी-भरी नजर आने लगती है। भगवान भोलेनाथ को प्रिय विल्व वृक्ष (बेल का पेड़) हरी-हरी कोमल पत्तियों से सजा ऐसा लगता है कि जैसे कोई सुन्दरी हरी चूनरी ओढ़कर खड़ी हो। भगवान शिव आदिदेव हैं और वे सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने उनके लिए कहा है- आशुतोष तुम्ह अवढ़र दानी अर्थात् दान देने मंे आपका कोई पर्याय नहीं है। देवों के देव हैं क्योंकि समुद्र मंथन से जब हलाहल (विष) निकला तो उसे ग्रहण करने के लिए कोई तैयार नहीं था। उस प्रचण्ड जहर से पूरी सृष्टि झुलस सकती थी, इसलिए देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने उसे ग्रहण किया लेकिन गले के नीचे नहीं उतरने दिया। हलाहल की जलन उनके शरीर को परेशान न करे, इसलिए उनको विभिन्न पदार्थों जैसे दूध, दही, शहद, गन्ने के रस और शुद्ध जल से नहलाया गया। इसी रुद्राभिषेक की परपम्परा को हम आज भी मनाते हैं। सावन महीने मंे शिव परिवार की आराधना विशेष रूप से इसीलिए की जाती है।
धार्मिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव को सावन माह काफी प्रिय है। क्योंकि दक्ष की पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग कर कई वर्षों तक शापित जीवन जिया। इसके बाद हिमालयराज के घर में पुत्री के अवतार में जन्म लिया जहां उनका नाम पार्वती रखा गया। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने का दृढ़ निश्चय लिया। ऐसे में मां पार्वती ने कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके विवाह करने का प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इसके बाद सावन माह में ही शिव जी का विवाह माता पार्वती से हुआ था। सावन मास में भगवान शिव अपने ससुराल आए थे, जहां पर उनका अभिषेक करके धूमधाम से स्वागत किया गया था। इस वजह से भी सावन माह में अभिषेक का महत्व है।पौराणिक कथा के अनुसार, सावन मास में ही समुद्र मंथन हुआ था। इस मंथन से हलाहल विष निकला तो चारों तरफ हाहाकार मच गया। संसार की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने विष को कंठ में धारण कर लिया। विष की वजह से कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए। विष का प्रभाव कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित किया, जिससे उन्हें राहत मिली। इससे वे प्रसन्न हुए। तभी से हर साल सावन मास में भगवान शिव को जल अर्पित करने या उनका जलाभिषेक करने का रिवाज शुरू हो गया।
भगवान शिव एकमात्र ऐसे देवता हैं जो भक्तों के पूजन से अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि वे बहुत भोले हैं, इसलिए उन्हें भोले बाबा भी कहा जाता है। वैसे तो शिव की पूजा कभी भी की जा सकती है, लेकिन सावन के पूरे महीने में शिव पूजन करने के लिए सोमवार का दिन श्रेष्ठ माना जाता है। प्रकृति प्रफुल्लित होती हैं तब सावन आता है। सावन में भगवान शिव की पूजा की प्रक्रिया बहुत ही आसान है। आप घर पर भी आसानी से भगवान शिव की आराधना कर सकते हैं। शुभ योग में सावन के पहले सोमवार के दिन भगवान शिव को कच्चा दूध, गंगाजल, बेलपत्र, काले तिल, धतूरा, बेलपत्र, मिठाई आदि अर्पित करना चाहिए और विधिवत पूजा करनी चाहिए। शिव पुराण में कई चीजों से भगवान शिव के अभिषेक करने का फल बताया गया है। इसमें यह भी बताया गया कि किन चीजों से अभिषेक के क्या फायदे होते हैं। जलाभिषेक से सुवृष्टि, कुशोदक से दुखों का नाश, गन्ने के रस से धन लाभ, शहद से अखंड पति सुख, कच्चे दूध से पुत्र सुख, शक्कर के शर्बत व सरसों के तेल से शत्रु का नाश और घी के अभिषेक से सर्व कामना पूर्ण होती है। भगवान शिव की पूजा का सर्वश्रेष्ठ काल-प्रदोष समय माना गया है। किसी भी दिन सूर्यास्त से एक घंटा पहले और एक घंटा बाद के समय को प्रदोषकाल कहते हैं। सावन में त्रयोदशी, सोमवार और शिव चैदस प्रमुख हैं। भगवान शंकर को भष्म, लाल चंदन, रुद्राक्ष, आक के फूल, धतूरे का फल, बेलपत्र और भांग विशेष प्रिय हैं। उनकी पूजा वैदिक, पौराणिक या नाम मंत्रों से की जाती है। सामान्य व्यक्ति ऊँ नमः शिवाय या ऊँ नमों भगवते रुद्राय मंत्र से शिव पूजन और अभिषेक कर सकते हैं। भगवान शिव को सबसे प्रिय फल के रूप में धतूरा पसंद है। शिव को धतूरा प्रिय होने के पीछे संदेश यही है कि शिवालय मे जाकर शिवलिंग पर केवल धतूरा ही न चढ़ाएं, बल्कि अपने मन और विचारों की कड़वाहट भी शिवजी को अर्पित करें। ऐसा करने से ही शिवजी प्रसन्न होते हैं क्योंकि ‘शिव’ शब्द के साथ सुख, कल्याण व अपनत्व भाव भी जुड़े हैं।
सावन मंे ही भाई बहन के अटूट प्रेम का प्रतिक रक्षा बंधन, सुहागिन स्त्रियों का प्रमुख पर्व हरियाली तीज, इसके अलावा नाग पंचमी त्योहार मनाए जाते हैं। सबसे खास बात ये है कि महादेव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए ये माह सबसे उत्तम माना जाता है। इस माह में शिव शम्भू की विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है इस माह में शिव की उपासना से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सावन माह में पूरे दिन अधिक से अधिक समय शिवजी का ध्यान करें।सावन में हर सोमवार को विधि-विधान से भोलेनाथ की पूजा करें। इसके लिए सूर्योदय से पहले जागें और स्नान कर शिवलिंग पर दूध चढ़ाकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद पुष्प
अर्पित करें और साबुत बेल पत्र अर्पित करें। आरती जरूर करें।सावन माह में संभव हो तो रुद्राक्ष की माला धारण करें। इसके अलावा सुबह और शाम के समय पूजा के अंतिम समय में रुद्राक्ष की माला से ही शिव मंत्र जाप करें। (हिफी)