लेखक की कलम

झारखंड में एकजुटता की अग्निपरीक्षा

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

कांग्रेस के लिए अगर कहा जाए कि रस्सी जल गयी लेकिन ऐंठन नहीं गयी। एक-एक करके सभी राज्य चले गये और नेता भी साथ छोड़ गये। राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकार बची है। झारखंड, महाराष्ट्र और तमिलनाडु मंे दूसरे दलों की दयादृष्टि से सत्ता का सुख मिल रहा है। इन राज्यों मंे कांग्रेस के नेता अकड़ दिखा रहे हैं। राज्यसभा चुनाव को लेकर झारखंड मंे हेमंत सोरेन की सरकार के साथ कांग्रेस की एकजुटता की अग्नि परीक्षा होनी है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने अपना दावा पेश किया। उन्हांेने उम्मीद जतायी कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) बड़े भाई की भूमिका निभाएगा। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दिल्ली जाकर श्रीमती सोनिया गांधी से मुलाकात भी की थी। जाहिर है कि हेमंत सोरेन ने उन्हंे अपनी बात बतायी होगी। इसलिए कांग्रेस नेता दीपिका सिंह को इस तरह की बयानबाजी नहीं करनी चाहिए। उन्हांेने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा गठबंधन धर्म का पालन किया है और जेएमएम को भी गठबंधन धर्म का पालन करना चाहिए। उन्हांेने राज्य मंे भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर मुख्य विपक्षी भाजपा को आलोचना का मुद्दा भी थमा दिया है। कांग्रेस विधायक कहती हैं कि वे महुआ माजी के नाम पर तैयार नहीं हैं। इस प्रकार के बयान से ऐसा लगता है कि झारखंड मंे कांग्रेस और झामुमो के बीच दरार चैड़ी हो गयी है। झामुमो ने राज्यसभा के लिए महुआ माजी के नाम की घोषणा कर दी है।
राज्यसभा सभा चुनाव को लेकर झारखंड की सियासत उफान पर है। कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडे ने कहा कि कांग्रेस ने शुरू से ही अपना रुख स्पष्ट रखा था कि इस गठबंधन से उम्मीदवार सर्वसम्मति से चुना जाएगा। झारखंड के सीएम ने भी इस पर चर्चा की थी। उन्होंने कहा कि हो सकता है गलतफहमी हो गई हो क्योंकि झामुमो प्रत्याशी की ये घोषणा एकतरफा है। मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस ने पिछले 2 वर्षों में कभी भी अनौपचारिक मांग की है।
उन्होंने कहा कि हमें अब भी लगता है कि इस गठबंधन को बेहतर तालमेल और ताकत के साथ काम करना चाहिए। राज्यसभा तो सिर्फ एक पड़ाव है, राज्य के लाभ के लिए अगले 2 साल में कई चुनौतीपूर्ण कार्य आएंगे। स्वाभाविक रूप से कांग्रेस इस फैसले से नाराज है क्योंकि हमें एक चर्चा और विश्वास की उम्मीद थी। मैं झारखंड में अपने कार्यकर्ताओं, नेताओं और विधायकों की शिकायतें सुनूंगा और साथ ही सीएम हेमंत सोरेन के साथ इस मामले पर चर्चा करने का भी प्रयास करूंगा। वहीं कांग्रेस विधायक दीपिका सिंह पांडे ने ट्वीट किया था- विनाश काले विपरीत बुद्धि। उन्होंने फिर ट्वीट कर कहा कि प्रदेश में एक नए तरह की राजनीति चल रही आप जिसके साथ मिलकर सरकार चला रहें उसके साथ ही छल कर रहे हैं। आप पर जांच का दबाव है हम भी जानते हैं लेकिन गठबंधन धर्म के नाम पर अधर्म बर्दाश्त नहीं होगा। दीपिका पांडे ने कहा कि सोनिया गांधी से मुलाकात करने के बाद हेमंत सोरेन को चाहिए था कि कांग्रेस के उम्मीदवार पर विचार करें, उम्मीदवार साझा होना चाहिए था लेकिन, उन्होंने गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया। उन्होंने कहा कि झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा बिलकुल मौन है। मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द और सीएमओ में कई लोग ऐसे हैं जो विकास कार्यों को अवरुद्ध किए हुए हैं। दीपिका सिंह ने यह भी कहा कि राज्य में भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है। बेवजह कांग्रेस की बदनामी हो रही है। प्रत्येक दिन ईडी सीबीआई के छापे मारे जा रहे हैं। इससे राज्य की छवि धूमिल हो रही है। कांग्रेस विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह ने भी जेएमएम पर सवाल उठाते हुए कहा कि कांग्रेस से बिना बातचीत किए ही जेएमएम ने उम्मीदवार घोषित किया है। गठबंधन धर्म झारखंड मुक्ति मोर्चा को निभाना है।
झारखंड में राज्यसभा की दो सीटों पर होने वाले चुनाव में सत्ताधारी दल के अंदर एकजुटता की अग्निपरीक्षा होने जा रही है। महागठबंधन के अंदर से कांग्रेस की उम्मीदवारी के दावे ने जेएमएम की मुश्किलें बढ़ा दी थीं। पहले से सरकार पर भ्रष्टाचार के लग रहे आरोप के बीच राज्यसभा चुनाव में सहयोगी दल को रूठने से रोकने की कोशिश की गयी। हालांकि पिछली बार भले ही जेएमएम अध्यक्ष शिबू सोरेन राज्यसभा की सीट जीतने में कामयाब हुए हों, पर उस चुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार भी मैदान में था।
इस बार बीजेपी की तरफ से तो उम्मीदवारी को लेकर कोई अगर या मगर नहीं थी, पर महागठबंधन के अंदर उम्मीदवारी के सवाल पर घमासान जरूर मचा। पहली वरीयता के उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस ने दावा ठोक दिया था। प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने पिछले राज्यसभा चुनाव का उदाहरण देते हुए इस बार मौका कांग्रेस को मिलने की बात कही थी। कांग्रेस का ये भी कहना है कि पिछली बार मुख्यमंत्री की सहमति से ही कांग्रेस का उम्मीदवार मैदान में उतारा गया था। जेएमएम को बड़े भाई का फर्ज निभाते हुए बड़ा दिल दिखाना होगा। यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि बगैर जेएमएम के सहयोग के कांग्रेस का उम्मीदवार जीत नहीं सकता था, जबकि जेएमएम की जीत के लिए कांग्रेस का समर्थन जरूरी नहीं।
इस प्रकार झारखंड में राज्यसभा चुनाव दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुका है। राजनीतिक परिस्थितियां इस बात का संकेत कर रही है झारखंड में एक और निर्विरोध चुनाव संपन्न होगा। झारखंड मुक्ति मोर्चा और भाजपा की ओर से एक-एक उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। ऐसे में मतदान की नौबत नहीं आएगी और दोनों दलों के प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिए जाएंगे।
झारखंड में पहली बार वर्ष 2004 में निर्विरोध निर्वाचन हुआ था जब भाजपा के यशवंत सिन्हा और झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्टीफन मरांडी चुनाव मैदान में अपने अपने दल के प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे। दूसरी बार वर्ष 2006 में कांग्रेस के मोबाइल रिविलों और भाजपा के एसएस अनिवार्य निर्विरोध निर्वाचित होकर राज्यसभा पहुंचे थे। झारखंड में राज्यसभा चुनाव को लेकर जो राजनीतिक परिस्थितियां उभरी है यह कोई अप्रत्याशित नहीं है। राज्यसभा चुनाव को लेकर अभी तक एक गठबंधन का और एक विपक्ष की तरफ से उम्मीदवार घोषित किया गया है।
संविधान के मुताबिक, राज्यसभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है, जिसमे 238 सदस्यों के लिए चुनाव का प्रावधान है जबकि 12 सदस्य राष्ट्रपति नॉमिनेट करते हैं, हर दो साल में से एक तिहाई सदस्यों
का कार्यकाल खत्म भी होता है,
जिसके बाद उनकी सीटों के लिए
चुनाव होता है, इसका मतलब है कि प्रत्येक दो साल पर राज्यसभा के एक तिहाई सदस्य बदलते हैं न कि यह सदन भंग होता है। यानी राज्यसभा हमेशा बनी रहती है। राज्यसभा
चुनाव की प्रक्रिया लोकसभा और
विधानसभा चुनाव से अलग है क्योंकि उसके सदस्य का कार्यकाल 6 साल का होता है। (हिफी)

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