रेवंत रेड्डी के बयान से हलचल

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
आंध्र प्रदेश से बने राज्य तेलंगाना मंे मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने कांग्रेस को एक नई उलझन में फंसा दिया है। तेलंगाना की आबादी मंे 85 फीसद हिन्दू हैं। दूसरे स्थान पर इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग हैं जिनकी संख्या 12.7 फीसद है। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने ईसाई धर्म का महिमा मंडन क्रिसमस से पहले किया है जबकि उनकी आबादी सिर्फ
1.3 फीसद बतायी जा रही है। कांग्रेस के प्रभावशाली नेता रहे अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी ने अपना व्यापक राजनीतिक प्रभाव छोड़ा था। उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी भी मुख्यमंत्री रहे हैं। आंध्र प्रदेश मंे उनसे सत्ता तेलुगुदेशम पार्टी ने छीन ली है। इसलिए रंवेत रेड्डी का बयान कांग्रेस को तेलंगाना में सियासी फायदा पहुंचाने की जगह, उलझन मंे ही डालेगा। भाजपा इसे जोर-शोर से उठाएगी। इसके माध्यम से सोनिया गांधी को भी निशाने पर लिया जा सकता है। कांग्रेस पर मुस्लिम परस्ती का आरोप पहले से ही लग रहा है, अब रेवंत रेड्डी ने ईसाई परस्ती का आरोप भी चस्पा करने का प्रयास किया है। तेलंगाना का नए राज्य के रूप में 2013 में गठन हुआ था। लगभग एक दशक बाद कांग्रेस पहली बार वहां सरकार बनाने में सफल हुई। तेलंगाना मंे जातिगत जनगणना भी करायी जा रही है। राज्य की 119 सदस्यीय विधानसभा मंे कांग्रेस को 64, बीआरएस को 39 और भाजपा को 8 विधायक मिले हैं।
देश में धर्म के आधार पर राजनीति अब कोई नई बात नहीं है। हर दल धर्म के नाम पर खुलकर राजनीति कर रहे हैं। इस बीच खुद को सांप्रदायिकता से लड़ने वाली सबसे प्रमुख पार्टी होने का दावा करने वाली कांग्रेस के एक बड़े नेता के बयान से बवाल मचना तय है। यह नेता कोई और नहीं बल्कि राहुल गांधी के करीबी और तेलंगाना से सीएम ए. रेवंत रेड्डी हैं। तेलंगाना के सीएम ने एक बयान दिया है। उसमें उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी की योजनाएं ईसाई मिशनरियों से प्रभावित हैं। उन्होंने अपनी सरकार की मुफ्त योजनाओं, राजीव आरोग्य और खाद्य सुरक्षा योजना की गिनती करवाई। उन्होंने कहा की ईसाई मिशनरियों का लक्ष्य लोगों को निशुल्क शिक्षा और स्वास्थ्य उपलब्ध करवाना है। अब सवाल उठता है कि रेवंत रेड्डी अपनी इस बात से कहना क्या चाहते हैं। तेलंगाना एक हिंदू बहुल राज्य है। यहां की आबादी में 85 फीसदी हिंदू हैं। मुस्लिमों की हिस्सेदारी करीब 12.7 फीसदी है। वहीं ईसाई धर्म के मानने वाले 1.3 फीसदी है। ऐसे में ईसाई धर्म का महिमामंडन करना कितना उचित है। वह भी वहां जहां की आबादी में उनकी हिस्सेदारी महज 1.3 फीसदी है।
राज्य के मेडक जिले में 25 दिसम्बर को कई विकास कार्यों की आधारशिला रखते हुए उन्होंने ये बातें कही। उन्होंने मेडक कैथेड्रल के विकास के लिए 35 करोड़ और जिले के लिए अन्य 192 करोड़ की योजनाओं का शिलान्यास किया। इसमें एदुपयाला मंदिर का विकास भी शामिल है। रेवंत रेड्डी मेडक कैथेड्रल के कार्यक्रम में शामिल हुए। क्रिस्मस के मौके पर चर्च में आयोजित विशेष प्रार्थना सभा में उन्होंने कहा कि मेडक की चर्च से उनका विशेष लगाव है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने इन जगहों का दौरा किया था। उन्होंने यहां आकर आशीर्वाद मांगा था। उस वक्त उन्होंने वादा किया था कि सीएम बनने के बाद वह फिर इस चर्च में आएंगे। उन्होंने आगे कहा कि वह यहां आकर काफी खुश है। वह चर्च में अन्य लोगों के साथ क्रिस्मस का त्योहार मना रहे हैं। इस मौके पर उन्होंने राज्य के ईसाई समुदाय को क्रिस्मस की ढेर सारी शुभकामनाएं दी। मेडक की इस चर्च को बने हुए 100 साल हो गए हैं
रेवंत रेड्डी ने कहा कि राज्य की कांग्रेस की सरकार गरीब लोगों के लिए है। उनकी सरकार की इंदिरा मां हाउसिंग स्कीम का सबसे ज्यादा फायदा दलित और आदिवासी ईसाई समुदाय को मिलने वाला है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने 200 यूनिट तक बिजली फ्री कर दी है। इससे भी इस समुदाय को बड़ी राहत मिल रही है। इससे पहले मुख्यमंत्री ने एदुपयाला वाना दुर्गा भवानी मंदिर का दौरा किया और वहां पर पूजा अर्चना की। उन्होंने कहा कि ईसाई मिशनरियों की पहचान गरीब लोगों को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवाना है। कांग्रेस की सरकार का भी नजरिया पूरी तरह ऐसा ही है।
यह भी ध्यान रहे कि तेलांगना सरकार के द्वारा जातिगत जनगणना शुरू हो चुकी है। इससे पहले बिहार, राजस्थान और कर्नाटक भी जाति के आधार पर जनगणना करा चुके हैं। कहा जा रहा है कि इस जातिगत जनगणना का उद्देश्य तेलंगाना की पूरी आबादी की सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, रोजगार, राजनीतिक और जातिगत स्थिति का आंकलन करना है। इसके हिसाब से सरकार आबादी के अनुसार हिस्सेदारी देगी।
माना जा रहा है कि जाति जनगणना कराने का उद्देश्य तेलंगाना की पूरी आबादी की हर तरह की स्थिति का आकलन करना है। इसके आधार पर तेलंगाना सरकार हिस्सेदारी देगी। इसके अलावा राज्य की पूरी आबादी की सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, राजनीतिक और जातिगत स्थिति के आधार पर योजनाएं बनाई जाएंगी और इसके साथ ही सरकार अति पिछड़े समाज के लोगों के लिए 42 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव लाएगी। तेलंगाना जाति जनगणना एक व्यापक डोर-टू-डोर सर्वेक्षण के रूप में आयोजित की जा रही है। इसमें राज्य के सभी 33 जिले शामिल हैं। इस महत्वपूर्ण अभ्यास का उद्देश्य असमानताओं को दूर करने और
समावेशी नीतियों को आकार देने के लिए विस्तृत जाति-आधारित डेटा एकत्र करना है। सर्वेक्षण प्रश्नावली में
परिवार की जनसांख्यिकी, आय, व्यवसाय, शिक्षा के स्तर, कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंच, भूमि स्वामित्व और राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर जानकारी प्राप्त करने के लिए 56 प्रश्न पूछे जा रहे हैं।
सटीक डेटा संग्रह सुनिश्चित करने के लिए गणनाकर्ता प्रत्येक घर का दौरा कर रहे हैं, जबकि क्षेत्र-स्तरीय अधिकारी पारदर्शिता और दक्षता बनाए रखने के लिए प्रक्रिया की निगरानी कर रहे है। इस पहल ने व्यापक सार्वजनिक भागीदारी प्राप्त की है, जिसमें कार्यकर्ता नागरिकों द्वारा उठाए गए किसी भी प्रश्न या चिंता का सक्रिय रूप से समाधान कर रहे हैं। तेलंगाना, खासतौर पर हैदराबाद में ज्यादातर लोग विदेश में रहते हैं। ऐसे लोगों पर जनगणना में आकर हिस्सा लेने का कोई दबाव नहीं है। अगर उनके परिवार का कोई सदस्य यहां मौजूद है, तो उसकी मदद से वे जाति जनगणना में हिस्सा ले सकते हैं। अगर कोई ऐसा व्यक्ति है जिसका कोई नहीं है, तो सरकार ऐसे परिवारों के लिए उपाय खोज रही है कि कैसे ऐसे परिवारों को जनगणना में शामिल किया जाए। लोगों को ये गलतफहमी है कि जनगणना के आधार पर कई योजनाओं का लाभ उनसे छीन लिया जाएगा जोकि
बिल्कुल गलत है। इस जनगणना की गोपनीयता की राज्य सरकार की पूरी जिम्मेदारी है। बहरहाल, जनगणना का मामला तो राहुल गांधी से भी जुड़ा है जो संसद में भी जोरदार ढंग से कह चुके हैं लेकिन ईसाई धर्म के महिमा मंडन से क्या हासिल होगा ये समझ से परे लगता है। (हिफी)