नीतीश को बिहार से बाहर भेजने की रणनीति!

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
बिहार मंे नीतीश कुमार सबसे महत्वपूर्ण नेता हैं, अब इस पर सवाल उठाया जाने लगा है। इसमंे कोई दो राय नहीं कि उन्हांेने राज्य मंे लालू यादव के दुर्गम सियासी किले को तोड़कर सत्ता पर ऐसा कब्जा जमाया कि सभी का रिकार्ड तोड़ दिया। इस बार भाजपा के साथ नीतीश की सरकार तो बनी लेकिन विधायक भाजपा के ज्यादा हैं। भाजपा इसका एहसास भी कराया करती है। पिछले कुछ महीनों से ऐसी चर्चा शुरू होती है जिससे लगता कि नीतीश कुमार को बिहार की राजनीति से बाहर भेजा जा रहा है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब कहा गया कि नीतीश कुमार को राज्यसभा मंे भेजा जाएगा। नीतीश कुमार की पार्टी ने इसका खंडन किया। अब कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार को देश का अगला राष्ट्रपति बनाया जा सकता है। मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी बिहार के राज्यपाल पद पर तैनात थे। बहरहाल, नीतीश कुमार ने इस बार भी साफ-साफ लहजों मंे कहा है कि वह राष्ट्रपति पद की दौड़ मंे शामिल नहीं हैं। सभी की अटकलें लग रही हैं कि इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रपति की कुर्सी पर किसे बैठाना चाहते हैं।
उधर, नीतीश कुमार भी भाजपा को जवाब देते हुए जनसमर्थन भी जुटा रहे हैं।
देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा, इस सवाल का जवाब देश की जनता के साथ-साथ सियासी जगत के लोग भी जानना चाहते हैं लेकिन इसी बीच बिहार के सीएम नीतीश कुमार के नाम की चर्चा जब तेज हुई इस मामले पर खुद नीतीश कुमार आगे आए और सफाई दी। उन्होंने साफ-साफ लहजे में कहा कि वो इस रेस में कहीं से भी नहीं हैं। नीतीश कुमार ने पटना में कहा कि पता नहीं इस तरह की खबरें कहां से आ जाती हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 25 जुलाई 2022 को खत्म हो रहा है। राष्ट्रपति पद के प्रत्याशियों के नामों को लेकर मंथन भी शुरू हो चुका है। इस बीच राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के लिए चार नामों को लेकर सबसे अधिक चर्चा है। इनमें एक आदिवासी चेहरा द्रोपदी मुर्मू है। नीतीश का नाम भी उछाला गया है।
मुख्यमंत्री का जनता दरबार खत्म होने के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान नीतीश कुमार ने खुद के राष्ट्रपति उम्मीदवार की चर्चा के सवाल पर जो जवाब दिया उससे तस्वीर बिल्कुल साफ हो गई। नीतीश कुमार ने कहा कि न तो मेरी कोई ऐसी इच्छा है और न ही मैं राष्ट्रपति के पद का दावेदार हूं। राष्ट्रपति चुनाव में किसे समर्थन देंगे इस सवाल पर भी नीतीश कुमार ने तस्वीर साफ करने की कोशिश की और कहा कि अभी तो कोई नाम हीं किसी का नहीं आया है राष्ट्रपति की उम्मीदवारी के लिए। जब किसी का नाम आएगा तब वार्ता होगी, अभी इस पर क्या बोला जाए। नीतीश कुमार ने कहा कि राष्ट्रपति चुनाव में हमने इसके पहले भी अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट दिया था। अभी तक तो किसी ने मुझसे बात नहीं की है, कि अभी कौन उम्मीदवार होंगे एक होंगे या उससे ज्यादा होंगे। जब ऐसा मसला आएगा तब देखा जाएगा। ममता बनर्जी की तरफ से राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार देने की तैयारी पर नीतीश कुमार ने कहा कि अभी तो कोई नाम आया ही नहीं है। ये लोकतंत्र है और सभी स्वतंत्र हैं।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सहयोगी बीजेपी के इस रुख का समर्थन नहीं किया कि मुस्लिम आक्रमणकारियों के बजाय मुस्लिम आक्रमण का विरोध करने वाले हिंदू राजाओं पर अधिक जोर देते हुए इतिहास को पुनः लिखा जाना चाहिए। दरअसल केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक चिकित्सकीय पेशेवर की पुस्तक के विमोचन के दौरान इतिहास में बदलाव को लेकर हाल में एक बयान देकर खास कर अकादमिक सत्र में एक बहस शुरू कर दी है। सीएम नीतीश कुमार से जब इस बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि आप इतिहास कैसे बदल सकते हैं? क्या ऐसा करना संभव है? जो मौलिक इतिहास है उसे कोई कैसे बदल सकता है।
भाजपा के विधायक हरिभूषण ठाकुर बचैल ने पिछले वर्ष सुझाव दिया था कि राजधानी पटना के बाहरी इलाके में स्थित बख्तियारपुर शहर का नाम नीतीश कुमार के नाम पर रखा जाए। बख्तियारपुर नीतीश कुमार का जन्मस्थान है। सीएम नीतीश ने इस सुझाव को ‘फालतू बात’ बताते हुए खारिज कर दिया था। उत्तर प्रदेश के रहने वाले नाटककार दया प्रकाश सिन्हा द्वारा सम्राट अशोक और मुगल बादशाह औरंगजेब का एक समानांतर चित्रण किए जाने के खिलाफ जेडीयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा ने भी निरंतर अभियान चलाया था, जिसमें सिन्हा के बीजेपी से संबंध होने का आरोप लगाया गया था और उन्हें दिए गए साहित्यिक सम्मान को वापस लेने की मांग की गई थी। सिन्हा को इस साल साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया है। बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने दया प्रकाश सिन्हा के पार्टी से जुड़े होने के दावों को झूठा बताते हुए सम्राट अशोक के बारे में की गयी उनकी टिप्पणी को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद प्रतीत हुआ था कि इस बात को लेकर बीजेपी और जेडीयू के बीच विवाद को विराम लग गया था,
लेकिन मुख्यमंत्री के हालिया रुख से पता चलता है कि बीजेपी के साथ उनका गठबंधन भले ही अपने चैथे दशक में प्रवेश कर रहा हो, लेकिन वैचारिक मतभेद पूर्व की भांति ही कायम है।
इसीलिए नीतीश जनाधार भी पक्का कर रहे हैं। बिहार के सभी नवनिर्वाचित पंचायत जनप्रतिनिधियों का चुनाव के बाद अब तक प्रशिक्षण नहीं होने से सवाल खड़े हो रहे हैं, मगर अब इनका प्रशिक्षण होना तय हो गया है। नवनिर्वचित सभी जनप्रतिनिधियों का प्रशिक्षण 16 जून से शुरू होगा। इस प्रशिक्षण शिविर में सभी मुखिया, सरपंच, वार्ड पार्षद, पंच, सहित सभी छह पदों पर निर्वचित जनप्रतिनिधियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। बिहार भर से लगभग 8,000 जनप्रतिनिधियों का निर्वाचन हुआ है, इन सभी का अलग-अलग तारीख पर कई दिन तक प्रशिक्षण शिविर चलेगा। खास बात है कि पंचायत जनप्रतिनिधियों के सम्मेलन को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संबोधित करेंगे। सीएम नीतीश कुमार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सभी जनप्रतिनिधियों को संबोधित करेंगे। वो इन्हें विकास और लोगों के लिए काम करने के टिप्स देंगे। मुख्यमंत्री सात निश्चय के तहत बिहटा के गांवों के विकास के लिए बनाये रोडमैप को पूरा करने और पंचायत स्तर तक के उत्थान का टिप्स देंगे। नवनिर्वाचित मुखिया और तमाम पंचायत जनप्रतिनिधियों का प्रशिक्षण नहीं होने के कारण विकास का काम शुरू नहीं हुआ है। मुखिया सहित तमाम जनप्रतिनिधियों का भले ही प्रशिक्षण नहीं हुआ है, मगर शासन के द्वारा सभी प्रतिनिधियों को हथियार देने का निर्देश जारी हो चुका है। पंचायती राज मंत्री सम्राट चैधरी ने पिछले महीने निर्देश जारी किया था। इस तरह नीतीश भी मोर्चाबंदी कर रहे हैं। (हिफी)