लेखक की कलम

धारा 124-ए पर सुप्रीम विश्वास

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

अर्से से विवाद का विषय बनी इंडियन पेनल कोड (आईपीसी) की धारा 124ए पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने फिलहाल अस्थायी रूप से रोक लगा दी है। इससे कांग्रेस समेत विपक्षी दलों को बहुत ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि केन्द्र सरकार इस धारा के पक्ष मंे खड़ी है। यह धारा किसी भी व्यक्ति को राजद्रोह का अपराधी बनाती है और इसके राजनीतिक दुरुपयोग का आरोप लगाया जा रहा था। सुप्रीम कोर्ट इस पर इसी वर्ष जुलाई मंे फिर सुनवाई करेगा। इस बीच देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा है कि हम आशा और विश्वास करते हैं कि केन्द्र और राज्य आईपीसीसी धारा 124ए के तहत कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने से परहेज करेंगे। यहां पर ध्यान देने की बात है कि ब्रिटिश राज मंे स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज दबाने के लिए राजद्रोह का ये कानून बनाया गया था। आईपीसी की धारा 124ए में राजद्रोह को परिभाषित भी किया गया है। इसके मुताबिक कोई भी व्यक्ति किसी तरह से चाहे बोलकर या लिखकर या किसी संकेत से या फिर किसी अन्य तरीके से कानून के तहत बनी सरकार के खिलाफ विद्रोह या असंतोष या विरक्ति जाहिर करता है या ऐसी कोशिश करता है तो दोषी पाये जाने पर उसे उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। भारतीय दंड संहिता जब बनायी गयी तो उसके मसौदे मंे राजद्रोह कानून था लेकिन 1860 में जब आईपीसी आया तो राजद्रोह को हटा दिया गया। इसके बाद 1870 मंे आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) संशोधन के तहत जोड़ी गयी। निश्चित रूप से आज ब्रिटिश काल से परिस्थितियां भिन्न हैं। हमारा देश आजाद है लेकिन क्या भारत तेरे टुकड़े होंगे, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने की छूट दी जा सकती है? हमें सुप्रीम कोर्ट के विश्वास को समझना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को राजद्रोह कानून पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों को राजद्रोह के नए केस दर्ज नहीं करने को भी कहा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई के तीसरे हफ्ते में होगी। कोर्ट ने साथ ही कहा कि इस दौरान केंद्र सरकार राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दिशानिर्देश दे सकती है।
इस दौरान अदालत में एक प्रश्न उठाया गया कि जिन पर राजद्रोह के मामले चल रहे हैं, उनका क्या होगा? इसका जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन पर राजद्रोह का केस चल रहा है और जो जेल में हैं वो जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। उन पर कार्रवाई पहले की तरह चलती ही रहेगी। ये कोर्ट पर निर्भर करेगा कि आरोपियों को जमानत दी जाती है या नहीं।
इसी तरह सवाल था कि अगर फिर भी केस दर्ज हो जाता है तो ? इसके जवाब में हालांकि, शीर्ष अदालत ने नए मामले दर्ज करने पर रोक
लगा दी है लेकिन अगर फिर भी
कोई केस दर्ज होता है तो उसके लिए भी रास्ता निकाल दिया है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई केस फिर भी दर्ज हो जाता है तो आरोपी शख्स सुप्रीम कोर्ट के आज के ऑर्डर को लेकर निचली अदालत का रुख कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान जब जजों ने पूछा कि कितने लोग राजद्रोह के आरोप में जेल में हैं तब वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि 13 हजार लोग जेल में हैं। सेक्शन 124(ए) की वास्तविक स्थिति यह है कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को स्थगित किया है इसलिए इस कानून की लीगल वैलिडिटी खत्म नहीं हुई है। यह कानून पूर्ववत बना हुआ है। जेएनयू के छात्र रहे उमर खालिद पर भी विश्वविद्यालय परिसर में देशविरोधी नारे के लिए राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था। चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि जिन लोगों पर राजद्रोह का केस चल रहा है और जो जेल में हैं वो निचली अदालतों का रुख जमानत के लिए कर सकते हैं। ऐसे में खालिद भी इस मामले में निचली अदालत जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुनाते हुए केंद्र और राज्यों से आईपीसी की धारा 124ए के तहत कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने से परहेज करने का आग्रह किया है। भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए में राजद्रोह को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार, अगर कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है। इसके अलावा अगर कोई शख्स देश विरोधी संगठन के खिलाफ अनजाने में भी संबंध रखता है या किसी भी प्रकार से सहयोग
करता है तो वह भी राजद्रोह के दायरे में आता है। यह कानून ब्रिटिश काल का है। इसे 1870 में लाया गया था। सरकार के प्रति डिसअफेक्शन रखने वालों के खिलाफ इसके तहत चार्ज लगाया जाता है। राजद्रोह के मामले में दोषी पाया जाना वाला व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता है।
राजद्रोह पर फिलहाल कोई नया केस दर्ज नहीं होगा। चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने राजद्रोह कानून पर अंतरिम आदेश देते हुए इसे निलंबित कर दिया है। इससे पहले केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राजद्रोह कानून पर रोक न लगाई जाए, संवैधानिक बेंच ने कानून को वैध ठहराया है।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि संज्ञेय अपराध को दर्ज करने से रोका नहीं जा सकता है, इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार एक दिशानिर्देश जारी कर सकती है। मसौदा तैयार कर लिया गया है। इस तरह के अपराध पर सरकार या कोर्ट का अंतरिम आदेश के जरिए स्टे लगाना उचित अप्रोच नहीं हो सकता है। इसलिए हमने कहा है कि एक जिम्मेदार अधिकारी होगा जो इसकी जांच करेगा। कपिल सिब्बल ने कहा इसे खत्म कर देना चाहिए। बीच की अवधि में इस पर रोक लगनी चाहिए। जस्टिस कांत ने इस पर कहा कि प्लीज हवा में बहस मत कीजिए। क्या हम इसे आज खत्म कर सकते हैं? सिब्बल ने जवाब दिया कि मेरा यह कहना है कि आप प्रथमदृष्टया इस पर रोक लगा सकते हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कोई भी आरोपी कोर्ट नहीं पहुंचा है। इस पर विचार करना खतरनाक नजीर बनेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार भी कोर्ट की राय से सहमत है कि सेक्शन 124ए के प्रावधान आज के सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं
हैं। इसके बाद आदेश पढ़ते हुए कोर्ट
ने कहा कि हमें उम्मीद और भरोसा
है कि केंद्र और राज्य सेक्शन 124ए
के तहत कोई केस दर्ज करने से
बचेंगे। (हिफी)

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