लेखक की कलम

अदालत ने फिर दी नेताओं को नसीहत

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

लोकतंत्र के प्रथम स्तम्भ न्यायपालिका का कार्य संविधान की रक्षा करना है। संविधान से इतर विधायिका के प्रतिनिधि विधायक-सांसद जब कोई कार्य कर रहे होते हैं, तब न्यायपालिका को उन्हें भी नसीहत देनी पड़ती है। अभी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों को जीप से कुचलने के मामले मंे अदालत ने नेताओं को बयान जारी पर संयम रखने को कहा। कोर्ट ने कहा कि यदि वहां के सांसद किसानों के विरोध में सार्वजनिक रूप से न बोले होते तो संभवतः किसान प्रदर्शन ही नहीं करते। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ ने केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र उर्फ टेनी ने किसानों के खिलाफ कटु वक्तव्य न दिये होते तो ऐसी घटना न होती। इसी प्रकार पंजाब में जब प्रधानमंत्री की गाड़ी बीच सड़क पर रोकनी पड़ी थी, तब भी कोर्ट ने राज्य सरकार और भाजपा के नेताओं के बयानांे पर ऐतराज जताया था और कहा कि इससे मूल समस्या पीछे छूट जाती है। कर्नाटक मंे हुए हिजाब विवाद पर भी कोर्ट को इसी प्रकार की नसीहत नेताओं को देनी पड़ी थी। सच्चाई तो यह है कि कोर्ट काफी पहले से नेताओं को नसीहत दे रहा है। राज्यों और केन्द्र सरकार को भी कोर्ट ने नसीहत दी है लेकिन ज्यादातर नसीहतों को अनसुना ही कर दिया गया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा उर्फ टेनी के पुत्र आशीष मिश्रा उर्फ मोनू की कथित संलिप्तता वाली लखीमपुर खीरी हिंसा के चार आरोपियों- लवकुश, अंकित दास, सुमित जायसवाल और शिशुपाल की जमानत याचिका खारिज कर दी। इस बीच आशीष मिश्र की जमानत याचिका पर सुनवाई 25 मई तक के लिए टाल दी गई। न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने चारों आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा कि ये सभी मुख्य आरोपी आशीष के साथ सक्रिय रूप से योजना बनाने एवं इस जघन्य कांड को अंजाम देने में शामिल रहे थे।अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले के सभी आरोपी राजनीतिक रूप से अत्यधिक प्रभावशाली हैं, अतः जमानत पर छूटने के बाद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि वे साक्ष्यों से छेड़छाड़ नहीं करेंगे और गवाहों को प्रभावित नहीं करेंगे। पीठ ने एसआईटी (विशेष जांच दल) के इस निष्कर्ष को भी ध्यान में रखा कि यदि केंद्रीय मंत्री टेनी ने कुछ दिन पहले किसानों के खिलाफ जनता के बीच कुछ कटु वक्तव्य न दिये होते तो ऐसी घटना न होती। पीठ ने कहा कि उच्च पदों पर बैठे हुए राजनीतिक व्यक्तियों को जनता के बीच मर्यादित भाषा में बयान देना चाहिए और उन्हें अपने पद की गरिमा का ख्याल रखना चाहिए।अपने आदेश में पीठ ने कहा कि जब उस क्षेत्र में धारा 144 लागू थी तो केंद्रीय मंत्री के गांव में कुश्ती प्रतियोगिता को रद्द न किया जाना प्रशासनिक अनदेखी है। अदालत ने यह भी कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि उपमुख्यमंत्री को क्षेत्र में धारा 144 लागू होने का ज्ञान न रहा होगा तो भी उन्होंने और केंद्रीय मंत्री ने कुश्ती प्रतियोगिता में शामिल होने का निर्णय लिया। दूसरी ओर मामले के मुख्य आरोपी आशीष की जमानत अर्जी जस्टिस कृष्ण पहल की एकल पीठ के सामने लगी थी किन्तु उस पर सुनवाई टल गयी।
गौरतलब है कि आशीष की मंजूर जमानत उच्चतम न्यायालय ने 18 अप्रैल को खारिज कर दी थी और मामले को वापस उच्च न्यायालय को नये सिरे से सुनवाई के लिए भेज दिया था। उच्च न्यायालय ने 10 फरवरी को मिश्रा को जमानत दे दी थी, जिसने चार महीने हिरासत में बिताए थे। जमानत खारिज होने के बाद आशीष मिश्रा ने अदालत में समर्पण कर दिया था।पिछले साल तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी जिले के तिकुनिया थानाक्षेत्र में हिंसा के दौरान आठ लोगों की मौत हो गई थी। यह घटना तब हुई जब केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलित किसान उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इलाके के दौरे का विरोध कर रहे थे। उत्तर प्रदेश पुलिस की प्राथमिकी के अनुसार चार किसानों को एक एसयूवी ने कुचल दिया, जिसमें आशीष मिश्रा बैठे थे। घटना के बाद गुस्साए किसानों ने चालक और दो भाजपा कार्यकर्ताओं की कथित तौर पर पीट-पीट कर हत्या कर दी। इस हिंसा में एक पत्रकार की भी मौत हो गई थी।
याद करें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पंजाब दौरे के दौरान हुई सुरक्षा में चूक मामले पर जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई तो सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य की सरकार को नसीहत भी दी। पंजाब के फिरोजपुर में 5 जनवरी को प्रदर्शनकारियों द्वारा मार्ग अवरुद्ध करने के कारण प्रधानमंत्री का काफिला करीब 20 मिनट तक फ्लाईओवर पर फंस गया था, जिसके बाद वह एक रैली सहित किसी भी कार्यक्रम में शामिल हुए बिना पंजाब से लौट आए।सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राज्य और केंद्र सरकार के बीच वाकयुद्ध से कोई समाधान नहीं निकलेगा। यह ऐसे अहम समय में प्रतिक्रिया देने के लिए एक मजबूत तंत्र की जरूरतों को कम कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने पीएम की सुरक्षा में हुई चूक मामले की शीर्ष अदालत की पूर्व न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति गठित की है। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के महानिरीक्षक, चंडीगढ़ के पुलिस महानिदेशक, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल और पंजाब के अतिरिक्त डीजीपी (सुरक्षा) को समिति का सदस्य नियुक्त किया।चीफ जस्टिस एनवी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा ने कहा कि यह समिति जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट दाखिल करेगी। पीठ ने कहा था कि सु्प्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त समिति इन बिंदुओं की जांच करेगी कि सुरक्षा उल्लंघन के लिए कौन-कौन जिम्मेदार हैं और किस हद तक, उपचारात्मक उपाय आवश्यक हैं। भविष्य में इस तरह की घटनाएं न हो समिति यह सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक पदाधिकारियों की सुरक्षा पर सुझाव देगी।
इसी तरह कर्नाटक के स्कूल एवं कॉलेजों में हिजाब पहनने पर रोक के खिलाफ दायर अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की बेंच ने कहा कि उचित समय पर हम इस अर्जी पर सुनवाई करेंगे। इसके साथ ही अदालत ने अर्जी दाखिल करने वालों को नसीहत दी थी कि वे इस मामले को ज्यादा बड़े लेवल पर न फैलाएं। चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना की बेंच ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे इसे राष्ट्रीय मुद्दा न बनाएं। अदालत ने साफ तौर पर कहा कि इस मसले पर याचिकाकर्ताओं को हाई कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। अदालत ने कहा था कि सही समय पर वह इस मसले पर सुनवाई करेगी। शीर्ष अदालत ने केस की सुनवाई करते हुए कहा, हम देख रहे हैं कि कर्नाटक में क्या हो रहा है और मामला हाई कोर्ट में लंबित है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं को नसीहत देते हुए कहा कि वे इस मामले को राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बनाने से बचें। उचित समय पर शीर्ष अदालत की ओर से दखल दिया जाएगा।
कर्नाटक हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए स्कूल और कॉलेजों में हिजाब पर बैन जारी रखने की बात कही थी। हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश को ही चुनौती देते हुए कांग्रेस के नेता बीवी श्रीनिवास में उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की थी। (हिफी)

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